गाजा की धरती आज बच्चों के आंसुओं और लहू से तरबतर है। वहां हर सुबह सैकड़ों नन्हे सपनों का अंत हो रहा है, मासूम आंखें हमेशा के लिए बंद हो रही हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट ने इस दिल दहला देने वाली सच्चाई को सामने लाया है। ये सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि उन मासूमों की चीखें हैं, जो युद्ध की आग में जल रहे हैं। आखिर कब तक दुनिया इस तबाही को चुपचाप देखती रहेगी? आइए, इस दर्दनाक हकीकत को करीब से समझें।
गाजा में बच्चों पर कहर: हर दिन 100 मासूमों की बलि
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, 18 मार्च से जब इजरायली सेना ने गाजा पर फिर से हमले तेज किए, तब से हर दिन औसतन 100 से ज्यादा बच्चे या तो मारे जा रहे हैं या गंभीर रूप से घायल हो रहे हैं। ये वो बच्चे हैं, जिनके हाथों में किताबें और खिलौने होने चाहिए थे, लेकिन अब उनके हिस्से में सिर्फ दर्द और मौत आई है। गाजा की गलियों में खेलने की जगह अब बमों की गूंज सुनाई देती है। ये आंकड़े सिर्फ संख्या नहीं, बल्कि एक पूरी पीढ़ी के खोने की कहानी बयां करते हैं। क्या इन मासूमों का कोई कसूर था?
संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी: "ये हमारी मानवता पर धब्बा"
यूएनआरडब्ल्यूए के प्रमुख फिलिप लजारिनी ने इस हालात पर गहरी चिंता जताई है। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, "बच्चों की हत्या को किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता।" गाजा को बच्चों के लिए 'नो लैंड' कहते हुए उन्होंने इसे "हमारी साझा मानवता पर दाग" करार दिया। उनकी ये बातें सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि एक गंभीर सवाल हैं कि क्या दुनिया सचमुच इन मासूमों की पुकार सुनने को तैयार है? गाजा में जारी हिंसा और बर्बादी के बीच ये सवाल और भी बड़ा हो जाता है।
युद्ध की आग में जलता बचपन
सोचिए, एक बच्चा जो सुबह स्कूल जाने की तैयारी कर रहा हो, वो दोपहर तक जिंदगी की जंग हार जाए। गाजा में ऐसा हर दिन हो रहा है। घर, स्कूल और अस्पताल सब कुछ मलबे में बदल चुका है। मां-बाप अपने बच्चों को बचाने के लिए बेबस हैं, और दुनिया की ताकतवर सत्ताएं खामोश हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट इस भयावह सच को उजागर करती है कि 18 मार्च से अब तक बच्चों पर सबसे ज्यादा कहर बरपा है। ये सिर्फ गाजा की कहानी नहीं, बल्कि इंसानियत के सामने एक चुनौती है।
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