जयपुर, 31 अगस्त (Udaipur Kiran) । महानगर द्वितीय के जिला न्यायालय ने शहर के जलेब चौक के साइकिल स्टैंड सहित अन्य संपत्तियों पर कब्जे और स्वामित्व से जुडे मामले में सवाई मानसिंह द्वितीय म्यूजियम ट्रस्ट की अपील को खारिज कर दिया है। पीठासीन अधिकारी रीटा तेजपाल ने इस मामले में अपर सिविल न्यायालय उत्तर, महानगर द्वितीय के 12 सितंबर 2024 को दिए गए आदेश को बरकरार रखते हुए उसे सही माना है।
अपील में सिविल न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए ट्रस्ट ने कहा था कि इस समान मुद्दे पर अन्य कोर्ट ने ट्रस्ट के पक्ष में आदेश दिया था। इसलिए सिविल न्यायाधीश का आदेश खारिज किया जाए। इस मामले में निचली अदालत ने ट्रस्ट का दावा खारिज करते हुए कहा था कि जब कोवेनेंट की शर्त के अनुसार जलेब चौक के रखरखाव का अधिकार ट्रस्ट को नहीं था तो उसने किस कानूनी अधिकार के तहत इस संपत्ति को लाइसेंसधारियों को लाइसेंस पर दिया। ट्रस्ट ने दावे में दावे में कहा कि जयपुर रियासत के पूर्व शासक स्वर्गीय महाराजा सवाई मानसिंह बहादुर ने अपने जीवनकाल 1959 में इस ट्रस्ट का गठन किया था। साल 1972 में ट्रस्ट के चेयरमैन सवाई भवानी सिंह ने ट्रस्ट को जलेब चौक सहित अन्य संपत्तियां दी थी। ट्रस्ट ने जलेब चौक की खाली जमीन को लाइसेंस पर अन्य लोगों को दिया था। ये संपत्ति ट्रस्ट की निजी संपत्तियां हैं और इन पर राज्य सरकार, नगर निगम या अन्य सरकारी विभागों का कोई हक नहीं है। इस संपत्ति पर वादी के लाइसेंसधारी थडी व टीन शेड लगाकर अपना जीविकोपार्जन कर रहे हैं, लेकिन 28 जून 1994 को नगर निगम के कर्मचारियों ने इन्हें हटाने और उनका सामान जब्त करने की चेतावनी दी। वहीं अगले दिन निगम ने निर्माण ध्वस्त कर दिए। इस पर ट्रस्ट ने निगम का कब्जा रोकने के लिए वहां अपने सुरक्षाकर्मी तैनात कर दिए। इसलिए नगर निगम को पाबंद किया जाए कि वह संपत्ति पर कब्जा नहीं करे और वादी को बेदखल नहीं करे। जवाब में नगर निगम का कहना था कि जयपुर रियासत के राज्य सरकार में विलय के समय इसका सरकारी उपयोग करने के लिए कब्जा सरकार को दिया गया था। वहीं कोवेनेंट के आधार पर सरकार ही इसकी सार-संभाल कर रही है। जलेब चौक व उसके चारों ओर के भवन राज्य सरकार के कब्जे व अधिकार में हैं। यहीं पर श्रम विभाग, पुलिस विभाग, बिक्री कर विभाग, स्वास्थ्य विभाग, जागीर विभाग, परिवहन विभाग व नगर निगम का ऑफिस भी है। यहां राज्य सरकार का कब्जा लगातार रहा है। वादी पक्ष को इसमें दखल देने का अधिकार नहीं है।
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(Udaipur Kiran)
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