जयपुर, 7 नवंबर . चार दिवसीय छठ सूर्य उपासना महापर्व के तीसरे दिन गुरुवार को 36 घंटे का व्रत रखे हुए श्रद्धालुओं ने शाम को सूर्यास्त के समय कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया. गलताजी, आमेर के सागर, मावठे में शाम होने से पहले ही बड़ी संख्या में व्रती बांस की टोकरी में मौसमी फल, ठेकुआ, कसर, गन्ना और पूजा का सामान लेकर पहुंच गए. सूर्य के अस्ताचल की ओर बढ़ते ही सभी श्रद्धालु कमर तक पानी में खड़े होकर लोक गीत गाते हुए सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया.
मान्यताओं के अनुसार शाम के समय सूर्य अपनी पत्नी प्रत्युषा के साथ समय बिताते हैं. इसलिए छठ पूजा में शाम को डूबते सूर्य को अघ्र्य देने से उनकी पत्नी प्रत्युषा की भी उपासना हो जाती है. इस वजह से व्रती की मनोकामनाएं जल्द पूर्ण होती हैं. मुख्य रूप से गलताजी तीर्थ, शास्त्री नगर स्थित स्वर्ण जयंती गार्डन के पीछे किशनबाग में, हसनपुरा में दुर्गा विस्तार कॉलोनी, दिल्ली रोड, प्रताप नगर, मालवीय नगर, रॉयल सिटी माचवा, मुरलीपुरा, आदर्श नगर, विश्वकर्मा, जवाहर नगर, निवारू रोड, झोटवाड़ा में लक्ष्मी नगर, कानोता, आमेर रोड, सोडाला, अजमेर रोड, हीरापुरा पावर हाउस, सिविल लाइंस, गुर्जर की थड़ी, आकेड़ा डूंगर सहित अन्य क्षेत्रों में शाम का अघ्र्य दिया गया. कॉलोनियों में कृत्रिम जलाशयों का निर्माण कर अघ्र्य दिया गया.
गलताजी सहित अन्य जल स्त्रोतों पर रात भर जागरण हुआ. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार के लोक गायकों ने छठ मैया का गुणगान किया. गलताजी में एस के सिन्हा, डॉ. ए के ओझा, चंदन रावत, राम आशीष प्रजापत, संजीव मिश्रा, रंजीत पटेल, नरेश मिश्रा, शशि शंकर झा, सत्यनारायण यादव, देवेंद्र मंडल, राहुल कुमार, चंदन सिंह, प्रहलाद मंडल, रूप किशोर, नोखेलाल महतो एवं अन्य ने स्वयंसेवक के रूप में गलता जी तीर्थ पर सेवाएं दीं. बिहार समाज संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष पवन शर्मा, राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी सुरेश पंडित, राष्ट्रीय प्रवक्ता सुभाष बिहारी ने अलग-अलग स्थानों पर व्यवस्थाएं संभाली.
शुक्रवार को देंगे उदयकालीन सूर्य को अर्घ्य:
शुक्रवार को संतान की लंबी आयु की कामना के साथ उगते सूर्य भगवान को छठ मैय्या मानते हुए अर्घ्य दिया जाएगा. व्रती छठ मैया से सुख-समृद्धि की कामना करेंगे. अर्घ्य के बाद व्रती घर आकर पारणा करेंगे.
जिनके घर में किसी कार्य सिद्धि के लिए कामना की गई थी उसके पूरा होने पर मांगी कोसी भरा जाएगा. भोर में कोसी के साथ गन्ना, ठेकुआ आदि प्रसाद को एक साथ बांध दिया जाता है. सूर्य देव को लालिमा से पहले कोसी का विसर्जन किया जाएगा. कोसी में मिट्टी के हाथी पर दो कलश, गन्ने के साथ खड़ा किया जाता है.
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