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बिहार कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर, चार खेमों में बंटी पार्टी

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बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं, वैसे-वैसे कांग्रेस की अंदरूनी कलह खुलकर सामने आने लगी है। प्रदेश कांग्रेस लंबे समय से गुटबाजी से जूझ रही है, लेकिन अब यह स्थिति चुनावी रणनीति को प्रभावित करने लगी है।

हालांकि हाल ही में आयोजित ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पटना में पार्टी नेताओं को सख्त हिदायत दी थी कि “हम सबका एक ही लक्ष्य है—कांग्रेस की जीत।” राहुल गांधी ने यह भी साफ किया था कि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को दरकिनार कर संगठन को प्राथमिकता दी जाए। लेकिन यह चेतावनी बेअसर साबित हुई है।

चार बड़े गुटों का वर्चस्व

वर्तमान समय में बिहार कांग्रेस चार अलग-अलग गुटों में बंटी नजर आ रही है। हर गुट अपने-अपने नेताओं के इर्द-गिर्द सक्रिय है और पार्टी की एकजुटता को कमजोर कर रहा है।

  • प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह का गुट – यह खेमे में संगठन पर पकड़ मजबूत रखने का दावा किया जाता है।

  • विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल नेता अजय कुमार का गुट – यह गुट जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं को साधने में जुटा है।

  • सीनियर नेता मदन मोहन झा और उनके समर्थक – पुराने कांग्रेसियों का यह धड़ा परंपरागत वोट बैंक को बचाए रखने का प्रयास कर रहा है।

  • युवाओं का गुट – इसमें वे नेता और कार्यकर्ता शामिल हैं जो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की राजनीति से प्रभावित होकर कांग्रेस में आए हैं और बदलाव की बात करते हैं।

  • चुनाव से पहले संकट गहराया

    गुटबाजी का यह असर है कि कई जिलों में संगठनात्मक चुनाव तक प्रभावित हो रहे हैं। कई नेता खुले तौर पर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। वहीं, कार्यकर्ता असमंजस में हैं कि आखिर किस खेमे की लाइन पकड़ी जाए।

    विपक्षी दलों के लिए मौका

    कांग्रेस की इस स्थिति पर राजद और भाजपा जैसे दलों की नजरें भी टिकी हैं। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अगर कांग्रेस समय रहते अंदरूनी गुटबाजी पर काबू नहीं पाती है तो महागठबंधन में उसकी स्थिति कमजोर हो सकती है

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