अन्नपूर्णानन्द (अंग्रेज़ी: Annpurnanand, जन्म- 21 सितम्बर, 1895; मृत्यु- 4 दिसम्बर, 1962) हिन्दी में शिष्ट हास्य लिखने वाले कलाकारों में अग्रणी थे। ये 22 वर्ष की आयु में साहित्य के क्षेत्र में आए, और इनका पहला निबंध- 'खोपड़ी' प्रसिद्ध हास्यपत्र 'मतवाला' में प्रकाशित हुआ। उन्होंने प्रमुखत: कहानियाँ लिखी हैं, जिनमें हास्य की योजना भाषा के स्तर और परिस्थितियों की विडम्बना पर आधारित है। इन्होंने हिंदी के शिष्ट हास्य रस के साहित्य को ऊँचा उठाया। अन्नपूर्णानन्द लिखते बहुत कम थे पर जो कुछ लिखा वह समाज के प्रति मीठी चुटकियाँ लिए हुए कुरीतियों को दूर करने के लिए और किसी के प्रति द्वेष या मत्सर न रखकर समाज को जगाने के लिए लिखा। उनका हास्य कोरे विदूषकत्व से भिन्न कोटि का था।[1]
अन्नपूर्णानन्द काशी, उत्तर प्रदेश के निवासी थे। उन्होंने अधिकांश कहानियों में काशी नगर के वातावरण को मूर्तिमान किया है।
लेखक स्वयं बराबर काशी में ही रहे। कुछ दिनों तक अपने बड़े भाई सम्पूर्णानन्द, जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, के साथ लखनऊ में भी रहे।
अन्नपूर्णानन्द की निम्न रचनाएँ प्रकाशित हुई थीं[2]-
'मनमयूर'
'मेरी हजामत'
'मंगलमोद'
'मगन रहु चोला'
'महाकवि चच्चा' (1932 ई.)
'पं. विलासी मिश्र'
अन्नपूर्णानन्द ने पंडित मोतीलाल नेहरू के पत्र 'इंडिपेंडेंट' में कुछ समय श्री श्रीप्रकाश के साथ काम किया।
अन्नपूर्णानन्द दानवीर शिवप्रसाद गुप्त के निजी सचिव थे। गुप्तजी के साथ ही आपने संसार भ्रमण भी किया था।
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