राजस्थान के आदिवासी अंचल में शुरू होने वाली स्वर्ण खनन परियोजना — जो राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए एक ‘गेम चेंजर’ साबित हो सकती थी — अब सरकारी शिथिलता और प्रशासनिक अड़चनों की वजह से ठप पड़ती नजर आ रही है।
यह मेगा प्रोजेक्ट राज्य सरकार के लिए लगभग 1 लाख 40 हजार करोड़ रुपए के संभावित राजस्व का स्रोत माना जा रहा है।
लेकिन खनन लाइसेंस जारी करने की धीमी प्रक्रिया और मंजूरियों में देरी ने इस परियोजना को गंभीर संकट में डाल दिया है।
राजस्थान के दक्षिणी हिस्से में स्थित बांसवाड़ा, डूंगरपुर और उदयपुर जिलों में स्वर्ण भंडारों की पहचान कई वर्षों पहले की जा चुकी है।
जियो सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) की रिपोर्ट में इन इलाकों में सोने की खदानों के प्रचुर भंडार की पुष्टि हुई थी।
इस परियोजना के जरिये राज्य सरकार को उम्मीद थी कि स्थानीय आदिवासी आबादी को रोजगार, बुनियादी ढांचा विकास और क्षेत्रीय औद्योगिकरण का बड़ा अवसर मिलेगा।
लेकिन खनन लीज और पर्यावरणीय मंजूरियों में अड़चनों के कारण परियोजना की प्रगति रुक गई है।
अभी तक सरकार ने सिर्फ कुछ प्रारंभिक अनुमतियाँ जारी की हैं, जबकि व्यावसायिक खनन के लिए आवश्यक लाइसेंस प्रक्रिया फाइलों में अटकी हुई है।
सूत्रों के अनुसार, इस परियोजना में निवेश के लिए देश-विदेश की कई कंपनियों ने रुचि दिखाई थी।
लेकिन विभागीय प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की कमी और फाइलों की धीमी रफ्तार से निवेशक कंपनियों में निराशा का माहौल है।
कई कंपनियों ने तो अब वैकल्पिक प्रोजेक्ट्स की ओर रुख करना शुरू कर दिया है।
खनन क्षेत्र के एक विशेषज्ञ ने बताया —
राज्य सरकार को हो सकता है भारी राजस्व नुकसान“राजस्थान के पास प्राकृतिक संसाधनों की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन प्रशासनिक सुस्ती और नीतिगत अस्पष्टता के कारण राज्य निवेशकों की पहली पसंद नहीं बन पा रहा।”
यदि परियोजना में और देरी होती है, तो राज्य सरकार को भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ सकता है।
स्वर्ण खनन से राज्य को रॉयल्टी, कर और निर्यात शुल्क के रूप में लगभग 1.40 लाख करोड़ रुपए का राजस्व मिलने का अनुमान था।
साथ ही, इस परियोजना से हजारों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिलने की संभावना थी।
लेकिन मौजूदा रफ्तार को देखते हुए ऐसा लगता है कि यह सपना अभी दूर की कौड़ी बनता जा रहा है।
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