लाइव हिंदी खबर :- विभिन्न देशों के विकासशील व्यक्तियों से बातचीत के दौरान यह स्पष्ट हुआ है कि दुनिया में शक्ति की पूजा की जाती है। हालांकि, यह विडंबना है कि कई लोग विध्वंस को शक्ति मानते हैं, कुछ धन को और कुछ अस्त्र-शस्त्र को। असल में, सबसे बड़ी शक्ति अध्यात्म और आत्मा में निहित है। इंसान सबसे शक्तिशाली प्राणी है, और हर जीव में शक्ति होती है। यह सत्य भारत के अध्यात्म में स्पष्ट रूप से प्रकट होता है। शक्ति संपन्न लोग भी अक्सर अपनी अशक्ति की शिकायत करते हैं। वे अपने आपको कमजोर और असमर्थ महसूस करते हैं। शक्ति का अनुभव और उसका सही उपयोग ध्यान और साधना के माध्यम से संभव है। मिल्टन ने कहा है कि शांति की अपनी विजयें होती हैं, जो युद्ध की तुलना में कम कीर्तिमयी नहीं होतीं।
हमने दुनिया को योग और ध्यान का ज्ञान दिया है। ध्यान का अर्थ है अपनी शक्ति और क्षमता को पहचानना, और अहिंसा की शक्ति को स्थापित करना। जो व्यक्ति अपने भीतर गहराई से नहीं देखता, वह अपनी शक्ति को नहीं जानता। अगर किसी को अपनी शक्ति पर विश्वास नहीं है, तो उसकी मदद भगवान या देवता भी नहीं कर सकते। जब कार्य करने की क्षमता होती है, तो वह शक्ति सृजनात्मक बन जाती है, लेकिन अगर उसका उपयोग दूसरों को नुकसान पहुँचाने के लिए किया जाता है, तो वह ध्वंसात्मक हो जाती है।
अस्त्र-शस्त्रों को सुरक्षा का विश्वसनीय साधन नहीं माना जा सकता। आज कोई भी राष्ट्र अध्यात्मिक दृष्टि से मजबूत नहीं है, इसलिए वे शस्त्र-संपन्न होते हुए भी पराजित हैं। हमें एक नए विश्व का निर्माण करना है। लेखिका एल.एम. मॉन्टगोमेरी के अनुसार, ‘क्या यह बेहतर नहीं है कि हम सोचें कि आने वाला कल एक नया दिन है, जिसमें कोई गलती नहीं हुई है?’ नया चिंतन, नई कल्पना और नया कार्य—यह अहिंसा विश्व भारती के नए मानव और नए विश्व के निर्माण की आधारशिला है। बड़े लक्ष्यों को हासिल करने के लिए कभी भी बनी-बनाई लकीर पर चलना सही नहीं होता; जीवन में नए रास्ते बनाने की आवश्यकता है। जो पगडंडियां हैं, उन्हें राजमार्ग में बदलना होगा।
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