टैरिफ वॉर (Tariff War) के इस दौर में अमेरिका ने दुनिया भर के देशों पर भारी-भरकम टैरिफ लगा दिए हैं. इसकी चपेट में दुनिया और एशिया की दो आर्थिक महाशक्तियां यानी भारत और चीन भी आ गए हैं.
लेकिन इसी टैरिफ वॉर ने इन दोनों देशों को एक-दूसरे के करीब लाने का रास्ता भी तैयार कर दिया है. हाल के दिनों में दोनों देशों के बीच रिश्ते पहले से बेहतर होने के संकेत मिले हैं, क्योंकि पहले जहां सीमा विवाद और तनाव की खबरें सुर्खियों में रहती थीं वहीं अब सहयोग और दोस्ती की बातें हो रही हैं. क्या वाकई टैरिफ की वजह से भारत और चीन करीब आ सकते हैं? आइए, इसकी वजहों पर नजर डालते हैं.
भारत-चीन क्यों करीब आ सकते हैं?
भारत (India) और चीन (China), दोनों ही एशिया के बड़े देश हैं. इनकी आबादी मिलाकर 2 अरब 80 करोड़ से ज्यादा है. दोनों देशों का इतिहास पुराना और गहरा है. पहले भी भारत ने चीन का साथ दिया था, जैसे जापान के खिलाफ उसकी लड़ाई में और चीन ने भी भारत की आजादी की जंग में मदद की थी. अब हालात बदल रहे हैं और अमेरिका के नए नियमों की वजह से दोनों देशों को एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने का मौका मिल रहा है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) ने भी कहा है कि दोनों देशों को साथ मिलकर आगे बढ़ना चाहिए. पिछले साल यानी 2023-24 में दोनों देशों का व्यापार 101.7 बिलियन डॉलर तक पहुंचा था. ये दिखाता है कि मुश्किलों के बावजूद दोनों देश एक-दूसरे पर निर्भर हैं.
टैरिफ ने अमेरिका के खिलाफ एकजुट किया?
अमेरिका की नई सरकार ने अपनी 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के तहत भारत और चीन पर सख्त टैरिफ लगाए हैं. चीन पर 34% और भारत पर 26% का अतिरिक्त टैरिफ थोपा गया है. इससे दोनों देशों को नुकसान हो रहा है. जवाब में चीन ने भी अमेरिका से आने वाले सामानों पर 34% टैरिफ लगा दिया है. इस टैरिफ वॉर ने भारत और चीन को एक-दूसरे का साथ तलाशने के लिए मजबूर किया है. दोनों देश अब व्यापार बढ़ाने और आपसी भरोसा मजबूत करने की राह पर हैं. जानकार कहते हैं कि भारत और चीन जैसे बड़े देश एक-दूसरे के दुश्मन नहीं हो सकते. टैरिफ की मार ने इन्हें सहयोग की अहमियत समझा दी है. टैरिफ की वजह से दोनों देशों को अमेरिका पर निर्भरता कम करने की जरूरत पड़ रही है. चीन अब भारत के 1.4 अरब लोगों के बाज़ार की तरफ देख रहा है. वहीं, भारत भी अपने नुकसान को कम करने के लिए चीन के साथ व्यापार बढ़ाना चाहता है. मिसाल के तौर पर, चीन भारत से दवाइयां, खेती का सामान और IT सर्विसेज़ ले सकता है, जबकि भारत चीन से इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी खरीद सकता है.
भारत-चीन क्यों करीब आ सकते हैं?
2025 में दोनों देश अपनी कूटनीतिक दोस्ती के 75 साल मना रहे हैं. हाल के दिनों में दोनों देशों के नेताओं और अधिकारियों के बीच बातचीत बढ़ी है. पिछले साल अक्टूबर में रूस के कज़ान में PM नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात हुई थी. इस मुलाकात ने रिश्तों में नई गर्मजोशी भरी थी. एक्सपर्ट्स का कहना है कि दोनों देशों के बीच दोस्ती के बीज बोए जा चुके हैं और अब पौधा जड़ें पकड़ने के लिए तैयार है. ऐसे में ये भरोसा बढ़ता जा रहा है कि आने वाले दिनों में ये रिश्ते और मजबूत होंगे. दोनों देश भी ये समझते हैं कि साथ मिलकर काम करने से ही तरक्की मुमकिन है. 1950 में भारत ने चीन के साथ कूटनीतिक रिश्ते शुरू किए थे. पिछले 75 साल के दौरान 1962 के युद्ध के अलावा भी कई उतार-चढ़ाव आने के बावजूद अब भारत-चीन के बीच रिश्ते बेहतर हो रहे हैं.
पीएम ने चीन से नजदीकी का संकेत दिया!
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लेक्स फ्रीडमैन के पॉडकास्ट में भारत-चीन रिश्तों पर बात की. उन्होंने कहा था कि 'सदियों पहले हमारे बीच कोई बड़ा झगड़ा नहीं था. आगे भी हमारे रिश्ते मजबूत रहने चाहिए' उन्होंने ये भी कहा कि 'परिवार में भी कभी-कभी छोटी-मोटी बातें होती हैं.' यानी भारत और चीन को वो एक परिवार की तरह देखते हैं. पीएम ने तीसरा बिंदु उठाया कि 21वीं सदी को एशिया की सदी तभी कहा जाएगा जब भारत और चीन मिलकर काम करेंगे. उनकी बातों से साफ है कि वो चीन के साथ दोस्ती को अहमियत देते हैं. टैरिफ वॉर ने इस दोस्ती को और मजबूत करने का मौका दिया है. पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग में अब तक 20 मुलाकातें हो चुकी हैं जिसमें अक्सर दोनों के बीच नजदीकियां देखी गई हैं. चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भी कहा कि दोनों देशों का साथ मिलकर काम करना दुनिया के लिए अच्छा है.
सीमा विवाद दोस्ती का 'ब्रेकर'!
सीमा पर जमीनी विवाद दोनों देशों के रिश्तों में बड़ा ब्रेकर रहा है. 2020 में गलवान घाटी में हुए टकराव के बाद दोनों देशों की सेनाएं लद्दाख में आमने-सामने थीं. पिछले साढ़े चार साल में LAC पर दोनों तरफ सड़कें, पुल और हवाई अड्डे बने हैं. हालात पहले से बेहतर हैं, लेकिन 'नो मैन्स लैंड' की सुरक्षा पर सवाल बने हुए हैं. एक्सपर्ट्स का भी कहना है कि 'जब तक सीमा विवाद नहीं सुलझता, रिश्ते पूरी तरह पटरी पर नहीं आ सकते'. भारत ने चाइनीज निवेश पर पाबंदियां लगाई हैं और 200 से ज़्यादा चीनी ऐप्स बैन किए हैं. इसके बावजूद, दोनों देश अब बातचीत से रास्ता निकाल रहे हैं. दिसंबर 2024 में अजित डोभाल और वांग यी की मुलाकात में कैलाश मानसरोवर यात्रा और सीमा व्यापार शुरू करने पर सहमति बनी.
संबंधों में सुधार का दौर
2020 के बाद LAC पर 1 लाख सैनिक तैनात रहे. भारत ने चीन से FDI पर सख्ती की लेकिन अब सीमा पर तनाव कम करने की कोशिशें जारी हैं. पिछले कुछ साल में सीमा पर तनाव ने रिश्तों को खराब किया था लेकिन अब हालात बदल रहे हैं. कज़ान मुलाकात के बाद दोनों देशों ने तनाव कम करने के लिए कदम उठाए हैं. एक्सपर्ट्स का मानना है कि सीमा विवाद जैसे मसले इतिहास से मिले हैं लेकिन इन्हें सुलझाना नामुमकिन नहीं है. उनका कहना है कि तनाव का दौर पीछे छूट चुका है और अब ऐसा वक्त दोबारा नहीं आएगा. टैरिफ वॉर ने दोनों देशों को ये एहसास दिलाया है कि छोटे झगड़ों से ऊपर उठकर बड़े फायदे देखने चाहिए.
भारत-चीन व्यापार घाटा
भारत में चीन से भारी मात्रा में आयात किया जाता है और इम्पोर्ट के मुकाबले ड्रैगन को किए जाने वाले कम एक्सपोर्ट की वजह से भारत का चीन से 85 अरब डॉलर से ज्यादा का व्यापार घाटा है. ऐसे में दोनों देशों के बीच संबंध सुधरने से भारत को भी चीन में निर्यात बढ़ाने का मौका मिल सकता है. कुल मिलाकर देखा जाए तो टैरिफ वॉर ने भारत और चीन को एक-दूसरे के करीब लाने का मंच सजा दिया है क्योंकि जहां अमेरिका की सख्त नीतियों ने दोनों देशों को नुकसान पहुंचाया वहीं इसने भारत-चीन दोस्ती को नया मौका दिया है. व्यापार बढ़ाने से लेकर सीमा विवाद सुलझाने तक दोनों देश अगर एक-दूसरे के साथ आते हैं तो आने वाला वक्त भारत और चीन की दोस्ती का सुनहरा दौर हो सकता है. लेकिन इसके लिए आपसी भरोसा और सहयोग को बढ़ाना होगा.
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