काबुल: अफगानिस्तान के रणनीतिक रूप से बेहद अहम बगराम एयरबेस को लेकर एक बार फिर से अटकलों का बाजार गरम है। पाकिस्तानी मीडिया का दावा है कि तालिबान ने बगराम एयरबेस को कथित रूप से अमेरिका को फिर से सौंप दिया है। बगराम को लेकर अगर यह दावा सही है तो यह तालिबान की ओर से क्षेत्रीय रणनीति में बहुत बड़ा बदलाव माना जाएगा। पाकिस्तानी पत्रकारों का दावा है कि अमेरिकी वायुसेना का एक सी-17 मालवाहक विमान हाल ही में बगराम एयरबेस पर उतरा है। इसमें सैन्य वाहन, उपकरण और खुफिया एजेंसी सीआईए के अधिकारी मौजूद थे। तालिबान की ओर से जुड़े सोशल मीडिया हैंडल से इस पाकिस्तानी दावे का खंडन किया जा रहा है। अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी के बाद से ही बगराम एयरबेस पर तालिबान का कब्जा था लेकिन इस पर चीन ने भी नजरें गड़ा रखी थीं। चीन का एक दल भी पिछले दिनों इस एयरबेस पर पहुंचा था। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बगराम एयरबेस को लेकर चेतावनी दी थी। पाकिस्तान के पत्रकार जार्क शबाब ने मीडियम वेबसाइट पर लिखे अपने लेख में दावा किया है कि अमेरिकी सी-17 विमान इस एयरबेस पर उतरा है। बताया जा रहा है कि इस एयरबेस पर जो लोग उतरे हैं, उनमें अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के डेप्युटी चीफ भी मौजूद थे। चीन की जासूसी कर सकेगा अमेरिका पाकिस्तानी रिपोर्ट में कहा गया है कि सीआईए अधिकारी का आना यह दर्शाता है कि बगराम एयरबेस अमेरिका के लिए कितना अहम है। हालांकि अभी तक इस दावे की पुष्टि तालिबान की ओर से नहीं की गई है। इस घटनाक्रम से यह पता चलता है कि अमेरिका बहुत सक्रिय होकर अफगानिस्तान में अपने खुफिया नेटवर्क को बनाए रखना चाहता है। बगराम एयरबेस का ऐतिहासिक महत्व रहा है। अमेरिका के 20 साल तक चले अफगानिस्तान युद्ध के दौरान बगराम एयरबेस अमेरिकी सेना का गढ था। इससे पहले तालिबान ने अमेरिका को यह एयरबेस लौटाने से इंकार कर दिया था। तालिबान इसे अपने संप्रभुता का उल्लंघन मानता था। हालांकि इस ताजा घटनाक्रम से यह लग रहा है कि तालिबान ने सीक्रेट कूटनीति के तहत अमेरिका के साथ अपने रुख में बदलाव किया है। विश्लेषकों का कहना है कि आईएसकेपी के खिलाफ अमेरिका और तालिबान एकसाथ आए हैं जिसे पाकिस्तान ट्रेनिंग देता है। इस डील के बदले तालिबान चाहता है कि अमेरिका उसे पैसा और कूटनीतिक मान्यता दे। बगराम एयरबेस से कुछ सौ किमी की दूरी पर ही चीन की सीमा लगती है। इसी इलाके में चीनी परमाणु कार्यक्रम चलता है। अगर अमेरिकी सेना वापस बगराम आती है तो इससे चीन भड़क सकता है जो अफगानिस्तान में जमकर निवेश कर रहा है। चीन की नजर अफगानिस्तान के अरबों डॉलर के खनिजों के खजाने पर है।
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