इस्लामाबाद: तुर्की के इस्तांबुल में हो रही पाकिस्तान-अफगानिस्तान शांति वार्ता बिना किसी ठोस नतीजे से खत्म हो चुकी है। हालांकि, इस दौरान बंद दरवाजों के पीछे से हुए दो खुलासों ने खतरे की घंटी बजा दी है। पहला खुलासा यह हुआ है कि अमेरिका अफगानिस्तान के अंदर हवाई हमला करने के लिए पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल कर रहा है। पाकिस्तान इन हमलों को रोकने में लाचारी भी जता रहा है। दूसरा खुलासा, फील्ड मार्शल असीम मुनीर के नेतृत्व वाली पाकिस्तान की शक्तिशाली सेना अफगानिस्तान के साथ तनाव बढ़ाने के लिए शहबाज शरीफ की नागरिक सरकार को दरकिनार कर रही है।
पाकिस्तान-अफगानिस्तान में चरम पर तनाव
दरअसल, पिछले कई महीनों से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव चरम पर है। इस महीने की शुरुआत में, पाकिस्तान ने तालिबान शासित अफगानिस्तान के अंदरूनी इलाकों में हवाई हमले और गोलाबारी की थी। रिपोर्टों से पता चला है कि काबुल के पूर्वी बाहरी इलाके और पक्तिका प्रांत के कुछ हिस्सों में हवाई हमला किया गया, जिसमें महिलाओं और बच्चों सहित दर्जनों अफगान नागरिक मारे गए। सितंबर-अक्तूबर में दोनों पक्षों में हुई झड़पों में 250 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। इन झड़पों के बाद कई दिनों तक पाकिस्तान और अफगानिस्तान की ओर से सीमा पर गोलीबारी हुई। इसके बाद आखिरकार तुर्की और कतर के दबाव में दोनों पक्ष इस्तांबुल में शांति वार्ता के लिए इकट्ठा हुए।
पाकिस्तानी सेना ने शहबाज सरकार को किया दरकिनार
हालांकि, इस्तांबुल में हुई शांति बैठक में पाकिस्तान और अफगानिस्तान को कुछ खास हासिल नहीं हुआ। तालिबान का आरोप है कि पाकिस्तान की सेना ने अपनी आदत के मुताबिक, काबुल के साथ तनाव को बनाए रखने और अपने स्वार्थों को पूरा करने के लिए शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली नागरिक सरकार को दरकिनार कर दिया है। अब पाकिस्तान की विदेश नीति से जुड़ा कोई भी फैसला सीधे सेना ले रही है, इसमें नागरिक सरकार की भूमिका लगभग खत्म हो चुकी है। वहीं, पाकिस्तान, अफगानिस्तान में अमेरिकी हवाई हमले रोकने में भी नाकाम साबित हो चुका है।
अमेरिका के इशारे पर चल रहे असीम मुनीर
पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को अमेरिका का आशीर्वाद प्राप्त है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मुनीर से कई बार मुलाकात कर चुके हैं। वे जनरल मुनीर को व्हाइट हाउस में लंच पर भी बुला चुके हैं। जबकि, अमेरिका पूरी दुनिया में लोकतंत्र की दुहाई देता घूमता रहता है। ऐसे में कोई भी जान सकता है कि बिना किसी बड़े फायदे के डोनाल्ड ट्रंप किसी पिद्दी से देश के सेना प्रमुख को व्हाइट हाउस में मेहमान बनाकर बुलाने का रिस्क ऐसे ही नहीं उठा सकते हैं। ट्रंप लगातार जनरल मुनीर की तारीफों के पुल भी बांध रहे हैं और अक्सर अपने भाषणों में एक कट्टरपंथी इस्लामी जनरल को एक महान आदमी का खिताब देते रहते हैं।
अफगानिस्तान पर पाकिस्तान की खुली पोल
पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान में सेना ही सबकुछ है। इस देश में सैन्य रणनीतिक एजेंडे के पक्ष में नागरिक सरकारों को अक्सर दरकिनार कर दिया गया है। जहां पाकिस्तानी प्रधानमंत्री कार्यालय कूटनीतिक प्रयासों में लगा रहता है, वहीं सेना क्षेत्रीय तनाव को बनाए रखने वाले अभियान जारी रखे हुए है। अफगानिस्तान के के इस्लामिक अमीरात के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने आरोप लगाया है कि अमेरिकी ड्रोन पाकिस्तानी क्षेत्र से गुजरकर अफगानिस्तान में प्रवेश कर रहे हैं। उन्होंने यह भी खुलासा किया है कि पाकिस्तान में एक विशेष सैन्य गुट को काबुल और इस्लामाबाद के बीच तनाव बढ़ाने के इरादे से वैश्विक शक्तियों का समर्थन प्राप्त हो सकता है।
पाकिस्तानी सेना ने अफगानिस्तान को दिया धोखा
कुछ दिन पहले, ख़ैबर टीवी को दिए एक साक्षात्कार में, मुजाहिद ने दावा किया था कि पाकिस्तान की सेना के कुछ तत्व जानबूझकर दोनों देशों के संबंधों को बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं। मुजाहिद ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान की नागरिक सरकार आपसी हितों के आधार पर अफगानिस्तान के साथ संबंध स्थापित करने में रुचि रखती थी, लेकिन सेना ने इसकी अनुमति नहीं दी। मुजाहिद ने कहा कि अफगानिस्तान के लिए पाकिस्तान के विशेष दूत सादिक खान काबुल में थे और अफगान अधिकारियों के साथ बातचीत कर रहे थे, लेकिन उसी दौरान पाकिस्तान ने अफगानिस्तान की धरती पर हमले किए। पाकिस्तान की नागरिक सरकार संबंध बनाना चाहती है, लेकिन सेना उन्हें नुकसान पहुंचा रही है।
इमरान खान के कार्यकाल में अफगानिस्तान से अच्छे थे संबंध
मुजाहिद ने पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के कार्यकाल के दौरान अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान संबंधों पर भी विचार किया और कहा कि संबंध मज़बूत थे और ज़्यादातर पहल सुचारू रूप से चल रही थीं। इमरान खान ने 2018 से 2022 तक एक नागरिक सरकार का नेतृत्व किया। उन्हें अविश्वास प्रस्ताव के ज़रिए बेवजह हटा दिया गया, जो पाकिस्तान के इतिहास में इस तरह का पहला निष्कासन था। पद से हटाए जाने के बाद, खान को मई 2023 में भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार कर लिया गया, जिसे वे और उनके समर्थक सैन्य प्रतिष्ठान द्वारा राजनीतिक रूप से प्रेरित बताते हैं। खान को जनता द्वारा दिए गए लोकतांत्रिक जनादेश का दावा करने के लिए पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान के सत्ता केंद्रों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था।
पाकिस्तान-अफगानिस्तान में चरम पर तनाव
दरअसल, पिछले कई महीनों से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव चरम पर है। इस महीने की शुरुआत में, पाकिस्तान ने तालिबान शासित अफगानिस्तान के अंदरूनी इलाकों में हवाई हमले और गोलाबारी की थी। रिपोर्टों से पता चला है कि काबुल के पूर्वी बाहरी इलाके और पक्तिका प्रांत के कुछ हिस्सों में हवाई हमला किया गया, जिसमें महिलाओं और बच्चों सहित दर्जनों अफगान नागरिक मारे गए। सितंबर-अक्तूबर में दोनों पक्षों में हुई झड़पों में 250 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। इन झड़पों के बाद कई दिनों तक पाकिस्तान और अफगानिस्तान की ओर से सीमा पर गोलीबारी हुई। इसके बाद आखिरकार तुर्की और कतर के दबाव में दोनों पक्ष इस्तांबुल में शांति वार्ता के लिए इकट्ठा हुए।
पाकिस्तानी सेना ने शहबाज सरकार को किया दरकिनार
हालांकि, इस्तांबुल में हुई शांति बैठक में पाकिस्तान और अफगानिस्तान को कुछ खास हासिल नहीं हुआ। तालिबान का आरोप है कि पाकिस्तान की सेना ने अपनी आदत के मुताबिक, काबुल के साथ तनाव को बनाए रखने और अपने स्वार्थों को पूरा करने के लिए शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली नागरिक सरकार को दरकिनार कर दिया है। अब पाकिस्तान की विदेश नीति से जुड़ा कोई भी फैसला सीधे सेना ले रही है, इसमें नागरिक सरकार की भूमिका लगभग खत्म हो चुकी है। वहीं, पाकिस्तान, अफगानिस्तान में अमेरिकी हवाई हमले रोकने में भी नाकाम साबित हो चुका है।
अमेरिका के इशारे पर चल रहे असीम मुनीर
पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को अमेरिका का आशीर्वाद प्राप्त है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मुनीर से कई बार मुलाकात कर चुके हैं। वे जनरल मुनीर को व्हाइट हाउस में लंच पर भी बुला चुके हैं। जबकि, अमेरिका पूरी दुनिया में लोकतंत्र की दुहाई देता घूमता रहता है। ऐसे में कोई भी जान सकता है कि बिना किसी बड़े फायदे के डोनाल्ड ट्रंप किसी पिद्दी से देश के सेना प्रमुख को व्हाइट हाउस में मेहमान बनाकर बुलाने का रिस्क ऐसे ही नहीं उठा सकते हैं। ट्रंप लगातार जनरल मुनीर की तारीफों के पुल भी बांध रहे हैं और अक्सर अपने भाषणों में एक कट्टरपंथी इस्लामी जनरल को एक महान आदमी का खिताब देते रहते हैं।
अफगानिस्तान पर पाकिस्तान की खुली पोल
पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान में सेना ही सबकुछ है। इस देश में सैन्य रणनीतिक एजेंडे के पक्ष में नागरिक सरकारों को अक्सर दरकिनार कर दिया गया है। जहां पाकिस्तानी प्रधानमंत्री कार्यालय कूटनीतिक प्रयासों में लगा रहता है, वहीं सेना क्षेत्रीय तनाव को बनाए रखने वाले अभियान जारी रखे हुए है। अफगानिस्तान के के इस्लामिक अमीरात के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने आरोप लगाया है कि अमेरिकी ड्रोन पाकिस्तानी क्षेत्र से गुजरकर अफगानिस्तान में प्रवेश कर रहे हैं। उन्होंने यह भी खुलासा किया है कि पाकिस्तान में एक विशेष सैन्य गुट को काबुल और इस्लामाबाद के बीच तनाव बढ़ाने के इरादे से वैश्विक शक्तियों का समर्थन प्राप्त हो सकता है।
पाकिस्तानी सेना ने अफगानिस्तान को दिया धोखा
कुछ दिन पहले, ख़ैबर टीवी को दिए एक साक्षात्कार में, मुजाहिद ने दावा किया था कि पाकिस्तान की सेना के कुछ तत्व जानबूझकर दोनों देशों के संबंधों को बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं। मुजाहिद ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान की नागरिक सरकार आपसी हितों के आधार पर अफगानिस्तान के साथ संबंध स्थापित करने में रुचि रखती थी, लेकिन सेना ने इसकी अनुमति नहीं दी। मुजाहिद ने कहा कि अफगानिस्तान के लिए पाकिस्तान के विशेष दूत सादिक खान काबुल में थे और अफगान अधिकारियों के साथ बातचीत कर रहे थे, लेकिन उसी दौरान पाकिस्तान ने अफगानिस्तान की धरती पर हमले किए। पाकिस्तान की नागरिक सरकार संबंध बनाना चाहती है, लेकिन सेना उन्हें नुकसान पहुंचा रही है।
इमरान खान के कार्यकाल में अफगानिस्तान से अच्छे थे संबंध
मुजाहिद ने पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के कार्यकाल के दौरान अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान संबंधों पर भी विचार किया और कहा कि संबंध मज़बूत थे और ज़्यादातर पहल सुचारू रूप से चल रही थीं। इमरान खान ने 2018 से 2022 तक एक नागरिक सरकार का नेतृत्व किया। उन्हें अविश्वास प्रस्ताव के ज़रिए बेवजह हटा दिया गया, जो पाकिस्तान के इतिहास में इस तरह का पहला निष्कासन था। पद से हटाए जाने के बाद, खान को मई 2023 में भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार कर लिया गया, जिसे वे और उनके समर्थक सैन्य प्रतिष्ठान द्वारा राजनीतिक रूप से प्रेरित बताते हैं। खान को जनता द्वारा दिए गए लोकतांत्रिक जनादेश का दावा करने के लिए पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान के सत्ता केंद्रों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था।
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