वॉशिंगटन: अमेरिकी खुफिया एजेंसी (सीआईए) के पूर्व अधिकारी रिचर्ड बार्लो ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम पर कई सनसनीखेज और दिलचस्प खुलासे किए हैं। साल 1985 से 1988 के बीच शीर्ष अमेरिकी खुफिया एजेंसी में काम करने वाले बार्लों ने कहा कि अमेरिका ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम से ना सिर्फ आंखें मूंदी बल्कि मदद भी की। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने शुरुआत में भारत विरोध को सामने रखा लेकिन बाद में अपने बम को इस्लामिक बम घोषित कर दिया। बार्लो ने इजरायल और भारत के पाकिस्तान की न्यूक्लियर साइट पर हमले के प्लान का भी खुलासा किया है।
समाचार एजेंसी एएनआई को दिए एक साक्षात्कार में बार्लो ने दावा किया कि साल 1990 में अमेरिकी खुफिया समुदाय ने पाकिस्तान के F-16 विमानों पर परमाणु हथियार तैनात होते देखे थे। हमें बिना किसी संदेह के पता था कि पाकिस्तान के F-16 विमान परमाणु हथियार ले जा सकते हैं। ये हमने खुद होते हुए देखा था।
अमेरिका को सब पता थाअमेरिका ने सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम का विरोध किया था और उसे प्रतिबंधित भी किया। हालांकि बार्लो का मानना है कि ये सिर्फ ऊपरी तौर पर दिखावे के लिए किया गया। उन्होंने कहा कि 1980 के दशक के दौरान पाकिस्तान के परमाणु हथियार विकसित करने की जानकारी अमेरिका को थी। इसके बावजूद अमेरिका ने निर्णायक कार्रवाई नहीं की।
बार्लो का कहना है कि अमेरिका ने पाकिस्तान को परमाणु बम बनाने से नहीं रोका। इसकी वजह ये थी कि पाकिस्तान को अमेरिका ने अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण (1979-1989) के खिलाफ लड़ाई में प्रमुख सहयोगी बना लिया था। उन्होंने कहा कि वॉशिंगटन के अधिकारियों को वैज्ञानिक ए.क्यू. खान के कहुटा में यूरेनियम संवर्धन गतिविधियों की जानकारी मिल गई थी।
इंदिरा गांधी ने नहीं लिया फैसलापूर्व सीआईए अधिकारी रिचर्ड बार्लो ने दावा किया कि 1980 के दशक की शुरुआत में इस्लामाबाद की परमाणु महत्वाकांक्षा को रोकने के लिए भारत और इजरायल मिलकर पाकिस्तान के कहुटा संयंत्र पर बमबारी कर सकते थे। इस प्रस्तावित संयुक्त गुप्त अभियान से कई समस्याओं का समाधान हो सकता था। इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार इसके लिए तैयार नहीं हुई।
बार्लो ने कहा, 'यह अफसोस की बात है कि इंदिरा गांधी ने इसे मंजूरी नहीं दी, इससे कई समस्याएं हल हो सकती थीं। पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के निर्माता और प्रसारक ए.क्यू. खान के निर्देशन में स्थापित कहुटा संवर्धन केंद्र पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की सफल खोज का केंद्र बना। इसकी परिणति 1998 में इस्लामाबाद के पहले परमाणु परीक्षणों के रूप में हुई।'
भारत था निशाने परबार्लो ने दावा किया है कि पाकिस्तान का परमाणु हथियार विकसित करने का मुख्य उद्देश्य भारत का मुकाबला करना था। हालांकि बाद में इसके निर्माता अब्दुल कदीर खान (ए क्यू खान) के नेतृत्व में इस्लामाबाद की परमाणु महत्वाकांक्षा ने इसे एक 'इस्लामिक बम' में बदल दिया। इसका उद्देश्य ईरान सहित अन्य इस्लामी देशों तक इस तकनीक का विस्तार और प्रसार करना था।
बार्लो ने कहा, 'मुझे लगता है कि ए.क्यू. खान ने एक बार यह कहा था कि हमारे पास ईसाई बम है, हमारे पास यहूदी बम है, और हिंदू बम है। ऐसे में हमें एक मुस्लिम बम चाहिए। मेरे लिए यह बिल्कुल स्पष्ट था कि पाकिस्तान अन्य मुस्लिम देशों को परमाणु हथियार तकनीक प्रदान करने का इरादा रखता है, और यही हुआ।'
समाचार एजेंसी एएनआई को दिए एक साक्षात्कार में बार्लो ने दावा किया कि साल 1990 में अमेरिकी खुफिया समुदाय ने पाकिस्तान के F-16 विमानों पर परमाणु हथियार तैनात होते देखे थे। हमें बिना किसी संदेह के पता था कि पाकिस्तान के F-16 विमान परमाणु हथियार ले जा सकते हैं। ये हमने खुद होते हुए देखा था।
अमेरिका को सब पता थाअमेरिका ने सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम का विरोध किया था और उसे प्रतिबंधित भी किया। हालांकि बार्लो का मानना है कि ये सिर्फ ऊपरी तौर पर दिखावे के लिए किया गया। उन्होंने कहा कि 1980 के दशक के दौरान पाकिस्तान के परमाणु हथियार विकसित करने की जानकारी अमेरिका को थी। इसके बावजूद अमेरिका ने निर्णायक कार्रवाई नहीं की।
बार्लो का कहना है कि अमेरिका ने पाकिस्तान को परमाणु बम बनाने से नहीं रोका। इसकी वजह ये थी कि पाकिस्तान को अमेरिका ने अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण (1979-1989) के खिलाफ लड़ाई में प्रमुख सहयोगी बना लिया था। उन्होंने कहा कि वॉशिंगटन के अधिकारियों को वैज्ञानिक ए.क्यू. खान के कहुटा में यूरेनियम संवर्धन गतिविधियों की जानकारी मिल गई थी।
EP-11 with Ex-CIA Officer Richard Barlow (1985–1988) on Pakistan’s Nuclear Program premieres today at 5 PM IST | ANI Broadcast
— ANI (@ANI) November 7, 2025
“It’s a shame Indira didn’t approve it. Would have solved a lot of problems,” On reported Israel-India proposal for a preemptive strike on Pakistan’s… pic.twitter.com/IrCnOo9vwX
इंदिरा गांधी ने नहीं लिया फैसलापूर्व सीआईए अधिकारी रिचर्ड बार्लो ने दावा किया कि 1980 के दशक की शुरुआत में इस्लामाबाद की परमाणु महत्वाकांक्षा को रोकने के लिए भारत और इजरायल मिलकर पाकिस्तान के कहुटा संयंत्र पर बमबारी कर सकते थे। इस प्रस्तावित संयुक्त गुप्त अभियान से कई समस्याओं का समाधान हो सकता था। इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार इसके लिए तैयार नहीं हुई।
बार्लो ने कहा, 'यह अफसोस की बात है कि इंदिरा गांधी ने इसे मंजूरी नहीं दी, इससे कई समस्याएं हल हो सकती थीं। पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के निर्माता और प्रसारक ए.क्यू. खान के निर्देशन में स्थापित कहुटा संवर्धन केंद्र पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की सफल खोज का केंद्र बना। इसकी परिणति 1998 में इस्लामाबाद के पहले परमाणु परीक्षणों के रूप में हुई।'
भारत था निशाने परबार्लो ने दावा किया है कि पाकिस्तान का परमाणु हथियार विकसित करने का मुख्य उद्देश्य भारत का मुकाबला करना था। हालांकि बाद में इसके निर्माता अब्दुल कदीर खान (ए क्यू खान) के नेतृत्व में इस्लामाबाद की परमाणु महत्वाकांक्षा ने इसे एक 'इस्लामिक बम' में बदल दिया। इसका उद्देश्य ईरान सहित अन्य इस्लामी देशों तक इस तकनीक का विस्तार और प्रसार करना था।
बार्लो ने कहा, 'मुझे लगता है कि ए.क्यू. खान ने एक बार यह कहा था कि हमारे पास ईसाई बम है, हमारे पास यहूदी बम है, और हिंदू बम है। ऐसे में हमें एक मुस्लिम बम चाहिए। मेरे लिए यह बिल्कुल स्पष्ट था कि पाकिस्तान अन्य मुस्लिम देशों को परमाणु हथियार तकनीक प्रदान करने का इरादा रखता है, और यही हुआ।'
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