मुंबई: मालेगांव ब्लास्ट मामले में एनआईए की विशेष अदालत ने सभी सात दोषियों को बरी कर दिया । कोर्ट ने 1,036 पन्नों के फैसले में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की गिरफ्तारी के दावे को भी खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि महाराष्ट्र एटीएस के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा भागवत को गिरफ्तार करने के निर्देश दिए जाने की बात प्रमाणित नहीं हो सकी। विशेष एनआईए न्यायाधीश ए. के. लाहोटी ने कहा कि आरोपी साधु सुधाकर धर द्विवेदी के वकील द्वारा उठाए गए तर्कों में कोई दम नहीं है। वकील ने दावा किया था कि जांच अधिकारी मेहबूब मुझावर को भागवत को गिरफ्तार करने का आदेश दिया गया था, लेकिन उन्होंने किसी सबूत के अभाव में ऐसा करने से इनकार कर दिया। इसके बाद एटीएस ने मुझावर पर झूठा केस दर्ज कर फंसा दिया।
कोर्ट ने और क्या कहा
हालांकि मुझावर ने 2016 में सोलापुर की एक अदालत में यह दावा किया था, लेकिन वह मालेगांव ब्लास्ट केस में गवाह के तौर पर पेश नहीं हुए। अदालत ने माना कि यह दावा उस समय उनके बचाव का हिस्सा था और इसे इस केस में सबूत नहीं माना जा सकता। न्यायाधीश ने कहा कि बचाव पक्ष द्वारा पेश किए गए दस्तावेज, जैसे कि मुझावर का बयान और आवेदन की प्रमाणित प्रति, केवल दस्तावेज होने के नाते सबूत नहीं माने जा सकते। कोर्ट ने कहा कि इसे संबंधित गवाह की सुसंगत और विश्वसनीय गवाही से साबित किया जाना चाहिए।
एसीपी मोहन कुलकर्णी के बयान का हवाला भी दिया
कोर्ट ने एटीएस के एसीपी मोहन कुलकर्णी के बयान का हवाला भी दिया, जिन्होंने अपने जिरह के दौरान यह सुझाव खारिज किया कि मुझावर को आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी को लाने के लिए भेजा गया था। कुलकर्णी ने माना कि मुझावर को दो आरोपियों रामजी कालसांगरा और संदीप डांगे की तलाश के लिए भेजा गया था। 2016 में मुझावर ने दावा किया था कि कालसांगरा और डांगे की मौत हो चुकी है, लेकिन पुलिस उन्हें अभी भी जीवित दिखा रही है। यह दावा उन्होंने तब किया जब उनके खिलाफ एक अलग मामले में आपराधिक धमकी और आर्म्स एक्ट के तहत केस दर्ज था। इसके बाद कालसांगरा के परिवार ने हत्या के आरोपों की गहन जांच की मांग की थी। हालांकि मई 2016 में ऐसी खबरें भी आई थीं कि डांगे को नेपाल में कई बार देखा गया। दोनों को आरएसएस कार्यकर्ता बताया गया था। एनआईए के डिप्टी एसपी अनिल दुबे ने अपनी जिरह में माना कि मुझावर एटीएस की टीम का हिस्सा थे, लेकिन कोर्ट ने उनके दावों को स्वीकार नहीं किया।
कोर्ट ने और क्या कहा
हालांकि मुझावर ने 2016 में सोलापुर की एक अदालत में यह दावा किया था, लेकिन वह मालेगांव ब्लास्ट केस में गवाह के तौर पर पेश नहीं हुए। अदालत ने माना कि यह दावा उस समय उनके बचाव का हिस्सा था और इसे इस केस में सबूत नहीं माना जा सकता। न्यायाधीश ने कहा कि बचाव पक्ष द्वारा पेश किए गए दस्तावेज, जैसे कि मुझावर का बयान और आवेदन की प्रमाणित प्रति, केवल दस्तावेज होने के नाते सबूत नहीं माने जा सकते। कोर्ट ने कहा कि इसे संबंधित गवाह की सुसंगत और विश्वसनीय गवाही से साबित किया जाना चाहिए।
एसीपी मोहन कुलकर्णी के बयान का हवाला भी दिया
कोर्ट ने एटीएस के एसीपी मोहन कुलकर्णी के बयान का हवाला भी दिया, जिन्होंने अपने जिरह के दौरान यह सुझाव खारिज किया कि मुझावर को आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी को लाने के लिए भेजा गया था। कुलकर्णी ने माना कि मुझावर को दो आरोपियों रामजी कालसांगरा और संदीप डांगे की तलाश के लिए भेजा गया था। 2016 में मुझावर ने दावा किया था कि कालसांगरा और डांगे की मौत हो चुकी है, लेकिन पुलिस उन्हें अभी भी जीवित दिखा रही है। यह दावा उन्होंने तब किया जब उनके खिलाफ एक अलग मामले में आपराधिक धमकी और आर्म्स एक्ट के तहत केस दर्ज था। इसके बाद कालसांगरा के परिवार ने हत्या के आरोपों की गहन जांच की मांग की थी। हालांकि मई 2016 में ऐसी खबरें भी आई थीं कि डांगे को नेपाल में कई बार देखा गया। दोनों को आरएसएस कार्यकर्ता बताया गया था। एनआईए के डिप्टी एसपी अनिल दुबे ने अपनी जिरह में माना कि मुझावर एटीएस की टीम का हिस्सा थे, लेकिन कोर्ट ने उनके दावों को स्वीकार नहीं किया।
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