लखनऊ: लखनऊ में आबादी के बीचों बीच 25 साल या इससे ज्यादा पुरानी इमारतों की जगह ज्यादा ऊंचाई और पहले से ज्यादा तल वाले नए अपार्टमेंट बन सकेंगे। इसके लिए आवास विभाग की तरफ से ' नई शहरी पुनर्विकास नीति 2025 ' का ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया है। सूत्रों की मानें तो इसे जल्द लागू करने की तैयारी है। ऐसा हुआ तो लखनऊ समेत प्रदेश के कई बड़े महानगरों में आवास के साथ ही औद्योगिक इकाईयों के लिए जमीन का संकट काफी हद तक हल हो सकता है।
'नई शहरी पुनर्विकास नीति 2025' के तहत महानगरों के बीच में खाली पड़ी जमीन या पुरानी इमारतों की जमीनों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किया जा सकेगा। आवास विभाग के सूत्रों की मानें तो नई शहरी पुनर्विकास नीति के तहत आने वाले प्रॉजेक्ट्स के प्रस्तावों को 'उत्तर प्रदेश भवन निर्माण उपविधि-2025' के मुताबिक आसानी से मंजूरी मिल जाएगी। ऐसे में लोगों को पुरानी बसावट वाले इलाकों में मकान के साथ ही कमर्शल और सामुदायिक सुविधाएं किफायती दरों पर मुहैया करवाना आसान होगा।
नीति के मुताबिक अपार्टमेंट बनाने के लिए पुरानी इमारत में रहने वाले दो तिहाई सदस्यों की सहमति जरूरी होगी। इसके बाद कार्यदायी संस्था को विकास प्राधिकरण या आवास विकास परिषद समेत सरकारी अभिकरण के बोर्ड से प्रॉजेक्ट का डीपीआर पास करवाना होगा।
शुल्क में मिलेगी छूट
पुरानी इमारत को तोड़कर उसकी जगह पांच साल के भीतर ज्यादा ऊंचाई तक भवन निर्माण करना होगा। नई नीति के तहत इसके लिए कार्यदायी संस्था को तीन साल का समय दिया जाएगा। इस दरम्यान काम पूरा न होने पर दो साल का अतिरिक्त समय मिलेगा। इसके भीतर ही काम पूरा करना होगा। इसके लिए कार्यदायी संस्था को विकास शुल्क में 50%, भूमि उपयोग परिवर्तन शुल्क में 25% और प्रभाव शुल्क में भी 25% की छूट मिलेगी।
भवन स्वामी को होगा किराए का भुगतान
पुरानी इमारत की जगह नई बिल्डिंग का निर्माण शुरू होने से पहले प्रॉजेक्ट मैनेजर, हाउसिंग सोसायटी, RWA और कार्यदायी एजेंसी के बीच एक एग्रीमेंट किया जाएगा। इसके मुताबिक पुरानी इमारत में रहने वाले लोगों को नई इमारत बनकर तैयार होने तक किराए का भुगतान किया जाएगा। एग्रीमेंट की शर्तों का पालन न करने या डिफॉल्टर होने पर कार्यदायी संस्था के खिलाफ जुर्माना लगाने से लेकर एग्रीमेंट निरस्त करने तक की कार्यवाही की जा सकेगी।
क्यों पड़ी जरूरत
यूपी में लखनऊ समेत कई महानगरो में घनी आबादी के बीच दो से चार मंजिला की ऐसी कॉलोनियां है जो 1500 वर्गमीटर से बड़े क्षेत्रफल में है और 25 साल पुरानी होने के साथ ही जीर्णशीर्ण हो चुकी हैं। इनमें रहने वालों को हटाकर दूसरी जगह बसाना संभव नहीं है और मालिकाना हक न होने से विकास प्राधिकरणों की तरफ से इन्हें तोड़कर दोबारा बनाया भी नहीं जा सकता।
ऐसे में 'नई शहरी पुनर्विकास नीति 2025' के तहत दो से चार मंजिला तक की ऐसी कॉलोनियों की जगह 10 से 15 मंजिला तक के अपार्टमेंट बनाए जा सकेंगे। इसके तहत पुराने भवन स्वामियों को उनके पुराने जर्जर भवनों की जगह बिना कोई अतिरिक्त शुल्क दिए नए फ्लैट मिलेंगे। वहीं, अतिरिक्त बने फ्लैट्स को बेचकर डिवेलपर इस प्रॉजेक्ट की लागत और अपना मुनाफा निकाल लेगा।
'नई शहरी पुनर्विकास नीति 2025' के तहत महानगरों के बीच में खाली पड़ी जमीन या पुरानी इमारतों की जमीनों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किया जा सकेगा। आवास विभाग के सूत्रों की मानें तो नई शहरी पुनर्विकास नीति के तहत आने वाले प्रॉजेक्ट्स के प्रस्तावों को 'उत्तर प्रदेश भवन निर्माण उपविधि-2025' के मुताबिक आसानी से मंजूरी मिल जाएगी। ऐसे में लोगों को पुरानी बसावट वाले इलाकों में मकान के साथ ही कमर्शल और सामुदायिक सुविधाएं किफायती दरों पर मुहैया करवाना आसान होगा।
नीति के मुताबिक अपार्टमेंट बनाने के लिए पुरानी इमारत में रहने वाले दो तिहाई सदस्यों की सहमति जरूरी होगी। इसके बाद कार्यदायी संस्था को विकास प्राधिकरण या आवास विकास परिषद समेत सरकारी अभिकरण के बोर्ड से प्रॉजेक्ट का डीपीआर पास करवाना होगा।
शुल्क में मिलेगी छूट
पुरानी इमारत को तोड़कर उसकी जगह पांच साल के भीतर ज्यादा ऊंचाई तक भवन निर्माण करना होगा। नई नीति के तहत इसके लिए कार्यदायी संस्था को तीन साल का समय दिया जाएगा। इस दरम्यान काम पूरा न होने पर दो साल का अतिरिक्त समय मिलेगा। इसके भीतर ही काम पूरा करना होगा। इसके लिए कार्यदायी संस्था को विकास शुल्क में 50%, भूमि उपयोग परिवर्तन शुल्क में 25% और प्रभाव शुल्क में भी 25% की छूट मिलेगी।
भवन स्वामी को होगा किराए का भुगतान
पुरानी इमारत की जगह नई बिल्डिंग का निर्माण शुरू होने से पहले प्रॉजेक्ट मैनेजर, हाउसिंग सोसायटी, RWA और कार्यदायी एजेंसी के बीच एक एग्रीमेंट किया जाएगा। इसके मुताबिक पुरानी इमारत में रहने वाले लोगों को नई इमारत बनकर तैयार होने तक किराए का भुगतान किया जाएगा। एग्रीमेंट की शर्तों का पालन न करने या डिफॉल्टर होने पर कार्यदायी संस्था के खिलाफ जुर्माना लगाने से लेकर एग्रीमेंट निरस्त करने तक की कार्यवाही की जा सकेगी।
क्यों पड़ी जरूरत
यूपी में लखनऊ समेत कई महानगरो में घनी आबादी के बीच दो से चार मंजिला की ऐसी कॉलोनियां है जो 1500 वर्गमीटर से बड़े क्षेत्रफल में है और 25 साल पुरानी होने के साथ ही जीर्णशीर्ण हो चुकी हैं। इनमें रहने वालों को हटाकर दूसरी जगह बसाना संभव नहीं है और मालिकाना हक न होने से विकास प्राधिकरणों की तरफ से इन्हें तोड़कर दोबारा बनाया भी नहीं जा सकता।
ऐसे में 'नई शहरी पुनर्विकास नीति 2025' के तहत दो से चार मंजिला तक की ऐसी कॉलोनियों की जगह 10 से 15 मंजिला तक के अपार्टमेंट बनाए जा सकेंगे। इसके तहत पुराने भवन स्वामियों को उनके पुराने जर्जर भवनों की जगह बिना कोई अतिरिक्त शुल्क दिए नए फ्लैट मिलेंगे। वहीं, अतिरिक्त बने फ्लैट्स को बेचकर डिवेलपर इस प्रॉजेक्ट की लागत और अपना मुनाफा निकाल लेगा।
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