रांची: झारखंड की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने राज्य में चल रहे प्रमुख मुद्दों पर खुलकर अपनी राय रखी है। शराब घोटाले में वरिष्ठ IAS अधिकारी विनय चौबे की गिरफ़्तारी, सरना धर्म कोड की मांग और ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल (TAC) की बैठक को लेकर उन्होंने राज्य की हेमंत सोरेन सरकार की नीति और नीयत पर कई सवाल उठाए। इस दौरान अर्जुन मुंडा ने झारखंड बीजेपी अध्यक्ष पद को लेकर पूछे गए सवाल का भी जवाब दिया। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ पर चुप्पीजब उनसे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ को लेकर सवाल किया गया, तो अर्जुन मुंडा ने कहा कि यह पूरी तरह से सांगठनिक विषय है। इस पर मीडिया में कोई टिप्पणी करना उचित नहीं होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि पार्टी के भीतर सांगठनिक प्रक्रिया चल रही है और कार्यकर्ताओं को केंद्र में रखकर सभी निर्णय लिए जा रहे हैं। 'झारखंड के लिए दुर्भाग्यपूर्ण शराब घोटाला'अर्जुन मुंडा ने शराब घोटाले को झारखंड के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि राज्य में लगातार ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं, जो यह दर्शाती हैं कि कहीं न कहीं सरकार की नीतियों में खामी है। नई एक्साइज पॉलिसी पर उठ रहे सवालों के बीच उन्होंने चेताया कि सरकार को ऐसी नीतियां नहीं लानी चाहिए जो जनहित के विरुद्ध हों। अर्जुन मुंडा ने पूछा- क्या शराब नीति से जनजातीय क्षेत्र का भला होगा? मुंडा ने पूछा कि क्या झारखंड जैसे जनजातीय और अविकसित राज्य में शराब और उससे होने वाले टैक्स से विकास संभव है? उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि संवैधानिक सुरक्षा के बावजूद आदिवासी क्षेत्र अब भी पिछड़े हुए हैं, और वहां शराब नीति थोपना समझदारी नहीं है। ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल की भूमिका पर सवालउन्होंने TAC की बैठकों की अनियमितता और औपचारिकता पर भी सवाल उठाया। मुंडा ने कहा कि जनजातीय क्षेत्रों में कोई भी नीति लागू करने से पहले गंभीर मंत्रणा होनी चाहिए। उन्होंने यह भी जोड़ा कि TAC का उद्देश्य ही यही है कि जनजातीय समाज पर ऐसा कोई कानून न थोपा जाए जो उनकी पारंपरिक व्यवस्था को प्रभावित करे। सरना धर्म कोड और धर्मांतरण पर भी बोले अर्जुन मुंडासरना धर्म कोड की मांग पर उन्होंने कहा कि यह मुद्दा राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक रूप से देखा जाना चाहिए। जनजातीय समुदाय की धार्मिक पहचान को संरक्षित करने की जरूरत है। धर्मांतरण पर चल रही बहस के बीच उन्होंने कहा कि जो लोग आदिवासी समुदाय छोड़कर दूसरे धर्मों में गए हैं, उनके आरक्षण पर पुनर्विचार होना चाहिए– यह एक गंभीर मसला है जिस पर सोच-विचार आवश्यक है।
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