Gen-Z यानी 1997 से 2012 के बीच पैदा हुई पीढ़ी चर्चा के केंद्र में है। मोरक्को में यह पीढ़ी सड़क पर है। इससे पहले नेपाल में इसने सरकार को बेदखल कर दिया। बांग्लादेश में भी शेख हसीना की सरकार इसी पीढ़ी के आंदोलन की वजह से हटी। इससे यह बहस तेज हो गई है कि यह पीढ़ी किस तरह सोचती है और कैसे सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्यों को प्रभावित करती है। भारत जैसे विशाल और विविधता भरे देश में भी यह सवाल महत्वपूर्ण है कि मीडिया, समाज व राजनीति को इस जनरेशन के साथ किस तरह का संबंध बनाना चाहिए।
प्राथमिकताएं अलग । भारत में Gen-Z की आबादी करीब 37.7 करोड़ है, कुल जनसंख्या का करीब 26% हिस्सा। लेकिन, यह आबादी उपभोक्ता खर्च का लगभग 43% नियंत्रित करती है। पिछली पीढ़ियों ने तकनीक को अपनाया, लेकिन Gen-Z तकनीक के साथ पैदा हुई। यही वजह है कि समाचार, मनोरंजन, शिक्षा या करियर - हर क्षेत्र में इनकी प्राथमिकताएं और आदतें बिल्कुल अलग हैं। यह पीढ़ी खबरों से कट नहीं रही, उन्हें अलग ढंग से पढ़ और साझा कर रही है। उनके लिए समाचार सूचना के साथ सोशल करंसी भी है।
मुद्दों पर मुखर । आज भारत का सबसे बड़ा जनसांख्यिकीय लाभ यही है कि उसके पास युवा आबादी है। Gen-Z उपभोक्ता बाजार, चुनावी राजनीति और सामाजिक विमर्श में निर्णायक भूमिका निभा रही है। ये लोग ब्रैंड्स और कंपनियों से उत्पाद के साथ पारदर्शिता और सामाजिक जिम्मेदारी भी चाहते हैं। ये पर्यावरण, Gender equality, विविधता और मानसिक स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर मुखर हैं। राजनीति और सामाजिक आंदोलनों में भी इनकी भागीदारी सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक दिखाई देती है।
आलोचना का कारण । कहा जाता है कि इन्हें तुरंत परिणाम चाहिए, धैर्य और गहराई से सोचने की कमी है। रील्स और मीम्स में सच्चाई खोजने की आदत से आधी-अधूरी समझ पैदा होती है - कई बार सोशल मीडिया ट्रेंड के आधार पर अपनी राय बना लेती है। इस पीढ़ी पर मनोवैज्ञानिक दबाव भी अधिक है। लेकिन वे नए विचारों के प्रति सबसे ज्यादा खुले हैं। उनमें परंपराओं और आधुनिकता को जोड़ने की क्षमता है। विविधता और समानता के मुद्दों को दिल से अपनाते हैं, जो किसी भी लोकतांत्रिक समाज के लिए सकारात्मक संकेत है। इस पीढ़ी को पर्यावरण की चिंता है, वर्क-लाइफ बैलेंस को प्राथमिकता देती है।
बदलाव की जरूरत । ऐसे में मीडिया और समाज को इनके साथ संवाद का तरीका बदलना होगा। शिक्षा संस्थानों को उन्हें गहराई से पढ़ने और सोचने की आदत डालनी होगी। राजनीति को समझना होगा कि यह पीढ़ी वादों से नहीं, काम और पारदर्शिता से प्रभावित होती है। आलोचना के साथ यदि हम इन्हें सकारात्मक मार्ग दिखा सकें तो यही पीढ़ी भविष्य के भारत को अधिक समावेशी, जागरूक और प्रगतिशील बनाएगी।
(लेखिका मीडिया शिक्षिका हैं)
प्राथमिकताएं अलग । भारत में Gen-Z की आबादी करीब 37.7 करोड़ है, कुल जनसंख्या का करीब 26% हिस्सा। लेकिन, यह आबादी उपभोक्ता खर्च का लगभग 43% नियंत्रित करती है। पिछली पीढ़ियों ने तकनीक को अपनाया, लेकिन Gen-Z तकनीक के साथ पैदा हुई। यही वजह है कि समाचार, मनोरंजन, शिक्षा या करियर - हर क्षेत्र में इनकी प्राथमिकताएं और आदतें बिल्कुल अलग हैं। यह पीढ़ी खबरों से कट नहीं रही, उन्हें अलग ढंग से पढ़ और साझा कर रही है। उनके लिए समाचार सूचना के साथ सोशल करंसी भी है।
मुद्दों पर मुखर । आज भारत का सबसे बड़ा जनसांख्यिकीय लाभ यही है कि उसके पास युवा आबादी है। Gen-Z उपभोक्ता बाजार, चुनावी राजनीति और सामाजिक विमर्श में निर्णायक भूमिका निभा रही है। ये लोग ब्रैंड्स और कंपनियों से उत्पाद के साथ पारदर्शिता और सामाजिक जिम्मेदारी भी चाहते हैं। ये पर्यावरण, Gender equality, विविधता और मानसिक स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर मुखर हैं। राजनीति और सामाजिक आंदोलनों में भी इनकी भागीदारी सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक दिखाई देती है।
आलोचना का कारण । कहा जाता है कि इन्हें तुरंत परिणाम चाहिए, धैर्य और गहराई से सोचने की कमी है। रील्स और मीम्स में सच्चाई खोजने की आदत से आधी-अधूरी समझ पैदा होती है - कई बार सोशल मीडिया ट्रेंड के आधार पर अपनी राय बना लेती है। इस पीढ़ी पर मनोवैज्ञानिक दबाव भी अधिक है। लेकिन वे नए विचारों के प्रति सबसे ज्यादा खुले हैं। उनमें परंपराओं और आधुनिकता को जोड़ने की क्षमता है। विविधता और समानता के मुद्दों को दिल से अपनाते हैं, जो किसी भी लोकतांत्रिक समाज के लिए सकारात्मक संकेत है। इस पीढ़ी को पर्यावरण की चिंता है, वर्क-लाइफ बैलेंस को प्राथमिकता देती है।
बदलाव की जरूरत । ऐसे में मीडिया और समाज को इनके साथ संवाद का तरीका बदलना होगा। शिक्षा संस्थानों को उन्हें गहराई से पढ़ने और सोचने की आदत डालनी होगी। राजनीति को समझना होगा कि यह पीढ़ी वादों से नहीं, काम और पारदर्शिता से प्रभावित होती है। आलोचना के साथ यदि हम इन्हें सकारात्मक मार्ग दिखा सकें तो यही पीढ़ी भविष्य के भारत को अधिक समावेशी, जागरूक और प्रगतिशील बनाएगी।
(लेखिका मीडिया शिक्षिका हैं)
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