रियाद/इस्लामाबाद: अमेरिकी एक्सपर्ट्स का मानना है कि कतर की राजधानी दोहा में इजरायल के हमले ने सऊदी अरब को पाकिस्तान के साथ सैन्य गठबंधन करने पर मजबूर किया है। उनका मानना है कि अमेरिका के प्रति बढ़ती निराशा, वैश्विक सुरक्षा व्यवस्था को नया रूप दे रही है। इस्लाम के सबसे पवित्र स्थलों का घर सऊदी अरब और एकमात्र परमाणु बम वाला मुस्लिम देश पाकिस्तान ने रक्षा समझौता किया है, जिसके तहत एक पर हमला, दूसरे पर भी हमला माना जाएगा। 17 सितंबर को इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गये हैं और एक हफ्ते के बाद भी ये साफ नहीं हो पाया है कि क्या पाकिस्तान के परमाणु छतरी के नीचे सऊदी अरब आ चुका है?
वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने पिछले हफ्ते एक इंटरव्यू में कहा था कि "किसी को भी इस बात पर संदेह नहीं होना चाहिए कि हमारे पास क्या है और इस समझौते के तहत उन्हें क्या क्षमताएं उपलब्ध होंगी।" इस बात को अगर गंभीरता से देखा जाए तो इस बात की पुष्टि के रूप में देखा जाएगा कि सऊदी अरब, अब इस्लामाबाद के परमाणु छतरी के नीचे आ चुका है। लेकिन अपने इस बयान के अगले ही दिन वो पलट गये। उन्होंने रॉयटर्स को दिए गये इंटरव्यू में कहा कि 'रक्षा समझौते में परमाणु हथियार को लेकर समझौता नहीं है।' चूंकी पाकिस्तान के नेता हर बात से पलट जाते हैं और इस समझौते में स्पष्टता की कमी है, इसीलिए कई तरह की अटकलें लग रही हैं।
सऊदी अरब की किस तरह से सुरक्षा करेगा पाकिस्तान?
सऊदी अरब के शाही परिवार से नजदीकी संबंध रखने वाले सऊदी अरब के व्यवसायी अली शिहाबी ने द वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट में बताया है कि वह "पाकिस्तान के परमाणु छत्र को साझा करने से मिलने वाली निरोधक क्षमता" का स्वागत करते हैं। पाकिस्तानी यूट्यूब चैनलों पर, एक्सपर्ट्स इस बात का जश्न मना रहे हैं कि उनका देश अब किसी भी कीमत पर मक्का और मदीना जैसे पवित्र शहरों की रक्षा कर सकता है। लेकिन पाकिस्तानी रक्षा मंत्रालय और सऊदी अधिकारियों ने टिप्पणी के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया। वॉशिंगटन पोस्ट ने एक्सपर्ट्स के हवाले से कहा है कि "परमाणु हथियारों को शामिल किए बिना भी, यह समझौता फारस की खाड़ी में एक महत्वपूर्ण बदलाव की शुरुआत का संकेत दे सकता है, जहां वाशिंगटन लंबे समय से प्राथमिक सुरक्षा गारंटर के रूप में काम करता रहा है। इस क्षेत्र में अमेरिकी ठिकानों ने ईरान, इराक और अन्य देशों से खतरों को रोकने में मदद की है, साथ ही मध्य पूर्व में अमेरिका की रणनीतिक पैठ को भी सुरक्षित किया है।"
सऊदी अरब और दूसरे अमेरिका के खाड़ी सहयोगी देशों का मानना था कि दोहा में हमास पर हुए हमले के बाद उनका विश्वास टूट गया है कि अमेरिका के साथ उनके मजबूत संबंध इजरायली हमलों से उन्हें बचा पाएंगे। वॉशिंगटन पोस्ट में पूर्व पाकिस्तानी विदेश सचिव सलमान बशीर ने कहा, "अमेरिकी सुरक्षा गारंटियों को लेकर निराशा का भाव है।" जबकि पाकिस्तान की सीनेट रक्षा समिति के पूर्व अध्यक्ष मुशाहिद हुसैन सैयद ने कहा, "इस क्षेत्र के लिए एक नया सुरक्षा ढांचा उभरता दिख रहा है, जो ग्लोबल साउथ के देशों पर केंद्रित है।"
सिर्फ कतर की राजधानी में हुआ हमला ही नहीं, बल्कि ईरान और यमन के हूती विद्रोहियों के हमलों के बीच वाशिंगटन की उदासीनता ने रियाद और अबू धाबी को भी निराश किया है। खासकर 2022 में अबू धाबी पर हुए हूती हमले और हाल ही में इजरायल की आक्रामकता ने इन देशों के असंतोष को और गहरा कर गिया है। यही वजह है कि सऊदी अरब ने पाकिस्तान जैसे सैन्य साझेदार को औपचारिक रूप से शामिल करने का फैसला लिया।
सऊदी अरब को पाकिस्तान पर ज्यादा भरोसा
पाकिस्तान, आर्थिक मदद के लिए दशकों से सऊदी अरब पर निर्भर रहा है। इसके अलावा, पाकिस्तान और सऊदी अरब की सैन्य साझेदारी नई नहीं है। 1960 के दशक से पाकिस्तानी अधिकारी सऊदी सेना को प्रशिक्षण देते आए हैं और आज भी सैकड़ों पाकिस्तानी सैनिक, सऊदी अरब में तैनात हैं। नए समझौते से इन सैन्य संबंधों को और गहराई मिलेगी। एक्सपर्ट्स का मानना है, कि पाकिस्तान के लिए यह कदम दोतरफा लाभ का सौदा है। एक तरफ वह सऊदी समर्थन के जरिये अपनी अर्थव्यवस्था के लिए और भी ज्यादा पैकेज हासिल करेगा, वहीं दूसरी तरफ वो भारत और ईरान जैसे विरोधियों को भी संदेश देने की कोशिश करेगा।
वॉशिंगटन पोस्ट से एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस समझौते के जोखिम भी कम नहीं हैं। पाकिस्तान अब प्रत्यक्ष रूप से मध्य-पूर्वी संघर्षों का हिस्सा बन सकता है, जिससे हूती विद्रोहियों या अन्य क्षेत्रीय ताकतों की तरफ से सीधी प्रतिक्रिया मिल सकती है। बावजूद इसके, पाकिस्तान की सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व को लगता है कि फायदे, होने वाले नुकसान के मुकाबले कहीं ज्यादा हैं। पाकिस्तान, इस्लामिक दुनिया का रक्षक बनने की कोशिश तो सालों से करता ही आया है। दूसरी तरफ, सऊदी अरब के पास दुनिया के सबसे बड़े रक्षा बजटों में से एक है और वह पाकिस्तान के लिए आर्थिक मदद, सैन्य उपकरण और रोजगार उपलब्ध करवा सकता है। इसीलिए पाकिस्तान, इसे बहुत बड़ी डिप्लोमेटिक जीत मान रहा है। खासकर शहबाज शरीफ के लिए अपने घरेलू दर्शकों के सामने पीठ ठोकने का शानदार मौका मिल गया है।
वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने पिछले हफ्ते एक इंटरव्यू में कहा था कि "किसी को भी इस बात पर संदेह नहीं होना चाहिए कि हमारे पास क्या है और इस समझौते के तहत उन्हें क्या क्षमताएं उपलब्ध होंगी।" इस बात को अगर गंभीरता से देखा जाए तो इस बात की पुष्टि के रूप में देखा जाएगा कि सऊदी अरब, अब इस्लामाबाद के परमाणु छतरी के नीचे आ चुका है। लेकिन अपने इस बयान के अगले ही दिन वो पलट गये। उन्होंने रॉयटर्स को दिए गये इंटरव्यू में कहा कि 'रक्षा समझौते में परमाणु हथियार को लेकर समझौता नहीं है।' चूंकी पाकिस्तान के नेता हर बात से पलट जाते हैं और इस समझौते में स्पष्टता की कमी है, इसीलिए कई तरह की अटकलें लग रही हैं।
⚡ BIG: Pakistan Def Minister says it’s nukes are available for Saudi Arabia:
— OSINT Updates (@OsintUpdates) September 19, 2025
Pakistani Defense Minister Khawaja Asif said Pakistan’s nuclear capabilities would be available under the new Pakistan-Saudi mutual defence pact.
“What we have, our capabilities, will absolutely be… pic.twitter.com/kPU6tb67gu
सऊदी अरब की किस तरह से सुरक्षा करेगा पाकिस्तान?
सऊदी अरब के शाही परिवार से नजदीकी संबंध रखने वाले सऊदी अरब के व्यवसायी अली शिहाबी ने द वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट में बताया है कि वह "पाकिस्तान के परमाणु छत्र को साझा करने से मिलने वाली निरोधक क्षमता" का स्वागत करते हैं। पाकिस्तानी यूट्यूब चैनलों पर, एक्सपर्ट्स इस बात का जश्न मना रहे हैं कि उनका देश अब किसी भी कीमत पर मक्का और मदीना जैसे पवित्र शहरों की रक्षा कर सकता है। लेकिन पाकिस्तानी रक्षा मंत्रालय और सऊदी अधिकारियों ने टिप्पणी के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया। वॉशिंगटन पोस्ट ने एक्सपर्ट्स के हवाले से कहा है कि "परमाणु हथियारों को शामिल किए बिना भी, यह समझौता फारस की खाड़ी में एक महत्वपूर्ण बदलाव की शुरुआत का संकेत दे सकता है, जहां वाशिंगटन लंबे समय से प्राथमिक सुरक्षा गारंटर के रूप में काम करता रहा है। इस क्षेत्र में अमेरिकी ठिकानों ने ईरान, इराक और अन्य देशों से खतरों को रोकने में मदद की है, साथ ही मध्य पूर्व में अमेरिका की रणनीतिक पैठ को भी सुरक्षित किया है।"
सऊदी अरब और दूसरे अमेरिका के खाड़ी सहयोगी देशों का मानना था कि दोहा में हमास पर हुए हमले के बाद उनका विश्वास टूट गया है कि अमेरिका के साथ उनके मजबूत संबंध इजरायली हमलों से उन्हें बचा पाएंगे। वॉशिंगटन पोस्ट में पूर्व पाकिस्तानी विदेश सचिव सलमान बशीर ने कहा, "अमेरिकी सुरक्षा गारंटियों को लेकर निराशा का भाव है।" जबकि पाकिस्तान की सीनेट रक्षा समिति के पूर्व अध्यक्ष मुशाहिद हुसैन सैयद ने कहा, "इस क्षेत्र के लिए एक नया सुरक्षा ढांचा उभरता दिख रहा है, जो ग्लोबल साउथ के देशों पर केंद्रित है।"
सिर्फ कतर की राजधानी में हुआ हमला ही नहीं, बल्कि ईरान और यमन के हूती विद्रोहियों के हमलों के बीच वाशिंगटन की उदासीनता ने रियाद और अबू धाबी को भी निराश किया है। खासकर 2022 में अबू धाबी पर हुए हूती हमले और हाल ही में इजरायल की आक्रामकता ने इन देशों के असंतोष को और गहरा कर गिया है। यही वजह है कि सऊदी अरब ने पाकिस्तान जैसे सैन्य साझेदार को औपचारिक रूप से शामिल करने का फैसला लिया।
सऊदी अरब को पाकिस्तान पर ज्यादा भरोसा
पाकिस्तान, आर्थिक मदद के लिए दशकों से सऊदी अरब पर निर्भर रहा है। इसके अलावा, पाकिस्तान और सऊदी अरब की सैन्य साझेदारी नई नहीं है। 1960 के दशक से पाकिस्तानी अधिकारी सऊदी सेना को प्रशिक्षण देते आए हैं और आज भी सैकड़ों पाकिस्तानी सैनिक, सऊदी अरब में तैनात हैं। नए समझौते से इन सैन्य संबंधों को और गहराई मिलेगी। एक्सपर्ट्स का मानना है, कि पाकिस्तान के लिए यह कदम दोतरफा लाभ का सौदा है। एक तरफ वह सऊदी समर्थन के जरिये अपनी अर्थव्यवस्था के लिए और भी ज्यादा पैकेज हासिल करेगा, वहीं दूसरी तरफ वो भारत और ईरान जैसे विरोधियों को भी संदेश देने की कोशिश करेगा।
वॉशिंगटन पोस्ट से एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस समझौते के जोखिम भी कम नहीं हैं। पाकिस्तान अब प्रत्यक्ष रूप से मध्य-पूर्वी संघर्षों का हिस्सा बन सकता है, जिससे हूती विद्रोहियों या अन्य क्षेत्रीय ताकतों की तरफ से सीधी प्रतिक्रिया मिल सकती है। बावजूद इसके, पाकिस्तान की सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व को लगता है कि फायदे, होने वाले नुकसान के मुकाबले कहीं ज्यादा हैं। पाकिस्तान, इस्लामिक दुनिया का रक्षक बनने की कोशिश तो सालों से करता ही आया है। दूसरी तरफ, सऊदी अरब के पास दुनिया के सबसे बड़े रक्षा बजटों में से एक है और वह पाकिस्तान के लिए आर्थिक मदद, सैन्य उपकरण और रोजगार उपलब्ध करवा सकता है। इसीलिए पाकिस्तान, इसे बहुत बड़ी डिप्लोमेटिक जीत मान रहा है। खासकर शहबाज शरीफ के लिए अपने घरेलू दर्शकों के सामने पीठ ठोकने का शानदार मौका मिल गया है।
You may also like
दुर्गा पूजा में शांति व्यवस्था बनाए रखने को लेकर मॉक ड्रिल
आईआईटी भिलाई फेज-2 निर्माण की आधारशिला युवाओं के लिए बड़ी सौगात : गुरु खुशवंत साहेब
भागलपुर में विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारी को लेकर समीक्षा बैठक
पंजाब : अमृतसर के गग्गड़ गांव के 3 परिवारों की हुई घर वापसी, ईसाई धर्म छोड़ फिर अपनाया सिख रूप
नवाब जान खान की बड़ी जीत, यूपी विधानसभा में मिली अहम जिम्मेदारी!