नई दिल्ली: ठीक 68 साल पहले 3 नवंबर की वो तारीख थी जब धरती की सीमाएं पहली बार किसी प्राणी ने लांघीं। सोवियत संघ ने इस दिन 'स्पुतनिक-2' नाम का यान अंतरिक्ष में भेजा, और उसके भीतर बैठी थी लाइका, एक छोटी सी सड़क पर भटकने वाली फीमेल डॉग, जो जल्द ही इतिहास बन गई। लाइका को मास्को की गलियों से पकड़ा गया था। वह कोई विशेष नस्ल की या प्रशिक्षित जानवर नहीं थी, पर वैज्ञानिकों ने उसे इसलिए चुना क्योंकि वह ठंड और भूख में जीना जानती थी। उन्हें विश्वास था कि वह विषम और विपरीत परिस्थितियों में अपना हौसला नहीं खोएगी।
लाइका की हुई थी कड़ी ट्रेनिंग
बताया जाता है कि काफी कड़ी ट्रेनिंग के बाद लाइका को मिशन के लिए ज्यादा उपयुक्त माना गया। स्पुतनिक-2 मिशन मानव से पहले यह साबित करने के लिए था कि क्या कोई जीव पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बाहर जीवित रह सकता है। लॉन्च के समय पूरी दुनिया की निगाहें आसमान पर थीं। यह शीत युद्ध का दौर था, और अमेरिका-सोवियत संघ की स्पेस रेस अपने चरम पर थी। जब स्पुतनिक-2 ने उड़ान भरी, तो सोवियत वैज्ञानिकों ने घोषणा की, “लाइका अंतरिक्ष में जाने वाली पहली जीव है।” यह मानव सभ्यता की उपलब्धि भी थी और एक भावनात्मक पल भी।
सैटेलाइट कैप्सूल में रखा गया.. बॉडी पर सेंसर
डॉ. व्लादिमीर याज्डोव्स्की, जो सोवियत स्पेस प्रोग्राम का हिस्सा रहे रूसी डॉक्टरों में से एक थे ने उसे "शांत और आकर्षक" वाला जीव बताया था। लॉन्च से एक रात पहले, डॉ. याज्डोव्स्की ने कथित तौर पर लाइका के साथ ज्यादा समय बिताया—क्योंकि उन्हें पता था कि यह उसका आखिरी समय होगा। 31 अक्टूबर, 1957 को, लाइका को सैटेलाइट कैप्सूल में रखा गया; उसे ध्यान से तैयार किया गया, और यात्रा के दौरान उसकी हार्ट रेट और सांस लेने पर नजर रखने के लिए उसके शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर सेंसर लगाए गए।
नाक पर किस कर कहा गुडबाय
3 नवंबर को आखिरकार उसके कैप्सूल का दरवाजा बंद करने से पहले, रूसी इंजीनियर येवगेनी शाबारोव ने 'रोड्स टू स्पेस: एन ओरल हिस्ट्री ऑफ द सोवियत स्पेस प्रोग्राम' में बताया, “हमने उसकी नाक पर किस किया और उसे गुडबाय कहा, हम जानते थे कि वह इस फ्लाइट में जिंदा नहीं बचेगी। हुआ भी कुछ ऐसा ही! लाइका जीवित वापस नहीं लौट सकी। मिशन में पुनर्प्रवेश की कोई व्यवस्था नहीं थी। अनुमान है कि लॉन्च के कुछ ही घंटों बाद गर्मी और तनाव के कारण उसकी मौत हो गई। कई पशु प्रेमियों ने रूस के इस प्रयोग की काफी आलोचना भी की।
व्यर्थ नहीं गई लाइका की कुर्बानी
फिर भी, लाइका की कुर्बानी व्यर्थ नहीं गई। उसके बाद के मिशनों ने जीवन-समर्थन प्रणाली, सुरक्षा मॉड्यूल और मानव स्पेस फ्लाइट की तकनीक को बेहतर बनाया गया। 1961 में जब यूरी गगारिन अंतरिक्ष में गए, तो कहा गया, “हम लाइका की देन हैं। आज मास्को में उसके नाम पर एक स्मारक है जो दुनिया कोहम इंसानों के सबसे वफादार मित्र के बलिदान की याद दिलाता है।
लाइका की हुई थी कड़ी ट्रेनिंग
बताया जाता है कि काफी कड़ी ट्रेनिंग के बाद लाइका को मिशन के लिए ज्यादा उपयुक्त माना गया। स्पुतनिक-2 मिशन मानव से पहले यह साबित करने के लिए था कि क्या कोई जीव पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बाहर जीवित रह सकता है। लॉन्च के समय पूरी दुनिया की निगाहें आसमान पर थीं। यह शीत युद्ध का दौर था, और अमेरिका-सोवियत संघ की स्पेस रेस अपने चरम पर थी। जब स्पुतनिक-2 ने उड़ान भरी, तो सोवियत वैज्ञानिकों ने घोषणा की, “लाइका अंतरिक्ष में जाने वाली पहली जीव है।” यह मानव सभ्यता की उपलब्धि भी थी और एक भावनात्मक पल भी।
सैटेलाइट कैप्सूल में रखा गया.. बॉडी पर सेंसर
डॉ. व्लादिमीर याज्डोव्स्की, जो सोवियत स्पेस प्रोग्राम का हिस्सा रहे रूसी डॉक्टरों में से एक थे ने उसे "शांत और आकर्षक" वाला जीव बताया था। लॉन्च से एक रात पहले, डॉ. याज्डोव्स्की ने कथित तौर पर लाइका के साथ ज्यादा समय बिताया—क्योंकि उन्हें पता था कि यह उसका आखिरी समय होगा। 31 अक्टूबर, 1957 को, लाइका को सैटेलाइट कैप्सूल में रखा गया; उसे ध्यान से तैयार किया गया, और यात्रा के दौरान उसकी हार्ट रेट और सांस लेने पर नजर रखने के लिए उसके शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर सेंसर लगाए गए।
नाक पर किस कर कहा गुडबाय
3 नवंबर को आखिरकार उसके कैप्सूल का दरवाजा बंद करने से पहले, रूसी इंजीनियर येवगेनी शाबारोव ने 'रोड्स टू स्पेस: एन ओरल हिस्ट्री ऑफ द सोवियत स्पेस प्रोग्राम' में बताया, “हमने उसकी नाक पर किस किया और उसे गुडबाय कहा, हम जानते थे कि वह इस फ्लाइट में जिंदा नहीं बचेगी। हुआ भी कुछ ऐसा ही! लाइका जीवित वापस नहीं लौट सकी। मिशन में पुनर्प्रवेश की कोई व्यवस्था नहीं थी। अनुमान है कि लॉन्च के कुछ ही घंटों बाद गर्मी और तनाव के कारण उसकी मौत हो गई। कई पशु प्रेमियों ने रूस के इस प्रयोग की काफी आलोचना भी की।
व्यर्थ नहीं गई लाइका की कुर्बानी
फिर भी, लाइका की कुर्बानी व्यर्थ नहीं गई। उसके बाद के मिशनों ने जीवन-समर्थन प्रणाली, सुरक्षा मॉड्यूल और मानव स्पेस फ्लाइट की तकनीक को बेहतर बनाया गया। 1961 में जब यूरी गगारिन अंतरिक्ष में गए, तो कहा गया, “हम लाइका की देन हैं। आज मास्को में उसके नाम पर एक स्मारक है जो दुनिया कोहम इंसानों के सबसे वफादार मित्र के बलिदान की याद दिलाता है।
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