नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक महिला द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की वंशज होने का दावा किया था और अपनी वंशावली का हवाला देते हुए लाल किले पर कब्ज़ा करने की मांग की थी। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार की पीठ ने याचिका को पूरी तरह से गलत बताते हुए कहा, "केवल लाल किला ही क्यों? फतेहपुर सीकरी क्यों नहीं? उन्हें भी क्यों छोड़ दिया जाए? रिट पूरी तरह से गलत है। खारिज की जाती है।"लाल किला 17वीं सदी का मुगलकालीन किला है। यह दिल्ली की सबसे खास ऐतिहासिक इमारतों में से एक है। यह किला बहादुर शाह जफर द्वितीय के परपोते की विधवा को सौंपने की मांग की जा रही है। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने सुल्ताना बेगम की याचिका पर सवाल उठाया। चीफ जस्टिस ने हैरानी जताते हुए कहा, "क्या आप इस पर बहस करना चाहती हैं?" सुल्ताना बेगम हावड़ा, कोलकाता के पास रहती हैं। उन्होंने लाल किले पर मालिकाना हक मांगा था। उनका कहना था कि वह असली मालिकों, यानी मुगल बादशाहों की सीधी वंशज हैं। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने लाल किला मुगलों से छीन लिया था। बहादुर शाह जफर द्वितीय ने औपनिवेशिक शासकों के खिलाफ विद्रोह का समर्थन किया था। इसलिए उन्हें देश से निकाल दिया गया और उनकी जमीन और संपत्ति जब्त कर ली गई।सुल्ताना बेगम ने सरकार से वित्तीय सहायता की भी मांग की थी। उन्होंने कहा कि अगर सरकार उन्हें पैसे दे तो वह अपना दावा छोड़ देंगी। यह पहली बार नहीं है जब उन्होंने ऐसी मांग की है। 2021 में उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में भी अर्जी दी थी। तब सुल्ताना बेगम ने कहा था कि 1960 में सरकार ने उनके (अब दिवंगत) पति बेदार बख्त के दावे को माना था। बेदार बख्त, बहादुर शाह जफर द्वितीय के वंशज और वारिस थे।इसके बाद सरकार ने उन्हें पेंशन देना शुरू कर दिया था। 1980 में उनकी मृत्यु के बाद यह पेंशन सुल्ताना बेगम को मिलने लगी। सुल्ताना बेगम का कहना था कि यह पेंशन उनकी जरूरतों के लिए काफी नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने 'गैरकानूनी' तरीके से लाल किले पर कब्जा कर लिया है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार उन्हें पर्याप्त मुआवजा नहीं दे रही है। यह उनकी संपत्ति और ऐतिहासिक महत्व के हिसाब से सही नहीं है। सुल्ताना बेगम का कहना था कि यह उनके मौलिक अधिकारों और संविधान के अनुच्छेद 300A का उल्लंघन है। अनुच्छेद 300A कहता है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से कानून के अनुसार ही वंचित किया जा सकता है। हालांकि, दिल्ली हाई कोर्ट ने उनकी इस याचिका को खारिज कर दिया था। तीन साल बाद उन्होंने उस फैसले के खिलाफ अपील की। लेकिन उसे फिर से खारिज कर दिया गया।
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