Jobs in Australia: भारतीयों के बीच आईटी इंडस्ट्री में जॉब पाने का क्रेज इतना ज्यादा है कि वे विदेशों में जाकर एडमिशन लेते हैं, ताकि डिग्री मिलने पर उन्हें वहीं नौकरी मिल जाए। अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में इस वक्त आईटी इंडस्ट्री का हाल बेहाल है, जिस वजह से ज्यादातर भारतीय ऑस्ट्रेलिया का रुख कर रहे हैं। हालांकि, ऑस्ट्रेलिया में पढ़ने जाने वाले स्टूडेंट्स को सावधान हो जाना चाहिए, क्योंकि यहां पर भी नौकरियों की किल्लत है। खासतौर पर डेटा साइंस और डेटा एनालिटिक्स की फील्ड में।
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दरअसल, ऑस्ट्रेलिया में काम कर रहे एक भारतीय टेक वर्कर ने यहां आकर डेटा साइंस या इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी की पढ़ाई करने वाले छात्रों को वॉर्निंग दी है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म रेडिट पर लिखा गया उसका पोस्ट वायरल भी हो गया है। उसने अपनी पोस्ट में चेताया है कि भारतीय छात्र यहां के सिकुड़ रहे जॉब मार्केट को समझे बिना आंख मूंद कर महंगे कोर्सेज को पढ़ने में पैसा लगा रहे हैं। उन्हें ऑस्ट्रेलिया की टेक इंडस्ट्री की हकीकत भी नहीं मालूम है कि यहां खुद नौकरियों की किल्लत है।
'भारत में पहले ही ऑफशोर हो रही जॉब'
डेटा एनालिटिक्स की फील्ड में काम कर रहे भारतीय ने कहा, 'मैं रेडिट पर बहुत से भारतीय छात्रों को आईटी या डेटा साइंस की डिग्री के लिए ऑस्ट्रेलिया आने के बारे में पोस्ट करते हुए देखता हूं। पैसे खर्च करने से पहले मैं आपको यहां की हकीकत बताना चाहता हूं।' उसने बताया कि किस तरह टेक और डेटा से जुड़े काम को धीरे-धीरे भारत और फिलीपींस जैसे देशों में ट्रांसफर किया जा रहा है। ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों को ऐसा करने में मुनाफा भी हो रहा है।
उसने कहा, 'टेक जॉब्स वैसे भी भारत जैसे देशों में ऑफशोर (ट्रांसफर) की जा रही हैं। जब कंपनी भारत में किसी लोकल शख्स से एक तिहाई दाम में काम करवा सकती है, तो वो आपको क्यों हायर करेगी? टेक बजट भारत और फिलीपींस जैसे विदेशी देशों में इस्तेमाल हो रहे हैं। मेरा एक क्लाइंट है, जो इस समय फिलीपींस में बड़े पैमाने पर वहां के लोगों की हायरिंग कर रहा है।'
ऑस्ट्रेलिया की टेक इंडस्ट्री छोटी
भारतीय वर्कर ने ये भी बताया कि ऑस्ट्रेलिया की टेक इंडस्ट्री काफी छोटी है। इस वजह से ज्यादातर कंपनियां स्थानीय लोगों या फिर परमानेंट रेजिडेंट को नौकरी देने में प्राथमिकता देती हैं। उसने कहा, 'ब्रिटेन और अमेरिका की तुलना में ऑस्ट्रेलिया में टेक इंडस्ट्री छोटी है। ये टेक पावरहाउस भी नहीं है। जॉब्स सीमित हैं। ज्यादातर कंपनियां PR होल्डर या नागरिकों को जॉब देती हैं। कंपनियां किसी ऐसे शख्स में निवेश नहीं करना चाहती हैं, जिसका वीजा दो साल में एक्सपायर हो जाए।'
डेटा एनालिटिक्स डिग्री की वैल्यू नहीं
टेक वर्कर ने डेटा साइंस डिग्री की वैल्यू पर भी सवाल उठाया। उसने कहा, 'डेटा साइंस की डिग्री लगभग बेकार है। मैं काम पर डेटा एनालिटिक्स करता हूं और मैंने यूनिवर्सिटी में इसकी पढ़ाई कभी नहीं की। मैंने यूट्यूब और वर्क प्रोजेक्ट्स से Alteryx, Power BI, Python, Power Query और वेब ऐप बिल्डिंग सीखा है।' भारतीय ने बताया कि उसने खुद सिडनी से एक डेटा साइंस कोर्स किया था, जो पूरी तरह से बेकार था। उसमें SQL के बेसिक सिखाए गए।
जॉब के लिए जबरदस्त कॉम्पिटिशन
भारतीय वर्कर ने बताया कि ऑस्ट्रेलिया में जॉब के लिए काफी ज्यादा कॉम्पिटिशन भी है। उसने कहा, 'किसी भी यूनिवर्सिटी में चले जाओ। आपको 100 से ज्यादा स्टूडेंट्स डेटा साइंस में मास्टर्स की डिग्री और 200 से ज्यादा आईटी में बैचलर डिग्री लेकर बाहर निकलते हुए दिखेंगे। इस संख्या को अब ऑस्ट्रेलिया की 8-10 प्रमुख यूनिवर्सिटी से गुणा कर लो। फिर आपको पता चलेगा कि यहां पर कितना ज्यादा कॉम्पिटिशन है।' उसने ये भी कहा कि जो लोग AI का यूज नहीं कर रहे हैं, उन्हें पिछड़ा माना जा रहा है।
उसने कहा, 'डेटा साइंस या आईटी की डिग्री के लिए ऑस्ट्रेलिया आकर अपना समय और पैसा बर्बाद न करें। यहां जॉब मार्केट भरा हुआ है, ऑफशोरिंग हो रही है और कंपनियां पीआर और नागरिकों को जॉब में प्राथमिकता देती हैं।'
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दरअसल, ऑस्ट्रेलिया में काम कर रहे एक भारतीय टेक वर्कर ने यहां आकर डेटा साइंस या इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी की पढ़ाई करने वाले छात्रों को वॉर्निंग दी है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म रेडिट पर लिखा गया उसका पोस्ट वायरल भी हो गया है। उसने अपनी पोस्ट में चेताया है कि भारतीय छात्र यहां के सिकुड़ रहे जॉब मार्केट को समझे बिना आंख मूंद कर महंगे कोर्सेज को पढ़ने में पैसा लगा रहे हैं। उन्हें ऑस्ट्रेलिया की टेक इंडस्ट्री की हकीकत भी नहीं मालूम है कि यहां खुद नौकरियों की किल्लत है।
'भारत में पहले ही ऑफशोर हो रही जॉब'
डेटा एनालिटिक्स की फील्ड में काम कर रहे भारतीय ने कहा, 'मैं रेडिट पर बहुत से भारतीय छात्रों को आईटी या डेटा साइंस की डिग्री के लिए ऑस्ट्रेलिया आने के बारे में पोस्ट करते हुए देखता हूं। पैसे खर्च करने से पहले मैं आपको यहां की हकीकत बताना चाहता हूं।' उसने बताया कि किस तरह टेक और डेटा से जुड़े काम को धीरे-धीरे भारत और फिलीपींस जैसे देशों में ट्रांसफर किया जा रहा है। ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों को ऐसा करने में मुनाफा भी हो रहा है।
उसने कहा, 'टेक जॉब्स वैसे भी भारत जैसे देशों में ऑफशोर (ट्रांसफर) की जा रही हैं। जब कंपनी भारत में किसी लोकल शख्स से एक तिहाई दाम में काम करवा सकती है, तो वो आपको क्यों हायर करेगी? टेक बजट भारत और फिलीपींस जैसे विदेशी देशों में इस्तेमाल हो रहे हैं। मेरा एक क्लाइंट है, जो इस समय फिलीपींस में बड़े पैमाने पर वहां के लोगों की हायरिंग कर रहा है।'
ऑस्ट्रेलिया की टेक इंडस्ट्री छोटी
भारतीय वर्कर ने ये भी बताया कि ऑस्ट्रेलिया की टेक इंडस्ट्री काफी छोटी है। इस वजह से ज्यादातर कंपनियां स्थानीय लोगों या फिर परमानेंट रेजिडेंट को नौकरी देने में प्राथमिकता देती हैं। उसने कहा, 'ब्रिटेन और अमेरिका की तुलना में ऑस्ट्रेलिया में टेक इंडस्ट्री छोटी है। ये टेक पावरहाउस भी नहीं है। जॉब्स सीमित हैं। ज्यादातर कंपनियां PR होल्डर या नागरिकों को जॉब देती हैं। कंपनियां किसी ऐसे शख्स में निवेश नहीं करना चाहती हैं, जिसका वीजा दो साल में एक्सपायर हो जाए।'
डेटा एनालिटिक्स डिग्री की वैल्यू नहीं
टेक वर्कर ने डेटा साइंस डिग्री की वैल्यू पर भी सवाल उठाया। उसने कहा, 'डेटा साइंस की डिग्री लगभग बेकार है। मैं काम पर डेटा एनालिटिक्स करता हूं और मैंने यूनिवर्सिटी में इसकी पढ़ाई कभी नहीं की। मैंने यूट्यूब और वर्क प्रोजेक्ट्स से Alteryx, Power BI, Python, Power Query और वेब ऐप बिल्डिंग सीखा है।' भारतीय ने बताया कि उसने खुद सिडनी से एक डेटा साइंस कोर्स किया था, जो पूरी तरह से बेकार था। उसमें SQL के बेसिक सिखाए गए।
जॉब के लिए जबरदस्त कॉम्पिटिशन
भारतीय वर्कर ने बताया कि ऑस्ट्रेलिया में जॉब के लिए काफी ज्यादा कॉम्पिटिशन भी है। उसने कहा, 'किसी भी यूनिवर्सिटी में चले जाओ। आपको 100 से ज्यादा स्टूडेंट्स डेटा साइंस में मास्टर्स की डिग्री और 200 से ज्यादा आईटी में बैचलर डिग्री लेकर बाहर निकलते हुए दिखेंगे। इस संख्या को अब ऑस्ट्रेलिया की 8-10 प्रमुख यूनिवर्सिटी से गुणा कर लो। फिर आपको पता चलेगा कि यहां पर कितना ज्यादा कॉम्पिटिशन है।' उसने ये भी कहा कि जो लोग AI का यूज नहीं कर रहे हैं, उन्हें पिछड़ा माना जा रहा है।
उसने कहा, 'डेटा साइंस या आईटी की डिग्री के लिए ऑस्ट्रेलिया आकर अपना समय और पैसा बर्बाद न करें। यहां जॉब मार्केट भरा हुआ है, ऑफशोरिंग हो रही है और कंपनियां पीआर और नागरिकों को जॉब में प्राथमिकता देती हैं।'
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