राजा जनमेजय ने भयंकर रोग से पीड़ित होकर रोग से छुटकारा पाने का उपाय जानना चाहा, जिस पर ऋषि ने बताया कि, ‘उपाय तो मैं बता रहा हूं, तुम उसका आचरण नहीं कर सकोगे, यानी उपाय पर अमल नहीं कर पाओगे, क्योंकि अब भी तुम पर होनी की छाया है, जो तुम्हें कुछ करने नहीं देगी।’ ऋषि ने उपाय बताया कि, ‘तुम मेरे शिष्य से अपने पूर्वजों की महाभारत कथा के इतिहास का श्रवण करो, लेकिन ध्यान रखना, जो प्रसंग तुम्हें सुनाया जाए, उस पर शंका मत करना। उसको पूरे विश्वास के साथ सत्य मानकर सुनते रहना। एक-एक प्रसंग सुनते-सुनते तुम्हारे शरीर का एक-एक अंग रोगमुक्त होता जाएगा।’ ऋषि ने चेतावनी को फिर से दोहराया, ‘लेकिन जहां तुमने किसी भी प्रसंग को कपोल कल्पित कह दिया, तो शरीर के उस अंग का कोढ़ सही नहीं होगा।’ ऋषि ने बताया कि होनी में लिखा है कि वह महाभारत की कथा सुनने पर शंका अवश्य करेगा, जिससे उसको कोढ़ से छुटकारा नहीं मिलेगा।
वेदव्यास जी के शिष्य ने कथा सुनाना प्रारम्भ किया। महाबली भीम के पास अतुलित बल था, वे शत्रुओं के विशालकाय हाथियों को उनकी सूंड़ से अपने सिर से उंचा उठाकर आकाश की ओर यूं उछाल दिया करते थे, जैसे बालक आकाश में पत्थर फेंकते हैं। वे हाथी ब्रह्माण्ड में सैकड़ों योजन दूर इतना समय बीतने पर आज भी चक्कर लगा रहे हैं और इतना काल बीतने पर भी भूमि पर लौटकर नहीं आए हैं। जैसे ही राजा ने यह सुना, वह अपने पर नियंत्रण न कर सके और जोर से अट्टहास करते हुए बोले, यह तो असम्भव है, ऐसा हो ही नहीं सकता।’ इस पर वेदव्यास जी के शिष्य ने सत्यता को प्रमाणित करने के लिए अपना दाहिना हाथ उठाकर आकाश की ओर कुछ संकेत किया। राजा जनमेजय यह देखकर चकित हो गए कि उसी क्षण धम्म की तेज आवाज के साथ एक बहुत बड़ा हाथी उनकी कुटिया के आगे गिर पड़ा।
राजा को सम्बोधित करते हुए मुनि ने कहा, ‘देखो राजन! यह हाथी महाबली भीम के द्वारा उछाले गए हाथियों में से एक हाथी है, जो अभी तक ब्रह्माण्ड में चक्कर काट रहा था, तुम्हारी संतुष्टि के लिए हमने इसे गिरा दिया। लेकिन राजन बड़े खेद की बात है, तुमने चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया और महाभारत की कथा को कपोल-कल्पित कल्पना समझा, जिसका फल तुम्हें अवश्य भोगना पड़ेगा।’ अपने पूर्वजों पर विश्वास न करके, उनका उपहास करने के कारण तुम्हारे शरीर के एक अंग में कोढ़ शेष रह जाएगा, जो सही नहीं होगा और उसी से तुम्हारी मृत्यु होगी और हुआ भी वही जो होनी को स्वीकार था। राजा के सब अंग ठीक हो गए, परन्तु घुटने पर कोढ़ रह गया था, जिससे उनकी मृत्यु हो गई।
वेदव्यास जी के शिष्य ने कथा सुनाना प्रारम्भ किया। महाबली भीम के पास अतुलित बल था, वे शत्रुओं के विशालकाय हाथियों को उनकी सूंड़ से अपने सिर से उंचा उठाकर आकाश की ओर यूं उछाल दिया करते थे, जैसे बालक आकाश में पत्थर फेंकते हैं। वे हाथी ब्रह्माण्ड में सैकड़ों योजन दूर इतना समय बीतने पर आज भी चक्कर लगा रहे हैं और इतना काल बीतने पर भी भूमि पर लौटकर नहीं आए हैं। जैसे ही राजा ने यह सुना, वह अपने पर नियंत्रण न कर सके और जोर से अट्टहास करते हुए बोले, यह तो असम्भव है, ऐसा हो ही नहीं सकता।’ इस पर वेदव्यास जी के शिष्य ने सत्यता को प्रमाणित करने के लिए अपना दाहिना हाथ उठाकर आकाश की ओर कुछ संकेत किया। राजा जनमेजय यह देखकर चकित हो गए कि उसी क्षण धम्म की तेज आवाज के साथ एक बहुत बड़ा हाथी उनकी कुटिया के आगे गिर पड़ा।
राजा को सम्बोधित करते हुए मुनि ने कहा, ‘देखो राजन! यह हाथी महाबली भीम के द्वारा उछाले गए हाथियों में से एक हाथी है, जो अभी तक ब्रह्माण्ड में चक्कर काट रहा था, तुम्हारी संतुष्टि के लिए हमने इसे गिरा दिया। लेकिन राजन बड़े खेद की बात है, तुमने चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया और महाभारत की कथा को कपोल-कल्पित कल्पना समझा, जिसका फल तुम्हें अवश्य भोगना पड़ेगा।’ अपने पूर्वजों पर विश्वास न करके, उनका उपहास करने के कारण तुम्हारे शरीर के एक अंग में कोढ़ शेष रह जाएगा, जो सही नहीं होगा और उसी से तुम्हारी मृत्यु होगी और हुआ भी वही जो होनी को स्वीकार था। राजा के सब अंग ठीक हो गए, परन्तु घुटने पर कोढ़ रह गया था, जिससे उनकी मृत्यु हो गई।
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