भाद्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी जब धरती पर प्रकट हुए भगवान विष्णु अपना आठवां अवतार लेकर। सांवले सोलने मन को मोहने वाले। जिनके जन्म के साथ ही धरती पर चमत्कारिक घटनाएं होने लगी। भगवान ने जैसे ही अवतार ग्रहण किया कंस के कारागार के दरवाजे खुल गए। प्रहरी जो इस इंतजार में बैठे थे कि मैया देवकी के बालक का जन्म होते ही कंस को सूचित करेंगे वह स्वयं अचेत हो गए और मेघ यूं गर्जन करने लगे जैसे विजय का शंखनाद हो। कह रहे हों कि रे कंस तेरा अंत तो निकट आ गया।
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भगवान ने अवतार लेते ही माता देवकी और पिता वसुदेवजी को सर्वप्रथम अपने वास्तविक चतुर्भुज स्वरूप के दर्शन करवाए और फिर उनके ही द्वारा वंदना करने पर उनकी स्मृति को मिटाकर शिशु लीला करने लगे। भगवान के अवतार लेने की सूचना उनकी प्रिय कालिंदी यानी यमुना मैया को भी लग गई थी और वह भी खुशी से झूम रही थी जिससे यमुना का जल उफान मार रहा था।
भजन, जन्मे हैं कृष्ण कन्हाई, गोकुल में बाजे बधाई। .
दूसरी तरफ आकाशवाणी ने वसुदेवजी से कहा कि शिशु को लेकर यमुना पार नंदरायजी के घर पहुंचा दो और वहां से नंदरायजी की कन्या को लेकर आ आ जाओ। प्रभु की ऐसी लीला थी कि सुध खोए हुए वसुदेवजी तूफानी हवा और काले घनेरे मेघों की गर्जना के बीच भी कन्हैया को लेकर निकल पड़े कंस के कारागार से और चल पड़े यमुना पार करने।
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प्रभु की लीला देखिए कहीं जन्मे और कहीं शिशु लीला करने चल पड़े क्योंकि उनको अपनी माता को दिया पूर्वजन्म का वचन भी तो निभाना था। कन्हैया को लिए जैसे ही वसुदेवजी कारागार से बाहर आए हवा में एक टोकरी उड़कर आ गई, देखिए प्रभु अपना इंतजाम कैसे करते हैं और उनको जिनसे जो काम करवाना होता है कैसे करवा लेते हैं। अब टोकरी में रखकर वसुदेवजी चले तो बरसात से नन्हे कान्हा को भीगने का भय था, लेकिन वसुदेवजी तो बस प्रभु की इच्छा से सब किए जा रहे थे उन्हें तो कुछ सुध ही नहीं था। आगे जैसे ही चले हनहनाते हुए शेषनागजी आ गए लीलाधारी श्रीकृष्ण की सेवा में वसुदेवजी आगे-आगे लल्ला को लिए जा रहे थे और पीछे-पीछे भगवान के सेवक और भक्त शेषनागजी अपने विशालकाय फन की छतरी किए चल रहे थे।
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वसुदेवजी यमुना में अब प्रवेश कर गए लेकिन यमुना मैया को तो आज कुछ और ही हो गया था। श्रीकृष्ण के आने की खुशी में उछल रही थीं उस पर प्रभु ने उनके आंगन में प्रवेश किया तो उनके चरणों का रज लेने के लिए विह्वल हो उठीं और प्रभु कितने लीलाधारी हैं कि जैसे ही यमुना का जल उनके पैरों तक पहुंचता प्रभु अपने पैर ऊपर कर लेते। यमुना मैया को प्रभु की यह लीला और अधीर किए जा रही थी। उधर वसुदेवजी को यमुना पार करने में अब परेशानी होने लगी थी। प्रभु जो जगत के पिता हैं वह अपने लौकिक पिता वसुदेवजी को परेशान देखकर और उधर यमुना मैया की अधीरता को समझकर मंद-मंद मुस्काए और लीला को समेट लिया। यमुना मैया ने इधर प्रभु के चरण को छूआ और उधर यमुना का जल भी शांत हो गया। यही तो प्रभु की लीला जो प्रभु के चरणों को छू लेता है उसका हृदय और मन शांत हो जाता है। अधीरता उससे छूटकर दूर चली जाती है। यमुना मैया के शांत हो जाने पर वसुदेवजी कुशलता पूर्वक गोकुल पहुंच गए। इसलिए मथुरा में जन्माष्टमी होने के बाद अगले दिन गोकुलाष्टमी का उत्सव मनाया जाता है और श्रद्धालु झूम झूमकर गाते हें, नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की।
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नंद बाबा भी उधर वसुदेवजी के आगमन की प्रतीक्षा में द्वार पर ही खड़े थे। उन्होंने वसुदेवजी के हाथों से कन्हैया को ले लिया और उन्हें अपनी नवजात कन्या जो स्वयं भगवान विष्णु की योगमाया रूप से अवतरित हुई थीं। वसुदेवजी को सौंप दिया। इसके बाद वसुदेवजी वापस कारागार में आए फिर सब कुछ वैसा ही गया जैसा पहले था। कारागार के द्वार बंद हो गए। और कंस को उसके काल के अवतरित होने की सूचना देने के लिए कन्या रूपी योगमाया देवी ने हाहाकार करते हुए रोना शुरू कर दिया और कंस ने जैसे ही उस कन्या को अपने हाथों में लेकर शिला पर मारना चाहा कन्या आकाश में उड़कर अपनी मूलप्रकृति में दृश्य हो गईं और अष्ट भुजाओं को धारण कर देवी ने कहा, रे कंस तेरा अंत करने वाला जन्म ले चुका है।
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उधर 16 कलाओं से संपन्न पूर्ण परमेश्वर कृष्ण ने नंदबाबा के आंगन में अपनी लीला शुरू कर दी। प्रकृति आनंदित होकर झूमने लगी और सभी लोग नंदबाबा और यशोदा मैया को बधैया देने पहुंचने लगे। कन्हैया ने तो अपने आने की सूचना गोपियों को भी दे दिया था। क्योंकि जिनके मन में प्रभु के प्रति प्रेम होता है वही प्रभु की भक्ति और स्वरूप को समझ पाते हें और प्रभु उन्हीं को अपना काम सौंपते हैं। सो गोपियां लल्ला के आने की बधाई देने के लिए माखन की मटकी भी लेकर पहुंच गए।
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प्रभु का यह अवतार इस बात का भी संदेश देता है कि मानव देह में जनकल्याण के लिए जब प्रभु आते हैं कहीं जन्म लेते है और अपनी कर्म भूमि और लीला भूमि कहीं और बनाते हैं। तभी तो मथुरा में जन्मे, गोकुल में पले और द्वारिका को अपनी राजधानी बनाए। तो 16 कलाओं से संपन्न भगवान श्रीकृष्ण के अवतरण दिवस जन्माष्टमी पर भक्ति भाव से प्रभु का ध्यान कीजिए और उनकी लीलाओं का आनंद लीजिए। और मिलकर गाइए...जन्मे हैं कृष्ण कन्हाई, गोकुल में बाजे बधाई।
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भगवान ने अवतार लेते ही माता देवकी और पिता वसुदेवजी को सर्वप्रथम अपने वास्तविक चतुर्भुज स्वरूप के दर्शन करवाए और फिर उनके ही द्वारा वंदना करने पर उनकी स्मृति को मिटाकर शिशु लीला करने लगे। भगवान के अवतार लेने की सूचना उनकी प्रिय कालिंदी यानी यमुना मैया को भी लग गई थी और वह भी खुशी से झूम रही थी जिससे यमुना का जल उफान मार रहा था।
भजन, जन्मे हैं कृष्ण कन्हाई, गोकुल में बाजे बधाई। .
दूसरी तरफ आकाशवाणी ने वसुदेवजी से कहा कि शिशु को लेकर यमुना पार नंदरायजी के घर पहुंचा दो और वहां से नंदरायजी की कन्या को लेकर आ आ जाओ। प्रभु की ऐसी लीला थी कि सुध खोए हुए वसुदेवजी तूफानी हवा और काले घनेरे मेघों की गर्जना के बीच भी कन्हैया को लेकर निकल पड़े कंस के कारागार से और चल पड़े यमुना पार करने।
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प्रभु की लीला देखिए कहीं जन्मे और कहीं शिशु लीला करने चल पड़े क्योंकि उनको अपनी माता को दिया पूर्वजन्म का वचन भी तो निभाना था। कन्हैया को लिए जैसे ही वसुदेवजी कारागार से बाहर आए हवा में एक टोकरी उड़कर आ गई, देखिए प्रभु अपना इंतजाम कैसे करते हैं और उनको जिनसे जो काम करवाना होता है कैसे करवा लेते हैं। अब टोकरी में रखकर वसुदेवजी चले तो बरसात से नन्हे कान्हा को भीगने का भय था, लेकिन वसुदेवजी तो बस प्रभु की इच्छा से सब किए जा रहे थे उन्हें तो कुछ सुध ही नहीं था। आगे जैसे ही चले हनहनाते हुए शेषनागजी आ गए लीलाधारी श्रीकृष्ण की सेवा में वसुदेवजी आगे-आगे लल्ला को लिए जा रहे थे और पीछे-पीछे भगवान के सेवक और भक्त शेषनागजी अपने विशालकाय फन की छतरी किए चल रहे थे।
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वसुदेवजी यमुना में अब प्रवेश कर गए लेकिन यमुना मैया को तो आज कुछ और ही हो गया था। श्रीकृष्ण के आने की खुशी में उछल रही थीं उस पर प्रभु ने उनके आंगन में प्रवेश किया तो उनके चरणों का रज लेने के लिए विह्वल हो उठीं और प्रभु कितने लीलाधारी हैं कि जैसे ही यमुना का जल उनके पैरों तक पहुंचता प्रभु अपने पैर ऊपर कर लेते। यमुना मैया को प्रभु की यह लीला और अधीर किए जा रही थी। उधर वसुदेवजी को यमुना पार करने में अब परेशानी होने लगी थी। प्रभु जो जगत के पिता हैं वह अपने लौकिक पिता वसुदेवजी को परेशान देखकर और उधर यमुना मैया की अधीरता को समझकर मंद-मंद मुस्काए और लीला को समेट लिया। यमुना मैया ने इधर प्रभु के चरण को छूआ और उधर यमुना का जल भी शांत हो गया। यही तो प्रभु की लीला जो प्रभु के चरणों को छू लेता है उसका हृदय और मन शांत हो जाता है। अधीरता उससे छूटकर दूर चली जाती है। यमुना मैया के शांत हो जाने पर वसुदेवजी कुशलता पूर्वक गोकुल पहुंच गए। इसलिए मथुरा में जन्माष्टमी होने के बाद अगले दिन गोकुलाष्टमी का उत्सव मनाया जाता है और श्रद्धालु झूम झूमकर गाते हें, नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की।
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नंद बाबा भी उधर वसुदेवजी के आगमन की प्रतीक्षा में द्वार पर ही खड़े थे। उन्होंने वसुदेवजी के हाथों से कन्हैया को ले लिया और उन्हें अपनी नवजात कन्या जो स्वयं भगवान विष्णु की योगमाया रूप से अवतरित हुई थीं। वसुदेवजी को सौंप दिया। इसके बाद वसुदेवजी वापस कारागार में आए फिर सब कुछ वैसा ही गया जैसा पहले था। कारागार के द्वार बंद हो गए। और कंस को उसके काल के अवतरित होने की सूचना देने के लिए कन्या रूपी योगमाया देवी ने हाहाकार करते हुए रोना शुरू कर दिया और कंस ने जैसे ही उस कन्या को अपने हाथों में लेकर शिला पर मारना चाहा कन्या आकाश में उड़कर अपनी मूलप्रकृति में दृश्य हो गईं और अष्ट भुजाओं को धारण कर देवी ने कहा, रे कंस तेरा अंत करने वाला जन्म ले चुका है।
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उधर 16 कलाओं से संपन्न पूर्ण परमेश्वर कृष्ण ने नंदबाबा के आंगन में अपनी लीला शुरू कर दी। प्रकृति आनंदित होकर झूमने लगी और सभी लोग नंदबाबा और यशोदा मैया को बधैया देने पहुंचने लगे। कन्हैया ने तो अपने आने की सूचना गोपियों को भी दे दिया था। क्योंकि जिनके मन में प्रभु के प्रति प्रेम होता है वही प्रभु की भक्ति और स्वरूप को समझ पाते हें और प्रभु उन्हीं को अपना काम सौंपते हैं। सो गोपियां लल्ला के आने की बधाई देने के लिए माखन की मटकी भी लेकर पहुंच गए।
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प्रभु का यह अवतार इस बात का भी संदेश देता है कि मानव देह में जनकल्याण के लिए जब प्रभु आते हैं कहीं जन्म लेते है और अपनी कर्म भूमि और लीला भूमि कहीं और बनाते हैं। तभी तो मथुरा में जन्मे, गोकुल में पले और द्वारिका को अपनी राजधानी बनाए। तो 16 कलाओं से संपन्न भगवान श्रीकृष्ण के अवतरण दिवस जन्माष्टमी पर भक्ति भाव से प्रभु का ध्यान कीजिए और उनकी लीलाओं का आनंद लीजिए। और मिलकर गाइए...जन्मे हैं कृष्ण कन्हाई, गोकुल में बाजे बधाई।
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