आज की तेज़ और तनावपूर्ण जिंदगी में भूलने की समस्या आम हो गई है। कभी-कभी हम खुद को भूलने लगते हैं, नाम याद नहीं रहता या अचानक चीजें समझ में आने में दिक्कत होती है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह सामान्य भूलने की आदत है, या फिर मस्तिष्क से जुड़ी गंभीर समस्या जैसे ‘ब्रेन फॉग’ या ‘डिमेंशिया’ की शुरुआत?
ब्रेन फॉग और डिमेंशिया दोनों ही दिमागी कार्यों को प्रभावित करते हैं, लेकिन दोनों के बीच काफी महत्वपूर्ण अंतर होता है। सही पहचान और समय पर इलाज के लिए इन दोनों को समझना जरूरी है।
ब्रेन फॉग क्या है?
ब्रेन फॉग, जिसे ‘मानसिक धुंध’ भी कहा जाता है, एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति की सोचने-समझने की क्षमता थोड़ी धीमी हो जाती है। इसमें व्यक्ति ध्यान केंद्रित करने में परेशानी, याददाश्त कमजोर होना, मानसिक थकान, और सोचने में उलझन महसूस करता है।
ब्रेन फॉग का कारण आमतौर पर तनाव, नींद की कमी, पोषण की कमी, हार्मोनल बदलाव या मानसिक थकावट होता है। यह स्थिति अस्थायी होती है और उचित आराम, संतुलित आहार और जीवनशैली में बदलाव से सुधर सकती है।
डिमेंशिया क्या है?
डिमेंशिया एक गंभीर न्यूरोलॉजिकल विकार है, जो खासतौर पर बुजुर्गों में पाया जाता है। इसमें मस्तिष्क की कोशिकाएं धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, जिससे याददाश्त, सोचने-समझने, भाषा और व्यवहार में स्थायी और लगातार गिरावट आती है।
डिमेंशिया Alzheimer’s रोग का प्रमुख कारण है, लेकिन इसके अलावा कुछ अन्य कारण भी हो सकते हैं। यह एक प्रगतिशील बीमारी है, जिसका कोई पूर्ण इलाज नहीं है, लेकिन लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है।
ब्रेन फॉग और डिमेंशिया में अंतर
विशेषता ब्रेन फॉग डिमेंशिया
कारण तनाव, नींद की कमी, पोषण की कमी न्यूरोलॉजिकल क्षति, उम्र बढ़ना
लक्षण ध्यान की कमी, उलझन, मानसिक थकान गंभीर याददाश्त में कमी, भाषा और व्यवहार में बदलाव
प्रभाव अस्थायी और हल्का स्थायी और गंभीर
उपचार जीवनशैली में सुधार, आराम दवाएं, थेरेपी, लक्षण प्रबंधन
उम्र का प्रभाव किसी भी उम्र में हो सकता है मुख्यतः बुजुर्गों में होता है
कब करें डॉक्टर से संपर्क?
अगर भूलने की समस्या लगातार बढ़ रही हो।
रोजमर्रा के काम करने में दिक्कत हो।
भाषा या व्यवहार में बदलाव दिखे।
मानसिक स्थिति में अचानक गिरावट महसूस हो।
विशेषज्ञों की सलाह
न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. कहते हैं, “भूलने की समस्या के शुरुआती चरण में सही पहचान बेहद जरूरी है। ब्रेन फॉग को जीवनशैली में सुधार से ठीक किया जा सकता है, जबकि डिमेंशिया के लक्षण दिखते ही विशेषज्ञ की सलाह लेना आवश्यक है।”
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