भारत में हर साल लाखों युवा कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज़ से स्नातक बनकर निकलते हैं, लेकिन नौकरी पाने की होड़ में केवल डिग्री या अच्छे अंक पर्याप्त नहीं माने जाते। आज के प्रतिस्पर्धी दौर में कंपनियां फ्रेशर्स से सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि वास्तविक तकनीकी कौशल और समस्या सुलझाने की क्षमता की अपेक्षा रखती हैं।
शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि “अच्छे मार्क्स नौकरी दिला सकते हैं, लेकिन करियर में आगे बढ़ने के लिए स्किल्स ज़रूरी हैं।”
क्या कहती हैं कंपनियां?
कई शीर्ष कॉर्पोरेट कंपनियों और स्टार्टअप्स के HR प्रबंधकों से बातचीत में यह बात सामने आई कि उम्मीदवार के मार्क्स भले ही प्रारंभिक स्क्रीनिंग में मदद करें, लेकिन अंतिम चयन में टेक्निकल स्किल्स, कम्युनिकेशन एबिलिटी, टीम वर्क और लर्निंग एटीट्यूड को प्राथमिकता दी जाती है।
इन्फोसिस, टीसीएस, विप्रो, डेलॉइट जैसी बड़ी कंपनियों के HR विशेषज्ञ मानते हैं कि आज का इंडस्ट्री वातावरण तेजी से बदल रहा है। ऐसे में उन्हें ऐसे फ्रेशर्स चाहिए, जो नवीनतम तकनीकों जैसे डेटा एनालिटिक्स, AI, कोडिंग लैंग्वेज, UI/UX डिजाइन या डिजिटल मार्केटिंग में दक्ष हों।
मार्क्स बनाम स्किल्स: एक तुलनात्मक दृष्टिकोण
पहलू भूमिका
अच्छे अकादमिक मार्क्स प्रारंभिक चयन और स्क्रीनिंग में सहायक
तकनीकी स्किल्स प्रैक्टिकल कार्य और समस्या समाधान में निर्णायक
कम्युनिकेशन स्किल्स टीम में तालमेल और क्लाइंट डीलिंग में आवश्यक
लर्निंग माइंडसेट लंबे समय में ग्रोथ के लिए जरूरी
विशेषज्ञ मानते हैं कि डिग्री “फॉर्मल” प्रमाण है, जबकि स्किल्स “वास्तविक” क्षमता का परिचायक हैं।
फ्रेशर्स के लिए सलाह
कोर्स के साथ-साथ स्किल डेवेलपमेंट पर ध्यान दें।
– जैसे कि कोडिंग, Excel, Python, Java, SEO, UI Tools आदि।
इंटर्नशिप और प्रोजेक्ट्स में भाग लें।
– इससे इंडस्ट्री एक्सपोजर मिलेगा और आत्मविश्वास बढ़ेगा।
मॉक इंटरव्यू और कम्युनिकेशन ट्रेनिंग करें।
– क्योंकि टेक्निकल ज्ञान के साथ साथ soft skills भी अहम हैं।
अपना पोर्टफोलियो और LinkedIn प्रोफाइल अपडेट रखें।
– यह आज के डिजिटल युग में प्रोफेशनल पहचान का माध्यम बन चुका है।
बदलती सोच, बदलती रणनीति
पुराने समय में केवल 80% से ऊपर अंक लाने वाले ही सफल माने जाते थे, लेकिन आज की कंपनियों की सोच बदल चुकी है। वे मल्टी-टैलेंटेड, टेक-सेवी और टीम प्लेयर उम्मीदवारों को तरजीह देती हैं।
मार्क्स अब सिर्फ प्रवेश द्वार हैं, असली रास्ता सीखने और अपनाने की काबिलियत से होकर गुजरता है।
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