लाइव हिंदी खबर :- आपको पैसे लेने हैं। जोखिम भरा काम करने की तुलना में लागत में कटौती करना बेहतर है। वाहनों पर खर्च बढ़ेगा। ग्रहों की स्थिति बता रही है कि हम आज कोई नया काम शुरू नहीं करेंगे। आपकी भाषा और व्यवहार को नियंत्रित करना आपके हित में होगा। यह दिन आपके व्यवसाय के लिए पवित्र है। पूरा दिन सफल रहने वाला है। बच्चों की जरूरतों को पूरा करना जारी रखेगा। हालांकि दूसरों की निंदा करने से बचें। आज एक अच्छा दिन है। आपकी कार्यशैली में आए बदलाव को देखकर लोग अचंभित हो जाएंगे।
कार्यक्षेत्र में मतभेद होते हैं। वाहन चलाते समय सावधानी बरतें। कार्य या व्यावसायिक तनाव बढ़ता है। आपकी रचनात्मक और कलात्मक शक्तियाँ बढ़ेंगी। आज का दिन आपके लिए निराशाजनक रहा। इसमें आपकी आय बढ़ाने की क्षमता है। आपके पास किसी तरह से वित्तीय लाभ प्राप्त करने की क्षमता है। आज आपको आपकी मनपसंद नौकरी मिलने वाली है, यह दिन शारीरिक और मानसिक बीमारी के साथ व्यतीत होने वाला है।
शारीरिक कष्ट होगा। नए कार्य को शुरू करने से पहले अच्छे से सोच लें। आप तनावपूर्ण स्थितियों को अच्छी तरह से संभालने में सक्षम होंगे। दैनिक कार्यों को समय से पहले पूरा किया जा सकता है। आज का दिन आपके लिए अच्छा रहेगा। जो लोग आपकी निंदा करते हैं, वे आज आपकी प्रशंसा करना बंद नहीं करेंगे।
रिश्तेदारों के साथ आव्रजन को संभाला जा सकता है। महिला मित्र से लाभ संभव है। कोई आपकी मदद कर सकता है आपको समय के साथ बनाए रखने की आवश्यकता है। आप जो योजना बना रहे हैं, उसके बारे में आपको कोई अच्छी खबर मिल सकती है। कुछ विशेष निर्णय लेने होंगे। आज आप कुछ का भला करेंगे। स्वास्थ्य में सुधार होता है।
भाग्यशाली राशियाँ है:- सिंह राशि, मकर राशि, तुला राशि।
लाइव हिंदी खबर :-माना जाता है कि योग आत्मा और परमात्मा को जोड़ने का महत्वपूर्ण सूक्ष्म आध्यात्मिक विज्ञान है। इसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम होता है। योग शब्द भारत से बौद्ध धर्म के साथ चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण-पूर्व एशिया और श्रीलंका में भी फैला और वहीं पिछले कुछ दिनों में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाए जाने के बाद से इस समय सारे सभ्य जगत में लोग इससे अच्छी तरह परिचित हैं।
जबकि सनातनधर्म से जुड़े लोगों के लिए योग कोई नई चीज या क्रिया नहीं है, दरसअल भगवद्गीता में तक ‘योग’ शब्द का कई बार प्रयोग हुआ है, जैसे-बुद्धि योग, संन्यास योग, कर्मयोग, वेदोत्तर काल में भक्तियोग और हठयोग… पतंजलि योगदर्शन में ‘क्रिया-योग’ शब्द देखने में आता है। वहीं पाशुपत योग और माहेश्वर योग जैसे शब्दों के भी प्रसंग मिलते हैं। इन सब में योग शब्द के अर्थ एक-दूसरे से भिन्न हैं।
विष्णु पुराण के अनुसार- ‘योग: संयोग इत्युक्त: जीवात्म परमात्मने’ अर्थात् जीवात्मा और परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग है।
भगवद्गीता के अनुसार-‘सिद्धासिद्धयो समोभूत्वा समत्वं योग उच्चते’ अर्थात् दु:ख-सुख लाभ-अलाभ, शत्रु-मित्र, शीत और उष्ण आदि द्वंदों में सर्वत्र समभाव रखना योग है।
महर्षि पतंजलि के अनुसार, समाहित चित्त वालों के लिए अभ्यास और वैराग्य व विक्षिप्त चित्त वालों के लिए क्रिया-योग का सहारा लेकर आगे बढ़ने का रास्ता है। इन साधनों का उपयोग करके साधक के क्लेशों का नाश होता है, चित्त प्रसन्न होकर ज्ञान का प्रकाश फैलता है और विवेक ख्याति प्राप्त होती है- योगाडांनुष्ठानाद शुद्धिक्षये ज्ञानदीप्तिरा विवेक ख्यातेः (1/28)
योग का अर्थ…
‘योग’ शब्द ‘युज समाधौ’ आत्मनेपदी दिवादिगणीय धातु में ‘घं’ प्रत्यय लगाने से निष्पन्न होता है। इस प्रकार ‘योग’ शब्द का अर्थ हुआ- समाधि अर्थात् चित्त वृत्तियों का निरोध। वैसे ‘योग’ शब्द ‘युजिर योग’ तथा ‘युज संयमने’ धातु से भी निष्पन्न होता है, किंतु तब इस स्थिति में योग का अर्थ क्रमशः योगफल, जोड़ और नियमन होगा।
महाभारत में योग का लक्ष्य ब्रह्मा के दुनिया में प्रवेश के रूप में वर्णित किया गया है, ब्रह्म के रूप में अथवा आत्मन को अनुभव करते हुए जो सभी वस्तुएं में व्याप्त है। भक्ति संप्रदाय के वैष्णव धर्म में योग का अंतिम लक्ष्य स्वयं भगवन का सेवा करना या उनके प्रति भक्ति होना है, जहां लक्ष्य यह है कि विष्णु के साथ एक शाश्वत रिश्ते का आनंद लेना।
गीता में श्रीकृष्ण ने एक स्थल पर कहा है- ‘योग: कर्मसु कौषलम्;।’ कर्म में कुशलता ही योग है। यह वाक्य योग की परिभाषा नहीं है, कुछ विद्वानों का यह मत है कि जीवात्मा और परमात्मा के मिल जाने को योग कहते हैं।
पंतजलि की योग दर्शन पर परिभाषा-
योगश्चितवृतिनिरोध; अर्थात्- चित की वृत्तियों के निरोध का नाम योग है। इस वाक्य के दो अर्थ हो सकते हैं- चितवृत्तियों के निरोध की अवस्था का नाम योग है या इस अवस्था को लाने के उपाय को योग कहते हैं।
लेकिन इस परिभाषा पर कई विद्वानों को आपत्ति है। उनका कहना है कि चितवृत्तियों के प्रवाह का ही नाम चित्त है पूर्ण निरोध का अर्थ होगा चित्त के अस्तित्व का पूर्ण लोप चिताश्रय समस्त स्मृतियों और संस्कारों का नि:शेष हो जाना।
यदि ऐसा हो जाये तो फिर समाधि से उठना संभव नहीं होगा, क्योंकि उस अवस्था के सहारे के लिए कोई भी संस्कार बचा नहीं होगा, निरोध यदि संभव हो तो श्रीकृष्ण के इस वाक्य का क्या अर्थ होगा- योगस्थ: कुरू कर्माणि – अर्थात् योग में स्थित होकर कर्म करो।
विरुद्धावस्था में कर्म हो नहीं सकता और अवस्था में कोई संस्कार नहीं पड़ सकते, स्मृतियां नहीं बन सकतीं। जो समाधि से उठने के बाद कर्म करने में सहायक हों। कुल मिलाकर जानकारों की मानें तो योग के शास्त्रीय स्वरूप उसके दार्शनिक आधार को सम्यक रूप से समझना बहुत सरल नहीं है।
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