New Delhi, 12 अगस्त . 16 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया जाना है, जिसे लेकर हर तरफ तैयारियां जोरों पर है. देश दुनिया में लीलाधर के ऐसे कई मंदिर हैं, जो अध्यात्म की एक अलग ही कहानी पेश करते हैं, जिनमें लोगों की गहरी आस्था, विश्वास और प्रेम का भी पुट है. नेपाल के मुस्तांग जिले में श्री हरि नारायण मुक्तिनाथ मंदिर भी ऐसा ही अनोखा मंदिर है, जहां 108 जल धाराओं में स्नान से पापों से मुक्ति मिलती है और हरि की कृपा प्राप्त होती है. दरअसल, वैष्णव समुदाय का यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र होने के साथ ही मोक्ष का स्थान भी माना जाता है.
यह मंदिर न केवल हिंदुओं बल्कि बौद्धों के लिए भी पवित्र है, जन्माष्टमी के मौके पर यहां खूब भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है.
मुक्तिनाथ का अर्थ है ‘मोक्ष के नाथ’ या मुक्ति प्रदान करने वाले भगवान. हिमालय की गोद में 3,710 मीटर की ऊंचाई पर बसा यह नारायण को समर्पित मंदिर है, जिनके अवतार कृष्ण हैं. पुराणों के अनुसार, यह स्थान गंडकी नदी से जुड़ा है, जहां शालिग्राम शिलाएं पाई जाती हैं. शालिग्राम की इन शिलाओं को प्रकृति का जीवंत पत्थर माना गया है. शालिग्राम को स्वयंभू माना जाता है, यानी इनकी प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती. कोई भी व्यक्ति इन्हें घर या मंदिर में स्थापित करके पूजा कर सकता है. नेपाल के मुक्तिनाथ क्षेत्र में इन शालिग्राम पत्थरों की आमद बहुतायत में है. यहां इनके बड़े-बड़े शिलाखंड पानी के अंदर पाए जाते हैं. जिन्हें तराशकर मुर्तियों का निर्माण भी किया जाता है.
जन्माष्टमी पर इसी मुक्तिनाथ धाम में भक्त कृष्ण की बाल लीलाओं का स्मरण करते हैं. मुक्तिनाथ मंदिर का इतिहास पुराणों से जुड़ा है, जो 300-1000 ईस्वी के बीच लिखे गए. इसे दुनिया के सबसे पुराने विष्णु मंदिरों में से एक माना जाता है. यह 24 तांत्रिक स्थानों में से भी एक माना जाता है.
मुक्ति क्षेत्र या मुक्तिनाथ मंदिर का उल्लेख रामायण, बराह पुराण और स्कंद पुराण जैसे हिंदू धर्मग्रंथों में भी मिलता है. भगवान विष्णु को समर्पित मंदिर का निर्माण 19वीं शताब्दी की शुरुआत में हुआ था. नारायण की मूर्ति 16वीं शताब्दी की मानी जाती है, इसलिए यह भी माना जाता है कि पैगोडा संरचना से पहले उस स्थान पर एक और मंदिर था. नेपाल और भारत के कई हिंदू तीर्थयात्री भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए इस स्थल पर आते हैं.
एक पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रह्मा ने यहां तपस्या की और विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए. दूसरी कथा, गुरु रिनपोछे (पद्मसंभव) से जुड़ी है, जो तिब्बती बुद्धिज्म के संस्थापक थे. वह तिब्बत जाते समय यहां पर रुके थे और ध्यान किया था, जिससे मंदिर को बौद्ध महत्व भी मिला.
आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में यहां का दौरा किया और इसे आध्यात्मिक शक्ति का केंद्र माना. यहां मंदिर में विराज रहे भगवान श्रीहरि विष्णु मोक्षदाता के रूप में विराजमान हैं. जन्माष्टमी के साथ ही अन्य धार्मिक मौकों पर भी भक्त यहां आकर दर्शन करते हैं. यहां मंदिर में प्रवेश से पहले गौमुख से निकलती 108 धाराएं प्रवाहित हो रही हैं और साथ ही इसके बगल में दो जल कुंड हैं. ये 108 सहस्त्रधारा और लक्ष्मी कुंड एवं सरस्वती कुंड को लेकर मान्यता है कि इसमें स्नान करने मात्र से भक्त प्रारब्ध के साथ वर्तमान जीवन के भी संपूर्ण पापों से मुक्ति प्राप्त करते हैं.
मंदिर की वास्तुकला पैगोडा शैली की है. इस मंदिर की संरचना तीन मंजिला है और इसमें मुख्य मूर्ति भगवान विष्णु की है. साथ में माता लक्ष्मी और माता सरस्वती भी यहां विराजमान हैं.
यहां की 108 धाराएं गौमुखी गंगा से निकलती हैं, जो बेहद शीतल हैं. भक्त इनमें स्नान कर पापों से मुक्ति के साथ मोक्ष की कामना श्रीहरिनारायण से करते हैं. बौद्ध इसे ‘चुमिग ग्यात्सा’ कहते हैं, मतलब 108 झरने.
जन्माष्टमी के दौरान मंदिर में विशेष पूजा होती है, जहां कृष्ण की आरती और भजन गाए जाते हैं. भक्तों का मानना है कि कृष्ण जन्माष्टमी के इस पर्व पर यहां स्नान करने से सुख-शांति मिलती है, और परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है.
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एमटी/जीकेटी
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