New Delhi, 5 अक्टूबर . ईरानी विदेश मंत्री एसए अराघची का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र परमाणु निगरानी संस्था के साथ सहयोग की बात का अब कोई मतलब नहीं है वो “प्रासंगिक नहीं” रही है. उन्होंने ये भी दावा किया कि इस्लामिक रिपब्लिक पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों को फिर से लागू करने का समर्थन करने वाली यूरोपीय शक्तियों की भूमिका भी भविष्य में न के बराबर रह जाएगी.
तेहरान स्थित राजदूतों, प्रभारी राजदूतों, और विदेशी तथा अंतर्राष्ट्रीय मिशनों के प्रमुखों को दिए गए भाषण के बाद, अराघची ने यूरोपीय त्रिगुट – ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के साथ ईरान के सहयोग को लेकर मीडिया की ओर से पूछे गए सवाल का वो जवाब दे रहे थे.
समाचार एजेंसी आईआरएनए के मुताबिक, उन्होंने कहा कि यह साबित हो चुका है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम का कूटनीति और बातचीत के अलावा कोई समाधान नहीं है.
अराघची ने कहा कि ईरान को कई मौकों पर सैन्य कार्रवाई की धमकियां मिली हैं, और कई बार उन धमकियों का प्रयास भी किया गया, लेकिन यह स्पष्ट हो गया कि ईरानी समस्या का समाधान सैन्य तरीकों से नहीं हो सकता. तीनों यूरोपीय देश ये सोच रहे थे कि उन्होंने दबाव बनाने का एक नया तरीका हासिल कर लिया है और उन्होंने मान लिया कि इसे लागू करने की धमकी देकर, वे ईरान पर प्रभाव डाल सकते हैं.
इससे पहले, तेहरान में विदेशी राजनयिकों के साथ एक बैठक के दौरान अराघची ने कहा, “तीनों यूरोपीय देशों को लगा कि वो दबाव डाल सकते हैं, इसलिए वे स्नैपबैक लागू करने की धमकी दे रहे हैं.”
बोले, “अब उन्होंने इस दबाव का इस्तेमाल किया है और नतीजे भी देखे हैं… तीनों यूरोपीय देशों ने निश्चित रूप से अपनी भूमिका कम कर दी है और उनके साथ बातचीत का औचित्य लगभग खत्म कर दिया है.”
उन्होंने आगे कहा कि ईरान के परमाणु दस्तावेज पर किसी भी आगामी कूटनीति में यूरोपीय तिकड़ी की “पहले की तुलना में बहुत छोटी भूमिका होगी.”
ईरान इंटरनेशनल मीडिया हाउस के मुताबिक विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने संयुक्त राष्ट्र एजेंसी के साथ सितंबर में हुए समझौते का हवाला देते हुए कहा, “अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के साथ हमारे सहयोग के लिए काहिरा समझौता अब प्रासंगिक नहीं है.”
अराघची ने विस्तार से बताए बिना कहा कि तेहरान का “एजेंसी के साथ सहयोग के बारे में निर्णय घोषित किया जाएगा,” लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि कूटनीति की अभी भी गुंजाइश है.
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