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बिहार चुनाव : बेतिया विधानसभा सीट पर टिकीं निगाहें, ऐतिहासिक और राजनीतिक दृष्टि से बेहद अहम

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पटना, 7 अगस्त . बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक गतिविधियों ने गति पकड़ ली है. सभी प्रमुख दल अपनी तैयारियों में जुटे हैं और पश्चिमी चंपारण जिले की बेतिया विधानसभा सीट पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं. फिलहाल इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दबदबा है.

बेतिया विधानसभा क्षेत्र बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में स्थित है और सामान्य श्रेणी की सीट है. यह पश्चिम चंपारण Lok Sabha क्षेत्र का हिस्सा है. इसमें बेतिया सामुदायिक विकास खंड के साथ-साथ मझौलिया प्रखंड की 18 पंचायतें शामिल हैं. 2024 के प्रोजेक्टेड आंकड़ों के अनुसार बेतिया की कुल जनसंख्या लगभग 4.92 लाख है, जिसमें पुरुषों की संख्या 2,58,925 और महिलाओं की संख्या 2,33,100 है.

भारत निर्वाचन आयोग के अनुसार 1 जनवरी 2024 की स्थिति में इस क्षेत्र में कुल 2,90,244 मतदाता दर्ज हैं, जिनमें 1,53,120 पुरुष और 1,37,119 महिला मतदाता शामिल हैं.

राजनीतिक रूप से बेतिया विधानसभा सीट का इतिहास दिलचस्प रहा है. 1951 में स्थापित इस सीट पर अब तक 18 चुनाव हो चुके हैं. शुरुआती दौर में यह सीट कांग्रेस के कब्जे में रही और 1952 से 1985 के बीच हुए 10 चुनावों में से 9 में पार्टी ने जीत हासिल की. भाजपा ने 1990 में इस सीट पर चुनाव लड़ना शुरू किया और अब तक 6 बार विजयी रही है. पार्टी को सिर्फ 1995 और 2015 में मामूली अंतर से हार का सामना करना पड़ा.

भाजपा की वरिष्ठ नेता और पूर्व उपChief Minister रेणु देवी इस सीट से अब तक पांच बार विधायक रह चुकी हैं. उनकी पकड़ यहां खासकर महिला मतदाताओं और संगठित भाजपा कैडर के कारण मजबूत मानी जाती है. कांग्रेस की ओर से गौरी शंकर पांडे ने चार बार और जय नारायण प्रसाद ने दो बार इस सीट पर जीत दर्ज की. हाल के वर्षों में भाजपा का प्रभाव और भी बढ़ा है.

राजनीतिक समीकरणों के साथ-साथ बेतिया का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी इसे एक पहचान देता है. यह शहर न सिर्फ बेतिया राज की ऐतिहासिक रियासत का केंद्र रहा है, बल्कि महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह जैसी ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी भी है.

बेतिया से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित स्थान पर 1937 में ऑल इंडिया गांधी सेवा संघ का वार्षिक सम्मेलन हुआ था, जिसमें महात्मा गांधी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद और जेबी कृपलानी जैसे नेता शामिल हुए थे. महात्मा गांधी की ओर से उस समय स्थापित एक बेसिक स्कूल आज भी संचालित है.

बेतिया में शिव-पार्वती मंदिर के अलावा सरैया के शांत परिवेश में प्राकृतिक झील है, जो इसे सांस्कृतिक व पर्यटन दृष्टि से भी खास बनाते हैं. सरैया मन (पक्षी विहार) पक्षियों की कई प्रजातियों का प्रवास स्थल भी है. झील के किनारे लगे जामुन के पेड़ों से गिरने वाले फल के कारण इसका पानी पाचक माना जाता है. यह स्थान लोगों के लिए पिकनिक स्थल भी बना हुआ है.

बेतिया पूर्व-मध्य रेलवे से जुड़ा है और देश के प्रमुख शहरों से रेल संपर्क सशक्त है. सड़क मार्ग से यह बिहार, उत्तर प्रदेश और नेपाल से जुड़ा है, जबकि निकटतम हवाई अड्डे पटना और गोरखपुर में हैं.

इतिहास की दृष्टि से देखें तो मुगल काल के बाद चंपारण क्षेत्र में बेतिया राज का उदय हुआ. शाहजहां के शासनकाल में उज्जैन सिंह और गज सिंह ने इसकी नींव डाली. मुगलों के कमजोर होने पर बेतिया राज महत्वपूर्ण बन गया और शानो-शौकत के लिए अच्छी ख्याति हासिल की. 1763 ईस्वी में यहां के राजा धुरुम सिंह के समय बेतिया राज अंग्रेजों के अधीन काम करने लगा. इसके अंतिम राजा हरेंद्र किशोर सिंह को पुत्र नहीं होने के कारण 1897 में इसका नियंत्रण न्यायिक संरक्षण में चलने लगा, जो अब तक कायम है. हरेंद्र किशोर सिंह की दूसरी रानी जानकी कुंवर के अनुरोध पर 1990 में बेतिया महल की मरम्मत कराई गई. बेतिया राज की शान का प्रतीक महल आज शहर के मध्य में इसके गौरव का प्रतीक बनकर खड़ा है.

डीसीएच/एबीएम

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