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नेल्सन मंडेला ने रंगभेद के खिलाफ लड़ी अहिंसक लड़ाई, एकता का भी दिया संदेश

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New Delhi, 17 जुलाई . नोबेल पुरस्कार विजेता और दक्षिण अफ्रीका के प्रेरणादायी नेता नेल्सन मंडेला को विश्व भर में “मदीबा” के नाम से जाना जाता है. वह एक ऐसे व्यक्तित्व थे, जिन्होंने न केवल दक्षिण अफ्रीका, बल्कि पूरी दुनिया को समानता, स्वतंत्रता और मानवता का पाठ पढ़ाया.

18 जुलाई 1918 को दक्षिण अफ्रीका के ट्रांस्काई क्षेत्र में जन्मे मंडेला ने रंगभेद के खिलाफ अपने अथक संघर्ष और अहिंसक दृष्टिकोण के लिए 1993 में नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त किया. वे दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति (1994-1999) बने और अपने नेतृत्व से देश को नस्लीय विभाजन से एकता की ओर ले गए.

नेल्सन मंडेला का प्रारंभिक जीवन सरल था. वे थेंबू जनजाति के शाही परिवार से थे, लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा और शिक्षा ने उन्हें सामाजिक बदलाव का प्रतीक बनाया. फोर्ट हेयर विश्वविद्यालय और विटवाटररैंड विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान उन्होंने रंगभेद की क्रूरता को करीब से देखा. 1944 में अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (एएनसी) में शामिल होकर उन्होंने रंगभेद के खिलाफ संगठित आंदोलन शुरू किया. शुरू में अहिंसक प्रदर्शनों पर ध्यान देने वाले मंडेला ने बाद में सशस्त्र प्रतिरोध का रास्ता अपनाया, जिसके कारण उन्हें 1962 में गिरफ्तार कर लिया गया. मंडेला को 1964 में रिवोनिया ट्रायल में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.

रॉबेन द्वीप की जेल में बिताए 27 वर्ष उनके जीवन का सबसे कठिन दौर थे, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी. जेल में भी उन्होंने अपनी शिक्षा और विचारधारा को मजबूत किया. 1990 में वैश्विक दबाव और दक्षिण अफ्रीका में बदलते राजनीतिक माहौल के कारण उनकी रिहाई हुई.

रिहाई के बाद नेल्सन मंडेला ने रंगभेद को समाप्त करने और सभी नस्लों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करने के लिए सरकार के साथ बातचीत शुरू की. 1994 में दक्षिण अफ्रीका में पहला लोकतांत्रिक चुनाव हुआ, जिसमें नेल्सन मंडेला देश के राष्ट्रपति चुने गए. उनके नेतृत्व में “रेनबो नेशन” की अवधारणा सामने आई, जो सभी नस्लों और समुदायों को एकजुट करने का प्रतीक थी. उनकी नीतियों ने शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक समानता पर जोर दिया.

नेल्सन मंडेला का सबसे बड़ा योगदान उनकी मेल-मिलाप की नीति थी. उन्होंने सत्य के जरिए रंगभेद के दौरान हुए अत्याचारों को उजागर किया और समाज में एकता को बढ़ावा दिया. उनकी मान्यता थी कि नफरत और बदले की भावना से कोई राष्ट्र आगे नहीं बढ़ सकता. 5 दिसंबर 2013 को 95 वर्ष की आयु में मंडेला का निधन हो गया. लेकिन, उनकी विरासत आज भी जीवित है. वे न केवल दक्षिण अफ्रीका, बल्कि विश्व भर में स्वतंत्रता और समानता की प्रेरणा बने हुए हैं.

एकेएस/एबीएम

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