नई दिल्ली: हाल ही में दिल्ली के निवासियों को एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। एलजी सचिवालय के दस्तावेजों के अनुसार, पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्रियों की सिफारिश पर 22 से अधिक मंदिरों को ध्वस्त किया गया।
यह जानकारी तब सामने आई जब मुख्यमंत्री आतिशी मार्लेना ने उपराज्यपाल और भाजपा पर धार्मिक स्थलों के ध्वंस का आरोप लगाया। इसके जवाब में, एलजी सचिवालय ने आप सरकार द्वारा मंदिरों को तोड़ने की अनुमति देने वाले सरकारी दस्तावेज जारी किए, जिससे AAP की स्थिति कमजोर हुई।
आतिशी ने कहा था कि धार्मिक समिति की सिफारिश पर उपराज्यपाल ने सात धार्मिक स्थलों को ध्वस्त करने का आदेश दिया। लेकिन एलजी सचिवालय ने दस्तावेज जारी कर बताया कि 2016 से 2023 के बीच अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्रियों ने 22 मंदिरों सहित कुल 24 धार्मिक स्थलों को तोड़ने की अनुमति दी थी। दस्तावेजों के अनुसार, 8 फरवरी 2023 को केजरीवाल ने खुद 9 मंदिरों को तोड़ने के आदेश को मंजूरी दी थी, जबकि 23 जून 2016 को तत्कालीन गृहमंत्री सत्येंद्र जैन ने 8 मंदिरों को तोड़ने की सिफारिश की थी।
दिलचस्प बात यह है कि इन 24 धार्मिक स्थलों में 22 मंदिर और केवल 1 दरगाह शामिल थी। 2017 में जब दो मजारों को तोड़ने का मामला आया, तो सत्येंद्र जैन ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इससे लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती हैं। यह सवाल उठता है कि क्या 22 मंदिरों से किसी की धार्मिक भावनाएं नहीं जुड़ी थीं या केजरीवाल सरकार को उनकी भावनाओं की कोई परवाह नहीं थी?
क्या यह कदम मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए उठाया गया था? यदि कार्रवाई करनी थी, तो सभी धर्मस्थलों पर समान रूप से क्यों नहीं हुई? यह धार्मिक भावनाओं की आड़ में भेदभाव प्रतीत होता है। इस मुद्दे ने दिल्ली में राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। भाजपा इस मामले को जोर-शोर से उठा रही है और केजरीवाल सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े कर रही है। वहीं, कांग्रेस भी आप के खिलाफ है, लेकिन इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है, शायद इसलिए कि मुस्लिम वोट बैंक उसका भी एक अहम हिस्सा है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि विधानसभा चुनाव से पहले यह मामला आम आदमी पार्टी पर कितना भारी पड़ता है। लेकिन यह स्पष्ट है कि मंदिरों के ध्वंस और मजारों की रक्षा की राजनीति ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
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