आजकल की युवा पीढ़ी के लिए रंग गोरा करना एक सामान्य समस्या बन गई है। हर कोई खुद को आकर्षक दिखाने की कोशिश में लगा है, जिसके लिए महंगी क्रीम और ब्यूटी ट्रीटमेंट का सहारा लिया जा रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इनमें कई हानिकारक एसिड्स का उपयोग किया जाता है? ये उत्पाद त्वचा की रंगत में थोड़े समय के लिए निखार लाते हैं, लेकिन बाद में त्वचा से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
विज्ञापनों का प्रभाव और क्रीम्स का स्रोत
दुनिया भर में 70 प्रतिशत लोग क्रीम्स को टीवी पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों के आधार पर खरीदते हैं। इन विज्ञापनों में गोरे रंग का त्वरित असर दिखाया जाता है, जो कि लोगों के साथ एक मानसिक खेल है। अधिकांश रंग गोरा करने वाली क्रीम पाकिस्तान से आयात की जाती हैं, जो कि त्वचा को गोरा करने के बजाय गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकती हैं।
खतरनाक तत्वों का उपयोग
भारत सहित अन्य देशों में रंग गोरा करने के नाम पर जहरीले उत्पाद बेचे जा रहे हैं। कई फेस क्रीम्स में पारा (मरकरी) का उपयोग किया जा रहा है, जो कि सरकार द्वारा प्रतिबंधित है, फिर भी ये क्रीम्स आसानी से उपलब्ध हैं।
शोध के निष्कर्ष
हाल ही में ग्लोबल अलायंस ऑफ एनजीओ फॉर जीरी मर्कियुरी वर्किंग ग्रुप ने 12 देशों में फेस क्रीम्स पर अध्ययन किया। इस रिसर्च में 158 स्किन लाइटिंग क्रीम के सैंपल लिए गए, जिनमें से 95 में मर्क्युरी की मात्रा 40 पीपीएम से 113000 पीपीएम तक पाई गई। भारत में एकत्रित क्रीम्स में मर्क्युरी की मात्रा 48 पीपीएम से 113000 पीपीएम तक थी, जो कि सरकार द्वारा निर्धारित 1 पीपीएम से कहीं अधिक है।
एशिया में क्रीम्स का उत्पादन
शोध के दौरान भारत से भी स्किन लाइटनिंग क्रीम्स के सैंपल लिए गए थे। इनमें से कई सैंपल ऑनलाइन और दुकानों से एकत्रित किए गए थे। रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में 62%, थाईलैंड में 19% और चीन में 13% क्रीम्स में मर्क्युरी की मात्रा मानक से अधिक पाई गई।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
मरकरी एक न्यूरोटॉक्सिन है, जो किडनी, लिवर और गर्भ में पल रहे बच्चे को नुकसान पहुंचा सकता है। रिसर्च में यह भी पाया गया कि त्वचा पर मरकरी लगाने से स्किन कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।
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