संपत्ति अधिकार: हमारे समाज में कानूनी अधिकारों का महत्व अत्यधिक है। कभी-कभी जीवन की परिस्थितियों में उतार-चढ़ाव के कारण पारिवारिक संबंधों पर प्रभाव पड़ता है। ऐसी स्थिति में, यदि समझदारी से कदम नहीं उठाए जाएं, तो परिवार का कोई सदस्य दूसरे पर निर्भरता के कारण शोषण का शिकार हो सकता है। इसी कारण भारतीय न्याय प्रणाली में कुछ नियम और कानून बनाए गए हैं, ताकि परिवार और समाज में नैतिक संतुलन बना रहे।
पत्नी के अधिकारों की सुरक्षा
इस लेख में हम संपत्ति के अधिकारों से संबंधित एक महत्वपूर्ण कानूनी जानकारी साझा करेंगे, जिसमें पत्नी के अधिकारों की सुरक्षा की गई है। कृपया हमारे लेख को अंत तक पढ़ें ताकि आप अपने और अपने आस-पास के समाज को सही जानकारी दे सकें।
पैतृक संपत्ति पर समान अधिकार
पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) पर पुत्र और पुत्रियों का समान अधिकार होता है। हालांकि, किसी व्यक्ति द्वारा अर्जित संपत्ति (Acquired Property) पर उसका एकाधिकार होता है, और वह अपनी इच्छा से अपनी संपत्ति का हस्तांतरण कर सकता है।
मां की संपत्ति पर अधिकार मां की संपत्ति पर किसका कितना है अधिकार?
जब एक पत्नी मां बनती है, तो क्या उसके बच्चों का उसकी संपत्ति पर कानूनी अधिकार होता है? इसी विषय पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जो महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करता है। यह फैसला उत्तर पश्चिमी दिल्ली के शास्त्री नगर में रहने वाली 85 वर्षीय लाजवंती देवी के पक्ष में आया है।
इस मामले में, लाजवंती देवी ने 1985 में अपने घर का एक हिस्सा अपनी बेटी और दामाद को उपयोग के लिए दिया था। जब उन्होंने वह हिस्सा वापस मांगा, तो बेटी और दामाद ने उसे खाली करने से मना कर दिया और संपत्ति के अधिकार को लेकर मां को अदालत में चुनौती दी।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कामिनी लाउ ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए लाजवंती देवी को घर का मालिकाना हक दिया। उन्होंने कहा कि यह संपत्ति उनके पति ने 1966 में उनकी पत्नी के नाम पर खरीदी थी, ताकि वह सुरक्षित जीवन जी सकें।
कोर्ट ने आदेश दिया कि महिला की अनुमति के बिना बेटी और दामाद उसके घर में नहीं रह सकते। यदि लाजवंती देवी नहीं चाहतीं, तो उन्हें 6 महीने के भीतर घर खाली करना होगा। इस दौरान महिला को हुए नुकसान की भरपाई भी करनी होगी।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि हिंदू विधवा को उसके पति द्वारा खरीदी गई संपत्ति पर पूर्ण अधिकार है। न्यायालय ने बेटी और दामाद को 2014 से हर महीने ₹10000 का भुगतान करने का निर्देश दिया, साथ ही निर्णय होने तक हर महीने ₹10000 देने का आदेश भी दिया।
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