जब भी परिवार में नए बच्चे का आगमन होता है, तो खुशी का माहौल बन जाता है। बच्चे के जन्म के बाद मुंडन संस्कार का आयोजन किया जाता है, जो हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक है। इन संस्कारों के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक कारण होते हैं। आइए, मुंडन संस्कार से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियों पर नजर डालते हैं।
मुंडन संस्कार कब होता है?
आमतौर पर मुंडन संस्कार बच्चे के पहले जन्मदिन के आस-पास किया जाता है। हालांकि, कुछ समुदायों में यह 3 या 5 वर्ष की आयु में भी मनाया जाता है। मराठी समुदाय में यह संस्कार 7 वर्ष की आयु तक किया जाता है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि मुंडन संस्कार हमेशा विषम वर्षों में, जैसे 1, 3, 5 में होता है, सम वर्षों में नहीं। इस अवसर पर बच्चे के सभी रिश्तेदार शामिल होते हैं, और कई परिवार इसे धूमधाम से मनाते हैं।
मुंडन संस्कार के बाद की प्रक्रिया

मुंडन के बाद बच्चे के सिर पर हल्दी का लेप लगाया जाता है, और कुछ लोग हल्दी से स्वस्तिक भी बनाते हैं। हल्दी में एंटीबायोटिक गुण होते हैं, जो किसी भी कट या संक्रमण से बचाने में मदद करते हैं। 1 वर्ष से छोटे बच्चों के लिए, बाल काटने के लिए ट्रीमर का उपयोग करना अधिक सुरक्षित होता है। इस संस्कार के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टिकोण हैं।
धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण
धार्मिक मान्यता के अनुसार, मुंडन संस्कार से बच्चे के मानसिक विकास में सुधार होता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, नवजात शिशु के बालों में अशुद्धियाँ होती हैं, जिन्हें काटना आवश्यक होता है। इससे बच्चे को संक्रमण से सुरक्षा मिलती है। बाल काटने से बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता।

एक अन्य धार्मिक मान्यता के अनुसार, मुंडन के बाद हल्दी लगाने से बच्चे का भाग्य बेहतर होता है। हल्दी का संबंध भगवान विष्णु और गुरु ग्रह से होता है। मुंडन के बाद स्वस्तिक का चिह्न बनाने से सहस्रार चक्र सक्रिय होता है, जो शरीर के नियंत्रण में मदद करता है।
संस्कार का महत्व
इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, बच्चे का मुंडन संस्कार कराना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। हालांकि, इसे कराने का समय विभिन्न धर्मों, जातियों और उनके कुल देवी-देवताओं की मान्यताओं पर निर्भर करता है।
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