नई दिल्ली: आज से 45 साल पहले, यानी 15 अप्रैल 1980 को भारत में एक बड़ा आर्थिक बदलाव हुआ था. सरकार ने एक साथ 6 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर लिया. यह भारत के बैंकिंग इतिहास में दूसरी बार हुआ था जब सरकार ने प्राइवेट बैंकों को अपने नियंत्रण में लिया. इससे पहले 1969 में पहली बार तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 14 बड़े निजी बैंकों को राष्ट्रीयकृत किया था. बैंकों का राष्ट्रीयकरण क्या होता है?राष्ट्रीयकरण का मतलब होता है निजी क्षेत्र में चल रहे बैंकों को सरकार के अधीन करना यानी सरकार उन बैंकों में 50% से ज्यादा हिस्सेदारी लेकर उन्हें पूरी तरह नियंत्रित करने लगती है. इससे बैंक अब निजी स्वामित्व से निकलकर जनता के लिए काम करने वाली संस्थाएं बन जाते हैं. क्यों जरूरत पड़ी राष्ट्रीयकरण की?
- आजादी के बाद भारत में बैंकिंग पर कुछ बड़े उद्योगपतियों और अमीर परिवारों का कब्जा था.
- बैंक सिर्फ शहरी इलाकों में थे, गांवों और गरीबों तक पहुंच नहीं थी.
- किसानों को कर्ज मिलना मुश्किल था.
- कई बैंक काले धन और जमाखोरी के धंधों में लग गए थे.
- 1947 से 1955 के बीच 360 छोटे बैंक डूब गए, लोगों की जमा पूंजी चली गई.
- बैंक गांव-गांव पहुंचे: 1969 में देश में बैंकों की सिर्फ 8,322 शाखाएं थीं, जो अब 85,000 से ज्यादा हो चुकी हैं.
- किसानों को लोन मिलना आसान हुआ:राष्ट्रीयकरण के बाद कृषि, एमएसएमई, स्वरोजगार और छोटे व्यापार को ताकत मिली.
- गरीबों को बैंकिंग से जोड़ा गया:अब लोग आसानी से होम लोन, एजुकेशन लोन, मुद्रा लोन जैसी सुविधाएं पा सकते हैं.
- देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली:बैंकों ने देश के विकास और वित्तीय समावेशन में अहम भूमिका निभाई.
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