भारत पर 50 फ़ीसदी अमेरिकी टैरिफ़ लागू होने के बावजूद दोनों देशों के बीच समझौते की उम्मीदें अभी बाक़ी हैं.
टैरिफ़ लागू होने के दिन ही अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने फॉक्स बिज़नेस चैनल को इसके संकेत दे दिए.
उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका के रिश्ते भले ही जटिल हों लेकिन दोनों देशों में सहमति की गुंजाइश बनी हुई है.
इधर, भारत में सरकारी सूत्रों ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया है कि 'टैरिफ़ के मुद्दे को सुलझाने के लिए बातचीत के रास्ते खुले हुए हैं और उम्मीद है कि चीजें पटरी पर आ जाएंगी.'
अमेरिका ने पहले भारत पर 25% टैरिफ़ लगाया था. लेकिन छह अगस्त को रूस से तेल ख़रीदने के कारण 25% अतिरिक्त टैरिफ़ लगा दिया था.
ये टैरिफ़ 27 अगस्त सुबह साढ़े नौ बजे से लागू हो गए हैं.
अमेरिका का तर्क है कि भारत रूस से तेल ख़रीद कर मुनाफ़ा कमा रहा है और यूक्रेन युद्ध में उसकी मदद कर रहा है.
'भारत और अमेरिका को साथ आना ही है'अमेरिकी विदेश मंत्री ने फॉक्स बिज़नेस चैनल से बात करते हुए टैरिफ़ को लेकर किए गए सवाल पर कहा कि भारत और अमेरिका के रिश्ते काफ़ी जटिल हैं लेकिन उन्हें विश्वास है कि दोनों देश आख़िरकार साथ आ जाएंगे.
बेसेंट भारत के ख़िलाफ़ पेनल्टी लगाने के मुखर समर्थक रहे हैं.
स्कॉट ने इस बात के संकेत दिए कि भारत और अमेरिका के बीच हालिया तनाव सिर्फ़ रूस से तेल खरीदने की वजह से नहीं है. दोनों देशों के बीच ट्रेड डील में देरी की वजह से भी तनाव बना हुआ है.
बेसेंट ने कहा, '' भारत ने 'लिबरेशन डे' के तुरंत बाद ही टैरिफ़ को लेकर बातचीत शुरू कर दी थी, लेकिन अब तक समझौता नहीं हुआ. मुझे लगा था मई या जून तक डील हो जाएगी मैंने सोचा था कि भारत अमेरिका से ट्रेड डील करने वाले शुरुआती देशों में से होगा, लेकिन वो बातचीत को लगातार टालता रहा. इस बीच वो रूसी कच्चे तेल की ख़रीद कर काफ़ी मुनाफ़ा कमाता रहा.''
बेसेंट ने कहा, ' यहां कई स्तरों पर चीजें चल रही हैं. भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और अमेरिका सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था. इन देशों को आख़िरकार साथ आना ही है.''
हालांकि भारत ने रूसी तेल ख़रीद के लिए निशाना बनाने को 'अनुचित और अव्यावहारिक' बताया है.

उन्होंने कहा, ''भारत ने अब तक ट्रेड डील का दिखावा ही ज़्यादा किया है. अमेरिका का भारत से व्यापार घाटा बहुत ज्यादा है. ऐसे सरप्लस वाले देश यानी भारत को इस बात की चिंता होनी चाहिए कि डील कैसे हो. भारत हमें सामान बेच रहा है लेकिन अपने यहां टैरिफ़ ऊंचा रखे हुए है.''
जब बेसेंट से पूछा गया कि क्या उन्हें चिंता है कि भारत ब्रिक्स देशों के साथ डॉलर के बजाय रुपये में क़ारोबार करेगा, तो उन्होंने कहा, "मेरी चिंताएं और भी कई हैं. लेकिन रुपया रिजर्व करेंसी बनेगा, ये उनमें में नहीं है. रुपया अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले लगभग अपने न्यूनतम स्तर पर है."
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बेसेंट की टिप्पणी के बीच भारत में वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि अमेरिका से बातचीत पूरी तरह बंद नहीं हुई है.
मंत्रालय उद्योग जगत से मिलकर टैरिफ़ के असर को कम करने के रास्ते तलाश रहा है.
25 अगस्त को अमेरिकी वार्ताकारों के भारत आने की योजना थी ताकि व्यापार समझौते को अंतिम रूप दिया जा सके. लेकिन 6 अगस्त को राष्ट्रपति ट्रंप की ओर से भारत पर 50 फीसदी टैरिफ़ लगाने की घोषणा के बाद ये बातचीत रद्द कर दी गई थी.
गौरतलब है कि इस साल फ़रवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वॉशिंगटन यात्रा के तुरंत बाद भारत-अमेरिका के बीच व्यापार समझौते की बातचीत शुरू हुई थी.
दोनों नेताओं ने साल के अंत तक द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने की योजना का ऐलान किया था. भारत और अमेरिका ने इसके लिए 'टर्म्स ऑफ़ रेफ़रेंस' पर भी हस्ताक्षर किए थे.
अमेरिका चाहता था भारत उससे एग्रीकल्चर प्रोडक्ट खरीदे और मिड-साइज़ कारों के लिए अपना बाज़ार खोले. भारत इसके लिए राज़ी नहीं था.
फ़िलहाल भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाले फ़ार्मा, एनर्जी प्रोडक्ट और इलेक्ट्रॉनिक सामानों को टैरिफ़ के दायरे से बाहर रखा गया है.
अमेरिका, भारत के लिए सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार बना हुआ है. वर्ष 2024-25 में भारत के कुल 437.42 अरब अमेरिकी डॉलर के माल निर्यात में से लगभग 20 फ़ीसदी सिर्फ़ अमेरिका को गया.
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इस बीच समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक भारत में सरकारी अधिकारियों ने भरोसा दिलाया है कि चीजें उतनी नहीं बिगड़ेंगी जितनी आशंका जताई जा रही है.
उन्होंने भारत और अमेरिका के बीच विवाद सुलझने की उम्मीद जताते हुए कहा है कि निर्यात घटने से होने वाले घाटे की भरपाई के लिए कोशिश जारी है.
पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि निर्यातकों को घबराने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि भारत अपने निर्यात के लिए नए बाज़ार खोज रहा है.
वाणिज्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक़ भारत 40 देशों से ख़ास संपर्क की योजना बना रहा है ताकि कपड़ों के निर्यात को बढ़ावा मिल सके. इन देशों का कपड़ों और ड्रेस का आयात 590 अरब डॉलर से ज़्यादा है. इसमें भारत की हिस्सेदारी अभी सिर्फ़ छह फ़ीसदी है.
हालांकि निर्यातकों का कहना है कि भारी टैरिफ़ की वजह से उनकी लागत काफी बढ़ जाएगी. अमेरिका ने बांग्लादेश, थाईलैंड, वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे देशों पर कम टैरिफ़ लगाए हैं. इससे भारत के प्रतिस्पर्धी देशों का माल ज़्यादा बिकेगा.
पीटीआई के मुताबिक़ अपैरल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के महासचिव मिथिलेश्वर ठाकुर ने कहा कि अमेरिका को 10.3 अरब डॉलर का निर्यात करने वाली टेक्सटाइल्स इंडस्ट्री सबसे ज़्यादा प्रभावित होगी. जबकि लेदर इंडस्ट्री से जुड़े निर्यातकों ने कहा कि अमेरिकी ख़रीदार अब 20 फ़ीसदी तक छूट की मांग कर रहे हैं.
आर्थिक थिंक टैंक जीटीआरआई ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया है कि अमेरिका के नए शुल्कों से भारत के 66 फ़ीसदी निर्यात पर असर पड़ेगा. 2025-26 में भारत का अमेरिका को निर्यात घटकर 49.6 अरब डॉलर रह सकता है.
ज़्यादातर भारतीय निर्यातकों का कहना है कि वे मुश्किल से 10–15 फ़ीसदी टैरिफ़ ही झेल सकते हैं. 50 फ़ीसदी का टैरिफ़ बर्दाश्त करना उनकी क्षमता से बाहर की बात है.
जापानी ब्रोकरेज फ़र्म नोमुरा ने एक नोट में कहा था, "50 फ़ीसदी टैरिफ़ की वजह से भारत की जीडीपी में 0.2 से 0.4 फ़ीसदी तक गिरावट आ सकती है. इससे इस साल आर्थिक विकास दर छह फ़ीसदी से नीचे जा सकती है."
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ज़्यादातर विश्लेषकों का कहना है कि भारत पर टैरिफ़ से अमेरिकी बाज़ार में चीजें महंगी हो जाएंगीं. इससे महंगाई को काबू करने की डोनाल्ड ट्रंप की कोशिश को झटका लग सकता है.
कुछ दिनों पहले स्पोर्ट्स जूते बनाने वाली कंपनी एडिडासने कहा था कि वह टैरिफ़ की वजह से अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए कीमतों में इज़ाफ़ा करेगी.
कंपनी के आधे से ज़्यादा उत्पाद वियतनाम और इंडोनेशिया में बनते हैं, जिन पर क्रमशः 20 और 19 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाया गया है.
खेलों से जुड़े सामान बनाने वाली कंपनी नाइकी ने भी कहा है कि अमेरिका में उसके उत्पादों की कीमतें बढ़ेंगी.
इस कंपनी ने यह भी चेतावनी दी है कि टैरिफ़ की वजह से उसकी लागत में एक अरब डॉलर की बढ़ोतरी हो सकती है.
कुछ कंपनियां कम मात्रा में विदेशी सामान आयात कर रही हैं. इससे उपलब्ध सामान की क़ीमत में बढ़ोतरी हो रही है.
ऐसे अमेरिकी उत्पादों की क़ीमत भी बढ़ने की उम्मीद है जिन्हें बनाने के लिए विदेशों से सामान मंगाया जाता है.
नए टैरिफ़ से अमेरिकी सीमा पर कस्टम चेक में भी सख्ती बढ़ेगी, जिससे उत्पादों के सीमा पार करने में देरी स्वाभाविक हो जाएगी.
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