चेतावनी: इस रिपोर्ट के कुछ अंश पाठकों को विचलित कर सकते हैं.
इसराइल की जेलों से छूटने के बाद ग़ज़ा पहुंचे फ़लस्तीनी कैदियों ने बीबीसी को बताया कि इसराइली सेना और जेल के अधिकारियों ने न केवल उनके साथ बुरा व्यवहार किया बल्कि उन्हें बुरी तरह प्रताड़ित भी किया.
क़ैदियों के इन बयानों से इसराइली जेलों और फ़ौजी बैरकों में फ़लस्तीनियों के साथ किए जा रहे अमानवीय व्यवहार के आरोपों को और बल मिला है.
36 साल के मोहम्मद अबू तवीला मैकेनिक हैं. उनके शरीर पर केमिकल फेंककर आग लगा दी गई. आग बुझाने के लिए अबू तवीला जानवरों की तरह तड़पते रहे.
बीबीसी ने पांच ऐसे फ़लस्तीनियों के लंबे इंटरव्यू किए हैं, जिन्हें ग़ज़ा से उस समय गिरफ़्तार किया गया था जब हमास ने इसराइल पर बड़ा हमला किया था. उस हमले में 1200 इसराइली नागरिक मारे गए थे और 251 को बंधक बना लिया गया था.

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इन क़ैदियों को इसराइल के एक विवादास्पद क़ानून के तहत बिना किसी मुक़दमे के ही जेल में रखा गया. यह क़ानून उन लोगों पर लागू होता है, जिन्हें इसराइल की सुरक्षा के लिए ख़तरा समझा जाता है.
क़ैदियों ने बताया कि उन पर हमास से संबंध रखने का आरोप लगाकर इसराइली बंधकों और ग़ज़ा में सुरंगों के बारे में पूछा गया लेकिन इसराइली अधिकारियों को उनके ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिला.
यही वजह है कि हमास और इसराइल में हुए संघर्ष विराम समझौते के तहत उनकी रिहाई हुई.
हालांकि इस समझौते के तहत रिहा होने वाले कुछ लोग इसराइली नागरिकों की हत्या जैसे संगीन जुर्म के आरोप के तहत सज़ा काट रहे थे लेकिन जिन कैदियों ने बीबीसी को इंटरव्यू दिया उन पर ऐसा कोई आरोप नहीं था.
इस संबंध में हमने इसराइल डिफ़ेंस फ़ोर्सेज़ (आईडीएफ़) और इसराइली जेल सर्विस (आईपीएस) से भी पूछा कि क्या उन लोगों के ख़िलाफ़ कोई मुक़दमा था मगर हमें उनसे कोई जवाब नहीं मिला.
क़ैदियों के बयानों के मुताबिक़ उनके कपड़े उतार कर, आंखों पर पट्टियां और हाथ बांध कर मारा-पीटा जाता था.
कुछ ने बताया कि उन्हें बिजली के झटके दिए गए, कुत्तों से डराया गया और उनका इलाज नहीं कराया गया. कुछ ने दूसरे क़ैदियों की मौत अपनी आंखों से देखी.
एक क़ैदी ने बताया कि उन्होंने अपने सामने दूसरे क़ैदी पर यौन हिंसा होते देखा.
बीबीसी ने इसराइली सेना से क़ैदियों के आरोपों के बारे में पूछा तो जवाब मिला कि 'वह क़ैदियों के साथ संगठित अत्याचार के आरोपों को पूरी तरह ख़ारिज करती है.'
सेना ने कहा कि बीबीसी ने जिन मामलों का ज़िक्र किया है उनके बारे में संबंधित अधिकारियों से पता करेंगे.
सेना ने कहा "अन्य आरोपों में न तो क़ैदियों की पहचान शामिल है और न ही कोई ठोस जानकारी है, ऐसे में उनकी जांच संभव नहीं."
सेना ने यह भी कहा कि इसराइल डिफ़ेंस फ़ोर्सेज़ ऐसे मामलों को बहुत गंभीरता से लेती है जो उसके मूल्यों के विपरीत हों. क़ैदियों के साथ अनुचित व्यवहार या असुविधा की शिकायतें संबंधित अधिकारियों को भेजी जाती हैं और उन पर उचित कार्रवाई की जाती है.
उधर इसराइली जेल सर्विस (आईपीएस) का कहना था कि उसे अपनी हिरासत में मौजूद किसी क़ैदी से अनुचित व्यवहार किए जाने की जानकारी नहीं है.
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ़ ब्रिस्टल से जुड़े डॉक्टर लॉरेंस हिल कॉथोर्न का कहना है कि क़ैदियों ने जो हालात बताए हैं वह अंतरराष्ट्रीय और इसराइली दोनों क़ानूनों का पूरी तरह से उल्लंघन है.
बीबीसी ने जिन पांच फ़लस्तीनी क़ैदियों का इंटरव्यू किया उन्हें इसी साल की शुरुआत में संघर्ष विराम समझौते के तहत इसराइल की जेलों से रिहा किया गया था.
ये पांचों लोग करीब 1900 फ़लस्तीनी क़ैदियों और नज़रबंद लोगों में शामिल थे, जिन्हें 33 इसराइली बंधकों के बदले में रिहा किया गया था.
रिहाई पाने वाले इसराइली नागरिकों में 25 जीवित थे जबकि आठ लोगों की मौत हो गई थी. रिहा होने वाले इसराइलियों का दावा है कि उन्हें हमास की क़ैद में प्रताड़ित करते हुए भूखा रखा गया और धमकियां भी दी गईं.
इसराइल से रिहा किए गए पांचों फ़लस्तीनियों ने एक जैसे हालात बयान किए. उन्होंने बताया कि उन्हें ग़ज़ा से गिरफ़्तार करके इसराइल ले जाया गया जहां पहले उन्हें फ़ौजी बैरकों में रखा गया, फिर जेल ले जाया गया और कई महीने बाद उन्हें वापस ग़ज़ा भेज दिया गया.
अन्य क़ैदियों ने भी मारपीट, भूखे रखने और बीमार होने पर दवा न देने जैसे बातें बताईं.
जुलाई 2024 में संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में बताया गया था कि फ़लस्तीनी क़ैदियों को नंगा किया गया, खाना-पानी नहीं दिया गया, सोने नहीं दिया गया, उन्हें बिजली के झटके दिए गए, सिगरेट से जलाया गया और उन पर कुत्ते छोड़े गए.
पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों की एक और रिपोर्ट में यौन उत्पीड़न और रेप की घटनाओं की चर्चा थी. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि इसराइली सेना की ओर से यौन हिंसा या उसकी धमकी देना 'एक आम रवैया' बन चुका है.
इसराइल ने इन आरोपों को 'बेबुनियाद' बताते हुए पूरी तरह ख़ारिज कर दिया था.
इसराइल विदेशी पत्रकारों को स्वतंत्र रूप से ग़ज़ा जाने की इजाज़त नहीं देता इसलिए बीबीसी ने उन क़ैदियों के इंटरव्यू, फ़ोन, टेक्स्ट और स्थानीय पत्रकारों की मदद से किए हैं.
इन पांचों लोगों ने बताया कि उनके साथ हिंसा की शुरुआत गिरफ़्तारी के वक़्त ही हो गई थी. उन्हें नंगा किया गया, उनकी आंखों पर पट्टियां बांधी गईं और उन्हें मारा पीटा गया.
चेतावनी: नीचे दी गई तस्वीर पाठकों को विचलित कर सकती है.
मोहम्मद अबू तवीला: मैं आग बुझाने के लिए जानवरों की तरह तड़पता रहापेशे से मैकेनिक मोहम्मद अबू तवीला ने बताया कि उन्हें कई दिनों तक प्रताड़ित किया गया. उनका कहना था कि मार्च 2024 में गिरफ़्तारी के बाद इसराइली सैनिक उन्हें पास की इमारत में ले गए जहां तीन दिन तक वह अकेले क़ैदी थे. वह लगातार सैनिकों की पूछताछ और हिंसा का सामना करते रहे.
मोहम्मद अबू तवीला ने बताया कि एक बार सैनिकों ने एक बर्तन में सफ़ाई के लिए इस्तेमाल होने वाला केमिकल मिलाया और उनके सिर पर डाल दिया.
इसके बाद उन्हें मुक्के मारे जिससे वह गिर पड़े और उनकी आंख ज़ख़्मी हो गई.
फिर इसराइली सैनिकों ने उनकी ज़ख़्मी आंख पर कपड़ा बांध दिया जिससे तकलीफ़ और बढ़ गई.
उन्होंने बताया कि सैनिकों ने उनके बदन पर आग भी लगाई.
"उन्होंने ख़ुशबू वाला स्प्रे और लाइटर इस्तेमाल करके मेरी कमर में आग लगा दी. मैं आग बुझाने के लिए जानवरों की तरह तड़पता रहा. आग मेरे गले से लेकर टांगों तक फैल गई. फिर उन्होंने बार-बार बंदूकों के बट और लकड़ी के डंडों से मुझे मारा और बार-बार मेरे शरीर को चुभोते रहे."
"वे मेरे सिर पर तेज़ाब डालते थे और जब मैं कुर्सी पर बैठता तो यह तेज़ाब मेरे पूरे बदन पर बहता रहता."
मोहम्मद अबू तवीला बताते हैं कि आख़िर में सैनिकों ने उनके बदन पर पानी डाला और फिर उन्हें इसराइल ले गए जहां अस्पताल में उनका इलाज हुआ जिसमें उनकी स्किन ग्राफ़्टिंग की गई.

अबू तवीला ने बताया कि उनका ज़्यादातर इलाज इसराइल के दक्षिणी इलाक़े बीर शबा के पास स्थित 'सदी तीमान' नाम के फ़ौजी अड्डे के एक फ़ील्ड अस्पताल में हुआ.
उनका कहना था कि उन्हें नंगी हालत में बिस्तर से बांध दिया गया था और शौचालय की सुविधा देने की बजाय केवल नैपी पहनने को दिया गया.
इस अस्पताल में काम करने वाले इसराइली डॉक्टरों ने पहले भी बीबीसी को बताया था कि क़ैदी मरीज़ों को ज़ंजीरों से बांधना और नैपी पहनाना वहां के लिए आम बात है.
तवीला ने बताया कि जलने का दर्द इतना तकलीफ़ देने वाला होता था कि वह नींद से जाग जाते थे. बीबीसी किसी ऐसे शख़्स से बात नहीं कर सका जो अबू तवीला पर होने वाले हमले का चश्मदीद गवाह हो.
मगर ग़ज़ा में एक नेत्र रोग विशेषज्ञ ने क़ैद से वापसी पर उनका मुआयना किया था और उन्होंने बीबीसी से इस बात की पुष्टि की कि अबू तवीला की आंख पर केमिकल से जलने का असर था जिससे आंख के आसपास के चमड़े को नुक़सान पहुंचा.
उस डॉक्टर का कहना था कि अबू तवीला की नज़र कमज़ोर हो रही है.
बीबीसी ने अबू तवीला के घावों की तस्वीर और इंटरव्यू में दी गई जानकारी कई ब्रिटिश डॉक्टरों से साझा की जिन्होंने कहा कि ज़ख़्म और लक्षण अबू तवीला की कहानी से मेल खाते हैं.
लेकिन उनका यह भी कहना था कि केवल तस्वीरें देखकर इन ज़ख़्मों के कारणों पर रोशनी नहीं डाली जा सकती.
आईडीएफ़ ने अबू तवीला के आरोपों का सीधे जवाब नहीं दिया और केवल इतना कहा कि वह ऐसे किसी भी मामले को बहुत गंभीरता से लेते हैं जो उनके मूल्यों के विरुद्ध हो.
अहमद अबू सैफ़: 'जो तुमने हमारे बच्चों के साथ किया, हम वही तुम्हारे बच्चों के साथ करेंगे'जिस दूसरे फ़लस्तीनी से बीबीसी ने बात की उन्होंने भी गिरफ़्तारी के वक़्त दुर्व्यवहार की बात बताई है.
अब्दुल करीम मुश्तहा की उम्र 33 साल है और वह पोल्ट्री फ़ॉर्म में काम करते हैं. उन्होंने बताया, "इसराइली सैनिकों ने हमें हथकड़ियां लगाईं और मारना शुरू कर दिया. किसी ने मुझे पानी का एक घूंट भी नहीं दिया."
उन्होंने बताया कि नवंबर 2023 में जब वह अपने परिवार के साथ इसराइल के आदेश पर इलाक़े को छोड़कर जा रहे थे तो एक चेक पोस्ट पर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया.
जेल में मुश्तहा से मिले एक वकील ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि 'जेल भेजे जाने से पहले अब्दुल करीम मुश्तहा पीटा गया और नंगा कर बेइज़्ज़त किया गया.'
दो क़ैदियों ने बताया कि उन्हें घंटों सर्दी में बाहर खड़ा रखा गया. दो अन्य क़ैदियों ने कहा कि इसराइली सैनिकों ने उनके पैसे और सारा सामान छीन लिये.
इन आरोपों को सेना ने अपने 'क़ानून और मूल्यों के विरुद्ध' बताया. घटना के बारे में और जानकारी मिलने पर इसकी जांच की भी बात कही.
अब्दुल करीम मुश्तहा समेत सभी क़ैदियों ने बताया कि उन्हें इसराइली सैनिक छावनी 'सदी तीमान' ले जाया गया जहां अबू तवीला का भी एक फ़ील्ड अस्पताल में इलाज किया गया.
एक क़ैदी ने सुरक्षा के डर से अपना नाम न बताने को कहा, इसलिए हमने उन्हें उमर नाम दिया है.
उमर कहते हैं कि उस फ़ौजी छावनी में ले जाते समय भी इसराइली सैनिकों ने उनसे बुरा सलूक किया.
उनका कहना था कि इसराइली सैनिकों ने उन पर और दूसरे क़ैदियों पर थूका. सैनिक उन्हें, 'सूअर की औलाद' और 'सिनवार की औलाद' जैसी गालियां दे रहे थे.
हमास के नेता याह्या सिनवार के बारे में इसराइली सेना का दावा है कि वह 7 अक्तूबर के हमले के योजनाकार थे और पांच माह पहले इसराइली कार्रवाई में मारे गए.
उमर ने बताया, "उन्होंने हमें एक ऑडियो रिकॉर्डिंग सुनवाई, जिसमें कहा गया था, जो तुमने हमारे बच्चों के साथ किया, हम वही तुम्हारे बच्चों के साथ करेंगे."

जिन तीन लोगों से हमने बात की उन्होंने आरोप लगाया की सदी तीमान और दूसरे हिरासती केंद्रों में क़ैदियों को डराने के लिए कुत्तों का इस्तेमाल किया जाता था.
अबू तवीला हिरासती बैरक में क़ैद थे और वहीं उनका इलाज भी किया जाता रहा.
उन्होंने बताया, "जब हमें बैरक से मेडिकल क्लीनिक या पूछताछ वाले कमरे में ले जाया जाता तो उस दौरान भी हमें मारा पीटा जाता. हमें हथकड़ियों में बांधकर, हमारे ऊपर कुत्ते छोड़ दिए जाते."
इस आरोप पर इसराइली सेना ने जवाब दिया कि 'क़ैदियों को नुक़सान पहुंचाने के लिए कुत्तों का इस्तेमाल प्रतिबंधित है.'
इसराइली सेना का यह भी दावा था कि क़ैद में रखे गए लोगों में ख़तरनाक आतंकवादी शामिल हैं.
अबू तवीला ने बताया, "हमें सुबह पांच बजे से रात दस बजे तक घुटनों के बल बैठना पड़ता था."
एक और क़ैदी हम्माद ने बताया कि बैरक में मारपीट के दौरान उनके सिर, आंखों और कानों को निशाना बनाया जाता था.
हम्माद ने बताया कि इसराइली सैनिकों की हिंसा से उनके कान और कमर को नुक़सान पहुंचा और उनकी पसलियां भी टूट गईं. हम्माद के इन आरोपों का इसराइली सेना ने कोई जवाब नहीं दिया है.
'कुत्ते, लाठियां और इलेक्ट्रिक गन'हम्माद और कुछ दूसरे रिहा होने वाले क़ैदियों ने बताया कि पूछताछ के दौरान या सज़ा के तौर पर उन्हें बिजली के झटके भी दिए गए.
उन्होंने बताया, "हिंसा करने वाली यूनिट के सैनिक कुत्ते, लाठियां और इलेक्ट्रिक गन लेकर आते. वह हमें बिजली के झटके देते और मारते थे."
मुश्तहा का कहना था, "हर क़ैदी से कहा जाता - तुम आतंकवादी हो. क़ैदियों को 7 अक्तूबर के हमले में हिस्सा लेने की बात स्वीकारने के लिए कहा जाता था. पूछताछ के दौरान हमास से संबंध रखने का आरोप लगाया जाता रहा."
उन्होंने बताया कि पूछताछ रात भर जारी रहती थी.
"हमारे हाथ बांधकर सिर के ऊपर कई घंटे तक रखे जाते और इस दौरान हम कुछ पहने नहीं होते थे. जब भी हम कहते कि सर्दी लग रही है तो वह एक बाल्टी में ठंडा पानी भरकर हम पर डालते और पंखा चला देते."
उमर ने बताया, "हम सूरज नहीं देख सकते थे, कुछ नहीं देख सकते थे."
इसराइली सेना का कहना है कि उनकी अपनी 'निगरानी प्रक्रिया' है जिसमें क्लोज़ सर्किट कैमरे शामिल हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हिरासती केंद्रों को इसराइली सेना के आदेशों और क़ानून के अनुसार चलाया जा रहा है.
उमर ने बताया कि उन्होंने केत्सीओत जेल में क़ैदियों का यौन उत्पीड़न होते हुए देखा.
उमर ने बीबीसी को बताया, "उन्होंने कुछ लड़कों के कपड़े उतारे और शर्मनाक हरकत की. उन्होंने लड़कों को एक दूसरे के साथ यौन संबंध बनाने को मजबूर किया. मैंने अपनी आंखों से देखा."
बीबीसी को इस तरह की कोई दूसरी रिपोर्ट नहीं मिली है.
लेकिन इसराइली जेलों में फ़लस्तीनियों की हालत पर नज़र रखने वाले एक फ़लस्तीनी संगठन का कहना है कि 'इस जेल में क़ैदियों के साथ यौन दुर्व्यवहार आम बात है.'
बीबीसी ने क़ैदियों से यौन दुर्व्यवहार करने के आरोप के बारे में इसराइली जेल सर्विस को बताया. उन्होंने जवाब दिया कि उन्हें यौन उत्पीड़न के आरोप या जेल में क़ैदियों के साथ होने वाले ख़राब सलूक के बारे में कोई जानकारी नहीं है.
उन्होंने दावा किया कि जेल में प्रशिक्षित गार्ड्स मानवाधिकारों को लागू करवाने की कोशिश करते हैं. उन्होंने कहा, "हमें आपके बताए आरोपों की जानकारी नहीं है और जितनी जानकारी हमें है उस हिसाब से ऐसा कोई काम नहीं हुआ."
मुश्तहा ने कहा कि उनका सर दरवाज़ों से टकराया गया और उनके यौनांगों पर भी मारा गया.
मुश्तहा बताते हैं, "वह हमें नंगा करके हमारे संवदेनशील अंगों पर मारते थे और चिढ़ाते थे. हमें वह कहा करते थे कि तुम्हारा बधियाकरण कर देंगे."
उमर ने बताया कि जब क़ैदी इलाज की मांग करते तो उन्हें भयानक हिंसा का निशाना बनाया जाता.
कई क़ैदियों ने बताया कि हिरासत के दौरान उन्हें बहुत कम खाना और पानी दिया जाता.
मुश्तहा ने बताया, ''जेल में मेरा खाना अक्सर पिंजरानुमा जगह के बाहर रखा जाता था. वहां पहले बिल्लियां और परिंदे खाते थे और फिर आख़िरी में मुझे मिलता था.''
इंटरनेशनल कमेटी ऑफ़ रेड क्रॉस (आईसीआरसी) भी जेल से वापस आने वाले क़ैदियों से इंटरव्यू करती है. रेड क्रॉस के अधिकारियों ने कहा कि रिहा हुए लोगों की निजता की वजह से वह कोई टिप्पणी नहीं कर सकते.
आईसीआरसी ने बीबीसी से कहा, "क़ैदियों के कल्याण के लिए हम बहुत चिंतित है. हम सभी हिरासती केंद्रों में जाने की इजाज़त चाहते हैं."
सात अक्तूबर के हमलों के बाद से इसराइली हिरासत केंद्रों में आईसीआरसी को जाने की इजाज़त नहीं दी गई.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित
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