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आइंस्टाइन जिन तीन चीज़ों पर ग़लत साबित हुए

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बुद्धिमान लोग भी इंसान ही होते हैं.

आइंस्टाइन भले रिलेटिविटी के सिद्धांत के जनक थे और जाने-माने भौतिक विज्ञानी, जिन्होंने गुरुत्वाकर्षण की खोज और व्याख्या की. लेकिन महान आइंस्टाइन भी कई बार अपने ही सिद्धांतों पर भरोसा नहीं करते थे.

ख़ुद पर शक के कारण ही आइंस्टाइन ने कई बार बड़ी ग़लतियां कीं.

आइंस्टाइन की बड़ी ग़लतियां

आइंस्टाइन जब जनरल रिलेटिविटी के सिद्धांत पर काम कर रहे थे तब उनका आकलन था कि ब्रह्मांड के सिकुड़ने और फैलने का कारण गुरुत्वाकर्षण है, जबकि इसके उलट तब यह मानना था कि ब्रह्मांड स्थिर है.

ऐसे में 1917 में जनरल रिलेटिविटी पर अपने रिसर्च पेपर में आइंस्टाइन ने कॉस्मोलॉजिकल कॉन्स्टैंट को शामिल किया था. दरअसल, आइंस्टाइन ने गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के काउंटर में इसे शामिल किया था. इसी का नतीजा था कि उन्होंने ब्रह्मांड स्थिर है, वाली रूढ़िवादी मान्यता का समर्थन किया था.

एक दशक या इससे और आगे वैज्ञानिकों ने नए सबूतों को जुटाना शुरू किया और इनसे पता चला कि ब्रह्मांड स्थिर नहीं है, बल्कि गतिशील है.

भौतिक विज्ञानी जॉर्ज गैमोव ने बाद में अपनी किताब माय वर्ल्ड लाइन: ऐन इन्फॉर्मल ऑटोबायोग्राफ़ी में लिखा कि कॉस्मोलॉजिकल टर्म को पेश करना आइंस्टाइन के जीवन की सबसे बड़ी ग़लती थी.

image Nasa/Esa/J Merten/D Coe 1929 के बाद से वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड को लेकर अपनी सोच बदली और माना कि ब्रह्मांड स्थिर नहीं बल्कि गतिशील है

लेकिन इसमें एक और पहेली थी. वैज्ञानिकों के पास अब सबूत था कि ब्रह्मांड की गतिशीलता एक रहस्यमय डार्क एनर्जी के कारण है.

आइंस्टाइन ने अपने समीकरणों में गुरुत्वाकर्षण के काउंटर के तौर पर कॉस्मोलॉजिकल कॉन्स्टैंट का इस्तेमाल किया था. इसी कॉस्मोलॉजिकल कॉन्स्टैंट को ब्रह्मांड की गतिशीलता के लिए ज़िम्मेदार एनर्जी के रूप में देखा जा सकता है.

आइंस्टाइन के जनरल रिलेटिविटी के सिद्धांत के मुताबिक़, तारे या किसी बड़ी वस्तु का गुरुत्वाकर्षण प्रभाव क्षेत्र, अपने पीछे स्थित किसी दूर की वस्तु से आने वाले प्रकाश को मोड़ देता है और किसी बड़े मैग्नीफाइंग लेंस की तरह काम करता है.

आकाशगंगा

आइंस्टाइन को लगता था कि ग्रैविटेशनल लेंसिंग का ये प्रभाव इतना कम होगा कि इसे देख पाना मुश्किल होगा. आइंस्टाइन अपने इस सिद्धांत को प्रकाशित भी नहीं कराना चाहते थे. हालांकि, चेक गणराज्य के एक इंजीनियर आर डब्ल्यू मेंडल ने उन्हें इसे प्रकाशित करने के लिए मना लिया था.

1936 के रिसर्च पेपर में आइंस्टाइन ने जर्नल साइंस के एडिटर को लिखा था, "इस छोटे से प्रकाशन में सहयोग के लिए आपको बहुत धन्यवाद. ऐसा मिस्टर आरडब्ल्यू के कारण ही हो सका. इसका कोई महत्व नहीं है, लेकिन प्रकाशन के बाद मैं ख़ुश हूँ.''

आइंस्टाइन को तब भले लग रहा था कि इस प्रकाशन का बहुत महत्व नहीं है, लेकिन खगोल विज्ञान में यह काफ़ी अहम साबित हुआ.

इसी के कारण अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी की हबल टेलिस्कोप आकाशगंगा की जानकारी जुटा पाती है.

image Nasa/Esa ग्रैविटेशनल लेंसिंग के कारण वैज्ञानिकों को खगोल विज्ञान से जुड़ी जानकारी जुटाने में काफ़ी मदद मिली 'ईश्वर कोई पासा नहीं चल रहा'

आइंस्टाइन ने 1905 के पेपर समेत कई रिसर्च में बताया कि प्रकाश तरंग और कण दोनों की तरह व्यवहार करता है. आगे चलकर इसी से भौतिकी की एक अहम शाखा की नींव पड़ी.

क्वांटम मैकेनिक्स सूक्ष्म परमाणु कणों की अजीबोगरीब दुनिया के पहलुओं को सामने लाता है.

मिसाल के तौर पर, एक क्वॉन्टम ऑब्जेक्ट कई अवस्थाओं में हो सकता है, जब तक कि इसे ऑब्जर्व कर कोई वैल्यू ना दे दी जाए.

भौतिक विज्ञानी एरविन श्रोडिंगर ने एक उदाहरण दिया था. वो मिसाल थी - किसी डिब्बे के अंदर बैठी एक बिल्ली को मरा भी समझा जा सकता है और जिंदा भी जब तक कि कोई डिब्बे का ढक्कन खोलकर देख ना ले.

आइंस्टाइन ने इस अनिश्चितता को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था. 1926 में उन्होंने भौतक विज्ञानी मैक बॉर्न को लिखा था कि ईश्वर ने ब्रह्मांड में कोई पासा नहीं चला है. यानी ब्रह्मांड में सब कुछ अनिश्चित नहीं है.

image Getty Images क्वॉन्टम ऑब्जेक्ट को समझाने के लिए एरविन श्रोडिंगर ने 'कैट इन अ बॉक्स' का उदाहरण दिया है

आइंस्टाइन ने 1935 में बोरिस पोडोल्स्की और नाथन रोज़ेन के साथ मिलकर एक पेपर प्रकाशित किया था.

इसमें उन्होंने तर्क दिया था कि अगर सुपरपोजिशन में दो चीज़ो को किसी ना किसी रूप में जोड़कर अलग किया जाए तो पहली वस्तु को ऑब्जर्व करके उसे एक वैल्यू दी जा सकती है. इसके बाद दूसरी वस्तु को बिना देखे ही उसकी वैल्यू का पता लगाया जा सकता है.

हालांकि, आइंस्टाइन का ये विचार क्वॉन्टम सुपरपोजिशन को ख़ारिज करने के तौर पर देखा गया था, लेकिन एक दशक बाद इसी सिद्धांत से क्वॉन्टम मैकेनिक्स के अहम सिद्धांत कॉल एंटैंगलमेंट का रास्ता खुला.

इसके मुताबिक, दो चीज़ों को जोड़कर एक वस्तु के तौर पर देखा जा सकता है, भले ही वह कितनी दूर हों. आइंस्टाइन अपने सिद्धांत में ब्रिलियंट थे और यहां तक कि जिन चीज़ों में वह ग़लत साबित हुए, उनमें भी उनकी इंटेलिजेंस (बुद्धिमत्ता) साफ़ दिखती है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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