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वायु प्रदूषण से आपके फेफड़ों को कितना नुक़सान? बचने के लिए क्या करें

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Getty Images दिल्ली में बढ़ता वायु प्रदूषण सेहत के लिए ख़तरनाक हो सकता है

दिवाली की रात दिल्ली समेत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में एयर क्वालिटी बेहद ख़राब हो गई.

दिवाली में आतिशबाजी की वजह से राजधानी दिल्ली समेत भारत के ज़्यादातर शहरों में वायु प्रदूषण काफी बढ़ जाता है.

दिवाली के दूसरे दिन यानी मंगलवार को सुबह साढ़े पांच बजे दिल्ली में एक्यूआई 301 था. एक्यूआई हवा में पीएम 2.5 के स्तर को मापता है (ये बेहद सूक्ष्म कण होते हैं जो फेफड़ों में रुकावट डाल सकते हैं और कई बीमारियों की वजह बन सकते हैं).

301 से ऊपर का एक्यूआई इमरजेंसी की स्थिति मानी जाती है और इसमें लोगों के स्वास्थ्य को गंभीर ख़तरा हो सकता है.इससे फेफड़ों और सांस की गंभीर बीमारियां हो सकती हैं.

फेफड़ों की बीमारी के अलावा गर्भपातहो सकता है. पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या कम हो सकती है और बच्चों के फेफड़ों का विकास रुक सकता है.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी)के आंकड़ों के मुताबिक़ 21 अक्टूबर, 2025 सुबह छह बजे दिल्ली में पीएम 2.5 पीएम ओवरऑल स्तर 228 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था, जो 24 घंटे की अवधि के लिए डब्ल्यूएचओ की मंजूर सीमा 15 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से 15.1 गुना अधिक है.

वायु प्रदूषण कितना ख़तरनाक image Getty Images विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषित हवा के चरम स्तर के लंबे समय तक संपर्क में रहने से सांस संबंधी गंभीर संस्याएं हो सकती हैं.

पीएम यानी 2.5 पार्टिकुलेट मैटर (सूक्ष्म कण) हवा में मौजूद बहुत ही छोटे कण होते हैं जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर (µm) से कम होता है. ये सांस के ज़रिए शरीर में गहराई तक जा सकते हैं, फेफड़ों और ख़ून के प्रवाह को प्रभावित कर सकते हैं. इससे अस्थमा, हृदय रोग और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं.

फिलहाल ये जानते हैं इस तरह के गंभीर वायु प्रदूषण से आपके फेफ़ड़ों को कितना नुक़सान पहुंच सकता है. इसका लोगों की पूरी सेहत पर क्या असर पड़ सकता है और इस तरह की स्थिति से बचने के क्या तरीके हो सकते हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की प्रदूषित हवा के इस चरम स्तर के लंबे समय तक संपर्क में रहने से सांस संबंधी गंभीर संस्याएं हो सकती हैं. जिनमें सीने में हल्की जलन से लेकर क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) जैसी गंभीर स्थितियां शामिल हैं.

कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि वायु प्रदूषण हृदय संबंधी बीमारियों का सबसे बड़ा कारण है. इनमें दिल का दौरा, स्ट्रोक और हार्ट फेल्योर, स्ट्रोक से दिल की धड़कनें अनियमित होना शामिल है.

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया और एम्सके एक अध्ययन के अनुसार, पीएम 2.5 के लंबे समय तक संपर्क में रहने से लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एलडीएल) या खराब कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स दोनों बढ़ सकते हैं. इससे ख़ून गाढ़ा हो सकता है, जिससे हृदय के लिए इसे पंप करना मुश्किल हो जाता है और ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है.

पीएम 2.5 आसानी से रक्तप्रवाह में घुस सकता है. यह ख़ून ले जाने वाली वाहिकाओं की परत में सूजन पैदा करता है. उन्हें कमज़ोर करता है और उन्हें डैमेज भी करता है. इससे उनके फटने का ख़तरा बढ़ जाता है. इससे दिल का दौरा पड़ सकता है.

पीएम 2.5 हृदय में कैल्शियम के असामान्य स्तर की वजह बन सकता है. इससे हृदय की धड़कन बाधित हो सकती है और अचानक हार्ट अटैक हो सकता है. यह ब्लड प्रेशर को भी काफी बढ़ा सकता है.

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क्या कहते हैं विशेषज्ञ image Getty Images वायु प्रदूषण बढ़ने से एलर्जी हो सकती है और दिल के मरीजों के लिए जोख़िम बढ़ सकता है.

दिल्ली के लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल के डिप्टी मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. योगेश कुशवाहा कहते हैं, ''ऐसे लोगों को इस स्थिति में सांस फूलने जैसी समस्या आ सकती है. वायु प्रदूषण बढ़ने से एलर्जी हो सकती है और दिल के मरीजों में इसके लक्षण बिगड़ सकते हैं. इससे दिल का दौरा पड़ने की आशंका भी बढ़ जाती है.''

वो कहते हैं, ''एलर्जी की वजह से श्वसन नली सिकुड़ जाती है. इससे सांस लेने में दिक्कत होती है. इस स्थिति में शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है. हृदय का काम शरीर के अंगों में खून के ज़रिये ऑक्सीजन पहुंचाना है. जब ऑक्सीजन की कमी हो जाएगी तो हृदय को ज़्यादा काम पड़ेगा. जो लोग पहले से दिल के मरीज हैं उनके हृदय पर दबाव बढ़ जाएगा. इससे दिल के दौरे को जोख़िम बढ़ जाता है. फेफड़ों के मरीजों के अलावा हार्ट संबंधी दिक्कतों का सामना करने वाले लोगों की सेहत के लिए भी जोख़िम बढ़ जाता है.''

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वायु प्रदूषण से कैसे बचें image Getty Images विशेषज्ञों के मुताबिक़ वायु प्रदूषण के नुक़सान से पहुंचने के लिए शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए.

डॉ. कुशवाहा कहते हैं दिल्ली जैसे शहरों में जब दिवाली और इसके बाद ठंड के दिनों में वायु प्रदूषण काफी बढ़ जाता है तो कुछ चीजें करके अपनी सेहत की हिफ़ाजत की जा सकती है.

क्या करें

  • धुआं और धूल से हर संभव बचने की कोशिश करें
  • अस्थमा के मरीज नेबुलाइजर और इनहेलर हमेशा साथ रखें
  • एन-95 मास्क पहनें. ये आपको धूल से होने वाली परेशानी से बचाएगा
  • सुबह की सैर और शाम बाहर निकलने से बचें
  • लंबे समय तक भारी परिश्रम से बचें
  • लंबी सैर की जगह कम दूरी टहलें. इस दौरान कई ब्रेक लें
  • सांस से जुड़ी किसी भी तरह की परेशानी होने पर शारीरिक क्रियाएं बंद कर दें
  • प्रदूषण ज़्यादा महसूस होने पर घर की खिड़कियां बंद कर दें
  • घर के अंदर एयर प्योरीफायर का इस्तेमाल करें
image BBC

डॉ. कुशवाहा कहते हैं कि वायु प्रदूषण के नुक़सान से पहुंचने के लिए शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए.

वो कहते हैं, ''पानी किसी भी बीमारी के ख़िलाफ़ आपकी इम्यूनिटी बढ़ाता है. इससे शरीर में प्रवेश करने वाले पॉल्यूटेंट्स पेशाब के ज़रिये बाहर निकल जाते हैं. एंटी ऑक्सीडेंट्स लेने से भी शरीर वायु प्रदूषण के नुक़सान से बच सकता है. ''

डॉ. योगेश कुशवाहा कहते हैं, '' विटामिन सी हमारे शरीर में एंटी ऑक्सिडेंट्स बनाता है. ऑक्सिडेंट्स हमारे शरीर की कोशिकाओं को नुक़सान पहुंचाता है. संतरा, नींबू जैसे विटामीन सी से भरपूर फल और विटामिन ई एंटी ऑक्सिडेंट्स बढ़ाते हैं.''

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पूरी ज़िंदगी परेशान कर सकता है वायु प्रदूषण

इंपीरियल कॉलेज लंदन के रिसर्चरोंने पाया है कि वायु प्रदूषण जीवन के सभी चरणों में लोगों को नुक़सान पहुंचाता है.

ग्रेटर लंदन अथॉरिटी की ओर से तैयार की गई रिपोर्ट में पाया गया कि कुछ कणों के संपर्क में आने से गर्भपात हो सकता है, पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या कम हो सकती है तथा बच्चों के फेफड़ों का विकास रुक सकता है.

वयस्क होने पर ये क्रॉनिक बीमारियों, कैंसर और स्ट्रोक का कारण भी बन सकता है.

इंपीरियल कॉलेज लंदन के पर्यावरण रिसर्च समूह की टीम ने दस वर्षों में 35,000 से अधिक स्टडीज के सुबूत देखे हैं

समीक्षा में पाया गया कि वायु प्रदूषण गर्भावस्था के दौरान भ्रूण के विकास को नुक़सान पहुंचाता है तथा इससे जन्म के समय कम वजन और गर्भपात हो सकता है. साथ ही पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या भी कम हो सकती है.

इसमें यह भी पाया गया कि वायु प्रदूषण बच्चों में फेफड़ों के विकास को रोक सकता है. अस्थमा का कारण बन सकता है. ये ब्लडप्रेशर, कॉग्निटिव कैपिसिटी और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है.

रिसर्चरों ने पीएम 2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की पहचान की है. दोनों ही वाहनों से निकलने वाले धुएं से आते हैं.इन्हें ख़ास तौर पर नुक़सानदेह माना गया है.

2018 में पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (पीएचई) ने अनुमान लगाया था कि वायु प्रदूषण के कारण ब्रिटेन में प्रति वर्ष 43,000 लोग मर रहे हैं और यदि कार्रवाई नहीं की गई तो 2035 तक देश को 18.6 बिलियन पाउंड का नुकसान हो सकता है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.

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