अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप खाड़ी देशों की चार दिवसीय यात्रा पूरी कर चुके हैं. इस दौरान ट्रंप सऊदी अरब, क़तर और संयुक्त अरब अमीरात पहुंचे.
दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप का यह पहला बड़ा विदेशी दौरा है. हालांकि, ट्रंप पिछले महीने यानी अप्रैल में इटली पहुंचे थे लेकिन तब वह पोप के अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे.
मध्य पूर्व के दौरे पर ट्रंप की लिस्ट में इसराइल का नाम नहीं था. उनके इस क़दम को अमेरिकी-इसराइल गठबंधन की तुलना में खाड़ी देशों के साथ आर्थिक सौदों को प्राथमिकता देने के रूप में देखा जा रहा है.
इसकी चर्चा अप्रैल में ही शुरू हुई थी जब व्हाइट हाउस की प्रवक्ता कैरोलिन लेविट ने ट्रंप के दौरे की जानकारी दी थी.
आमतौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति सबसे पहले इसराइल जाते थे और उसके बाद बाकी देशों का दौरा करते थे. लेकिन ट्रंप ने इसका उल्टा किया है.
ट्रंप के पहले कार्यकाल में उपराष्ट्रपति (2017-2021) और रिपब्लिकन नेता ने इस पर चिंता ज़ाहिर की है.
उन्होंने कहा, "मैं इस बात से 'निराश' था कि ट्रंप के यात्रा कार्यक्रम में इसराइल शामिल नहीं है."
यात्रा के बीच में ट्रंप से सवाल पूछा गया- आप इसराइल नहीं जा रहे हैं. क्या इस दौरे में इसराइल को साइडलाइन किया गया है?
- नहीं, बिल्कुल नहीं. इन खाड़ी देशों के साथ संबंध बनाना इसराइल के लिए बहुत अच्छा है.
ट्रंप भले ही इसराइल को साइडलाइन करने की बात को नकार रहे हैं लेकिन इसराइल और अमेरिका दोनों देशों की मीडिया में इसकी चर्चा ज़ोरों पर है.
इसराइल के अख़बार ने ट्रंप के करीबी सूत्रों के हवाले से कहा कि वह नेतन्याहू से 'निराश' हैं और 'उनका इंतज़ार किए बिना' मध्य पूर्व में आगे बढ़ने की योजना बना रहे हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि "ट्रंप का मानना है कि नेतन्याहू ज़रूरी निर्णय लेने में देरी कर रहे हैं. इस कारण अमेरिकी राष्ट्रपति इसराइल से अपेक्षित कार्रवाई किए जाने का इंतजार करने को तैयार नहीं हैं और उन्होंने उनके बिना ही आगे बढ़ने का फ़ैसला किया है."
इसराइली आर्मी रेडियो के संवाददाता यानिर कोज़िन ने एक इसराइली अधिकारी के हवाले से पर लिखा, "ट्रंप ने यह निर्णय इस संदेह के कारण लिया कि नेतन्याहू उन्हें मैन्युपुलेट करने का प्रयास कर रहे हैं."
हालांकि, कोज़िन के पोस्ट के बारे में किसी भी अमेरिकी या इसराइली अधिकारी ने कोई औपचारिक टिप्पणी नहीं की है.
अमेरिकी न्यूज़ ब्रॉडकास्टर ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच संबंध "तनावपूर्ण" हो गए हैं.
एनबीसी ने स्पष्ट किया कि इन सूत्रों में दो अमेरिकी अधिकारी, दो मध्य पूर्व के राजनयिक और तनाव की जानकारी रखने वाले दो अन्य लोग शामिल हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ईरान, हूती और ग़ज़ा में युद्ध आगे बढ़ने के मुद्दे पर नेतन्याहू और ट्रंप के बीच मतभेद बढ़ रहे हैं.
इसराइल में अमेरिका के राजदूत माइक हकबी ने मतभेद का दावा करने वालीं मीडिया रिपोर्ट्स का खंडन किया है.
हकबी ने , "राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नेतन्याहू के बारे में सारी बकवास 'सोर्स' से आती है, जो अपना नाम नहीं बताते हैं. मैं अपना नाम लिखूंगा. साझेदारी मज़बूत है. जो टूटा, वह है फ़र्ज़ी ख़बरों की विश्वसनीयता."
डोनाल्ड ट्रंप जब दूसरी बार सत्ता में आए तो लगा कि अमेरिका-इसराइल संबंध और अधिक मज़बूत होंगे. ट्रंप अपने पिछले कार्यकाल में भी इसराइल के कट्टर समर्थक रहे थे.
अमेरिका-इसराइल के संबंध सिर्फ़ ट्रंप तक सीमित नहीं हैं. सात अक्तूबर 2023 को हमास ने जब इसराइल पर हमला किया था तब जो बाइडन राष्ट्रपति थे.
हमले के चंद दिन बाद ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने तेल अवीव पहुंच कर इसराइल के प्रति अमेरिका की एकजुटता जाहिर कर दी थी.
उन्होंने हमास को 'शैतान' करार दिया था और कहा था कि अमेरिका हर हाल में इसराइल के साथ है. उसे हर मदद मिलेगी.
कहा जा रहा है कि बीते कुछ दिनों में ट्रंप ने ऐसे फ़ैसले लिए हैं जिससे नेतन्याहू सहज नहीं है.
अपनी यात्रा के दौरान ने कहा कि अमेरिका ईरान के साथ परमाणु समझौते के 'बहुत क़रीब' है.
क़तर में ट्रंप ने कहा, "हम दीर्घकालिक शांति के लिए ईरान के साथ गंभीर बातचीत कर रहे हैं. दो क़दम हैं एक तो अच्छा क़दम हैं और दूसरा हिंसक है. इतना हिंसक जितना लोगों ने पहले कभी नहीं देखा होगा. मुझे उम्मीद है हमें वो दूसरा क़दम नहीं उठाना होगा."
इस साल मार्च में भी ट्रंप ने ईरान को परमाणु डील न करने पर सैन्य कार्रवाई की धमकी दी थी. तब ईरान ने भी जवाबी कार्रवाई की बात कही थी.
प्रोफ़ेसर (डॉ.) मुश्ताक़ हुसैन बिट्स लॉ स्कूल के राजनीति विज्ञान और अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग में फैकल्टी हैं.
डॉ. मुश्ताक़ हुसैन बताते हैं, "नेतन्याहू बीते दो दशकों से यह कहते आए हैं कि ईरान को अपना परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से बंद कर देना चाहिए. अगर ट्रंप कोई डील करते हैं तब भी शायद ईरान पूरी तरह से अपना परमाणु कार्यक्रम नहीं छोड़ेगा. नेतन्याहू ने हमेशा कहा है कि हमला करके ईरान की न्यूक्लियर क्षमता को ख़त्म कर दिया जाए लेकिन ट्रंप का फ़ोकस समझौते पर ही है. बाद में ट्रंप नेतन्याहू को भी मना लेंगे."
2015 में ईरान और पी5+1 देशों (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, चीन और जर्मनी) के बीच एक ऐतिहासिक न्यूक्लियर डील हुई थी. इसे ज्वाइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ़ एक्शन (जेसीपीओए) के नाम से जाना जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सीमित करना था ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ईरान परमाणु हथियार विकसित न कर सके और बदले में ईरान को आर्थिक प्रतिबंधों से राहत दी जाए.
ट्रंप ने साल 2018 में जेसीपीओए को 'ख़राब समझौता' बताते हुए अमेरिका को इससे बाहर कर लिया था.
इसराइल ने शुरू से ही जेसीपीओए का विरोध किया था. उसका मानना है कि यह समझौता ईरान के परमाणु हथियार विकसित करने की क्षमता को पूरी तरह रोकने में असमर्थ है. क्षेत्र में एकमात्र परमाणु हथियार शक्ति होने के नाते, उसे लगा कि ईरानी परमाणु हथियार उसके लिए ख़तरा पैदा करेंगे.
2015 में नेतन्याहू ने था कि "यह एक बुरा सौदा है, एक बहुत बुरा सौदा."
छह मई 2025 को ट्रंप ने की थी कि अमेरिका यमन में हूती विद्रोहियों पर बमबारी बंद कर देगा. उनका कहना था कि ईरान से संबंध रखने वाला हूती समूह महत्वपूर्ण समुद्री व्यापार मार्गों को बाधित न करने पर सहमत हो गया है.
ट्रंप की घोषणा के बाद ओमान ने कहा कि उसने संघर्ष विराम में मध्यस्थता की है. हालांकि, ओमान और ट्रंप के बयान में यह नहीं बताया गया कि हूती विद्रोही इसराइल पर हमले रोकने के लिए सहमत हुए या नहीं.
इस डील को नेतन्याहू की नाराज़गी से जोड़कर देखा गया. एक तो ट्रंप ने हूती विद्रोहियों पर हमले रोके और इसराइल को इस डील में शामिल नहीं किया.
डॉ. मुश्ताक़ हुसैन का कहना है, "असल में ट्रंप नेतन्याहू सरकार के ऊपर दबाव बना रहे हैं. वह चाहते हैं कि जल्द से जल्द युद्धविराम या शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए जाएं. लेकिन इसराइल में जिस तरह का राजनीतिक प्रेशर नेतन्याहू पर है, उसे देखते हुए दबाव में वह इस लड़ाई को जारी रखे हुए हैं."
खाड़ी देशों की यात्रा के दौरान ट्रंप ने सीरिया के राष्ट्रपति अहमद अल-शरा से मुलाक़ात की. यह असाधारण मुलाक़ात कुछ महीने पहले तक अकल्पनीय थी. राष्ट्रपति अल-शरा पर रखा गया 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर का इनाम दिसंबर में ही हटाया गया था.
इसके बाद मंगलवार को रियाद में आयोजित सऊदी-अमेरिका इन्वेस्टमेंट फ़ोरम में ट्रंप ने एलान किया कि वह सीरिया पर लगाए गए प्रतिबंधों को हटा रहे हैं.
ने बताया है कि प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने राष्ट्रपति ट्रंप से प्रतिबंधों को न हटाने का आग्रह किया था. उन्हें शरा और उनके एचटीएस फ़ोर्स के साथ-साथ दूसरे संगठनों पर भी संदेह है, जिनमें विदेशी लड़ाके शामिल हैं.
सवाल है कि ट्रंप आख़िर ऐसा क्यों कर रहे हैं और वह इसराइल क्यों नहीं गए?
इसराइल के राजनीतिक विश्लेषक अकीवा एल्डार का मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप को पता है कि नेतन्याहू धोखा दे रहे हैं और उनके पास उन्हें (ट्रंप) देने के लिए कुछ भी नहीं है.
से बातचीत में एल्डार कहते हैं, "ट्रंप अपने पहले कार्यकाल की तुलना में बिल्कुल अलग हैं. उन्हें अहसास हो गया है कि नेतन्याहू धोखा दे रहे हैं और उन्हें व्यापार की समझ नहीं है. ट्रंप युद्ध का अंत चाहते हैं. उनका मानना है कि व्यापार के लिए युद्ध सही नहीं है. ट्रंप सबसे पहले बिजनेसमैन हैं और नेतन्याहू के पास उन्हें देने के लिए कुछ नहीं है. अब इसराइल को तय करना है कि उनकी प्राथमिकता युद्ध है या ट्रंप के साथ बातचीत. मुझे नहीं लगता है कि अब दोनों एक साथ आ सकते हैं क्योंकि दोनों के हित एक-दूसरे के विपरीत हैं."
यरुशलम पोस्ट के पूर्व संपादक अवी मेयर की राय अकीवा एल्डार से अलग है.
सऊदी अरब के प्रमुख प्रसारक में अवी मेयर कहते हैं, "मुझे नहीं लगता है कि ट्रंप प्रशासन इसराइल को साइडलाइन कर रहा है. दोनों के बीच मतभेद हैं जो कि किसी भी देश के संबंधों में सामान्य बात है. उन्होंने आज भी इसराइल के आत्मरक्षा के अधिकार के प्रति अपना समर्थन दोहराया है. मैं समझता हूं कि यह एक अटल प्रतिबद्धता है जिसे हर राष्ट्रपति बनाए रखेगा, चाहे कोई भी प्रशासन हो."
कुल मिलाकर इस दौरे से जो 'मैसेज' दिया गया है, उससे यही संकेत मिला है कि ट्रंप का वह 'ब्लाइंड सपोर्ट' जो उन्होंने चुनाव अभियान के दौरान या उसके तुरंत बाद इसराइल को दिया था, वो फिलहाल नज़र नहीं आ रहा है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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