शहर का प्राचीन खोड़ा गणेश मंदिर आस्था का बड़ा केंद्र है। यहां भगवान गणेश के दर्शन के लिए अजमेर ही नहीं बल्कि दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। कोई भी शुभ कार्य शुरू करने से पहले लोग यहां गणपति का आशीर्वाद लेने जरूर आते हैं। यहां हर बुधवार को मेले जैसा माहौल रहता है। गणेश चतुर्थी पर खोड़ा गणेश के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। मान्यता है कि यहां खोड़ा गणेश की स्थापना नहीं हुई थी बल्कि भगवान श्री गणेश की मूर्ति स्वयं प्रकट हुई है।
स्वयं प्रकट होकर प्रकट हुई मूर्ति: प्रसिद्ध खोड़ा गणेश अजमेर से साढ़े 26 किलोमीटर और किशनगढ़ से 12 किलोमीटर दूर स्थित है। मंदिर के ट्रस्टी और पुजारी पंडित नंद किशोर शर्मा ने बताया कि मान्यता है कि यहां भगवान श्री गणेश की मूर्ति 1700 ई. से स्थापित है। इस मूर्ति को कोई यहां लेकर नहीं आया और न ही किसी ने यहां भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित की है। यह मूर्ति इस स्थान पर स्वयं प्रकट होकर प्रकट हुई थी।
रिद्धि-सिद्धि के साथ विराजमान हैं गणेश जी: पंडित शर्मा बताते हैं कि 1700 ई. में मंदिर के ठीक पीछे एक तालाब हुआ करता था। तालाब के किनारे भगवान गणेश की मूर्ति प्रकट हुई थी। उस समय गांव में एक ही ब्राह्मण परिवार रहता था। ग्रामीणों ने भगवान गणेश की मूर्ति की सेवा का जिम्मा ब्राह्मण परिवार के मुखिया को सौंप दिया। फिर ग्रामीणों ने आपसी सहयोग से मूर्ति को एक छोटे से मंदिर में स्थापित कर दिया। इसके बाद भगवान गणेश की इच्छा से मंदिर ने भव्य रूप ले लिया। यहां श्रद्धालुओं की आमद भी काफी बढ़ गई। धीरे-धीरे खोड़ा गणेश की ख्याति जिले के बाहर तक पहुंच गई। मंदिर में भगवान गणेश रिद्धि-सिद्धि के साथ विराजमान हैं।
भूतों ने बनाया था किला: पंडित शर्मा बताते हैं कि खोड़ा गणेश को दंत कोट के गणेश के नाम से भी जाना जाता है। इसके पीछे एक रोचक कहानी है। मान्यता है कि भगवान गणेश ने यहां रहने की इच्छा जताते हुए भूतों से एक रात में मंदिर के चारों ओर किला (दीवार) बनाने को कहा था। भूतों ने भगवान की बात मान ली, लेकिन शर्त रख दी कि यदि गांव में कोई भी सूर्योदय से पहले अपने दैनिक कार्य कर लेगा, तो किले का काम पूरा नहीं होगा। जब गांव वालों ने यह सुना तो उन्होंने अपने दैनिक कार्य नहीं किए, लेकिन गांव वालों में से एक महिला जो सुन नहीं सकती थी, उसे शर्त के बारे में पता नहीं था। सुबह अनाज पीसने के लिए उसने चक्की चला दी। शर्त के अनुसार भूत किले का काम अधूरा छोड़कर चले गए। आज भी मंदिर के पीछे पहाड़ियों पर अधूरा किला (चार दीवारी) देखा जा सकता है। प्राचीन काल में मंदिर के बगल से जयपुर और मेवाड़ के बीच आवाजाही का मार्ग था। कई राजा-महाराजाओं ने भी यहां से भगवान गणेश को ले जाने का प्रयास किया, लेकिन यहां से मूर्ति को हटाने के प्रयास विफल रहे।
इमली और बरगद का पेड़ एक साथ: मंदिर प्रांगण में 300 साल से भी ज्यादा पुराना बरगद और इमली का पेड़ है, जिसके तने एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। खास बात यह है कि पेड़ के तने को ध्यान से देखने पर वह भी गणेश जैसा ही दिखाई देता है। दोनों वृक्षों के जुड़े हुए तनों में 12 स्थानों पर भगवान गणेश की आकृति देखी जा सकती है। श्रद्धालु और ग्रामीण इस वृक्ष को पवित्र मानते हैं। वृक्ष के तनों पर लिपटे धागे बताते हैं कि श्रद्धालु यहां अपनी मनोकामना का धागा बांधते हैं।
भगवान गणेश को दिया जाता है विवाह का पहला निमंत्रण: खोड़ा गणेश मंदिर में श्रद्धालुओं की गहरी आस्था है। परिवार में विवाह होता है तो सबसे पहले भगवान श्री गणेश को आमंत्रित किया जाता है। साथ ही प्रार्थना की जाती है कि वे विवाह को सुचारू रूप से संपन्न कराएं। विवाह के बाद नवविवाहित जोड़ा भगवान श्री गणेश का आशीर्वाद लेने आता है और भगवान गणेश को उनके पसंदीदा लड्डू का भोग लगाता है। लोगों का मानना है कि भगवान श्री गणेश सिर्फ शुभ कार्य ही नहीं करते बल्कि लोगों के बिगड़े काम भी बनाते हैं। कई लोग मंदिर के आसपास से छोटे-छोटे कंकड़-पत्थर भी चुपचाप अपने साथ ले जाते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से अविवाहित लड़के या लड़की का विवाह शीघ्र हो जाता है। लोग उस कंकड़-पत्थर को भगवान गणेश मानकर उसकी पूजा करते हैं और विवाह के बाद फिर उस कंकड़-पत्थर को चुपचाप छोड़ देते हैं, लेकिन यह पूरी प्रक्रिया किसी को नहीं बताई जाती।
अगर बताई भी जाती है तो व्यर्थ हो जाती है। मंदिर के ट्रस्टी और पुजारी पंडित पवन शर्मा बताते हैं कि हर बुधवार को यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। गणेश चतुर्थी पर यहां मेले जैसा माहौल रहता है। सुबह साढ़े तीन बजे मंदिर के पट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाते हैं। दोपहर 12 बजे भगवान श्री गणेश का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस दौरान भगवान श्री गणेश की महाआरती का आयोजन किया जाता है। सुबह से लेकर रात तक मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। शाम के समय श्रद्धालुओं के लिए भंडारा भी होता है। यहां आने वाले सभी श्रद्धालु भंडारे में प्रसादी ग्रहण करके जाते हैं।
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